वेद विचार
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सामवेद मंत्र ६०७ में नदियों के दृष्टांत से परमात्मा की महिमा वर्णित हुई है।
मंत्र में बताया गया है कि कुछ नदियां एक-दूसरी नदियों से मिलकर समुद्र को प्राप्त होती हैं, और दूसरी कुछ नदियां स्वतंत्र रूप से पृथक-पृथक समुद्र में पहुंचती हैं। वे सभी नदियां एक ही समुद्र की अग्नि को तृप्त करती हैं।
इसी प्रकार उसी पवित्र देदीप्यमान, आप्त प्रजाओं को पतित न करने वाले, प्रत्युत्त उन्नत करने वाले परमात्मारूप अग्नि को आप्त प्रजायें प्राप्त होता हैं।
मंत्र का भावार्थ है कि जैसे व्याप्त नदियां एक ही समुद्र को भरती हैं, वैसे ही आप्त प्रजाएं एक ही परमात्मा को प्राप्त होती हैं।
वेद मनुष्य को ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना व उपासना द्वारा उसे प्राप्त करने की प्रेरणा करते हुए ईश्वर, जीवात्मा और अनित्य सृष्टि का यथार्थ स्वरूप प्रस्तुत करते हैं। हमें वेदाध्ययन कर उपासना द्वारा ईश्वर को प्राप्त होकर जन्म-मरणरूपी आवागमन एवं अन्य सभी दुखों से मुक्त होना चाहिए।
-प्रस्तुतकर्ता मनमोहन आर्य (१०-१२-२०२१)
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