वेद के प्रेरक विचार
अनेक रोगों की नाशक सोम ओषधि पर्वतों के शीतल वातावरण में उत्पन्न होती है। इस ओषधि को जल के साथ मिलाकर व निचोड़ कर इसका सेवन किया जाता है। इसी प्रकार पर्वत के समान उन्नत परमेश्वर में स्थित और योग ध्यान साधना, शुभ कर्म व आचरणों से ईश्वर के आनंद रस को ग्रहण व धारण किया जाता है।
ईश्वर की उपासना से ईश्वर का आनंद-रस भक्त के हृदय व आत्मा में क्षरित होता है। आनंद-रसों के आगार हे परमात्मा! तुम मेरे हृदय में में निरंतर क्षरित होकर मुझे सुखी व आनंद विभोर कर दो। मेरे सभी क्लेश नष्ट हो जाएं और मैं आपका सच्चा योग्य उपासक बन जाऊं।
Advertisment
– प्रस्तुतकर्ता मनमोहन आर्य।
सनातन धर्म, जिसका न कोई आदि है और न ही अंत है, ऐसे मे वैदिक ज्ञान के अतुल्य भंडार को जन-जन पहुंचाने के लिए धन बल व जन बल की आवश्यकता होती है, चूंकि हम किसी प्रकार के कॉरपोरेट व सरकार के दबाव या सहयोग से मुक्त हैं, ऐसे में आवश्यक है कि आप सब के छोटे-छोटे सहयोग के जरिये हम इस साहसी व पुनीत कार्य को मूर्त रूप दे सकें।
सनातन जन डॉट कॉम में आर्थिक सहयोग करके सनातन धर्म के प्रसार में सहयोग करें।