असुरों के गुरु शुक्राचार्य से जुड़े रोचक प्रसंग

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असुरों के गुरु शुक्राचार्य की शिवभक्ति से जुड़े कई रोचक और प्रेरणादायक प्रसंग पुराणों और शास्त्रों में वर्णित हैं। नीचे उनके शिवभक्ति से जुड़े मुख्य प्रसंगों का विवरण दिया गया है:

🌿 1. मृतसंजीवनी विद्या की प्राप्ति (शिव की कृपा से)

यह सबसे प्रसिद्ध प्रसंग है जहाँ शुक्राचार्य की शिवभक्ति का चरम रूप देखने को मिलता है:

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  • देवताओं से असुरों की रक्षा करने और उन्हें पुनर्जीवित करने के लिए शुक्राचार्य को मृतसंजीवनी विद्या की आवश्यकता थी।

  • इसके लिए उन्होंने भगवान शिव की कठोर तपस्या की। वर्षों तक एक पैर पर खड़े होकर उन्होंने तप किया।

  • उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी प्रकट हुए और उन्हें यह दुर्लभ विद्या प्रदान की।

  • यही विद्या शुक्राचार्य ने असुरों को दी, जिससे वे बार-बार युद्ध में मरने के बाद भी जीवित होते रहे।

👉 यह प्रसंग महाभारत और शिवपुराण में वर्णित है।

🔥 2. शुक्राचार्य द्वारा शिव की आराधना के लिए आँख त्यागना

एक अन्य कथा के अनुसार:

  • शिवजी की तपस्या के दौरान उन्होंने एक विशेष अनुष्ठान किया जिसमें प्रतिदिन एक कमल पुष्प से भगवान शिव की पूजा करनी थी।

  • एक दिन कमल की संख्या कम हो गई, तो उन्होंने अपने एक नेत्र को कमल के स्थान पर अर्पित कर दिया, ताकि अनुष्ठान में कोई बाधा न आए।

  • इससे प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें दिव्य दृष्टि और आशीर्वाद प्रदान किया।

👉 यह कथा शिवमहापुराण में उल्लेखित है और यह भी शिवभक्ति की चरम भक्ति भावना को दर्शाता है।

🕉️ 3. गुरु शुक्राचार्य द्वारा शिव स्तुति

  • शुक्राचार्य ने शिव की कृपा पाने के लिए कई शिव स्तोत्र और स्तोत्सव की रचना की।

  • उन्होंने शिव पंचाक्षर मंत्र (ॐ नमः शिवाय) का जाप अनेकों वर्षों तक किया।

  • उनके द्वारा रचित “शिव कवच” और “शिव स्तुति” कुछ ग्रंथों में उल्लेखित है, जो साधकों के लिए आदर्श मानी जाती है।

🌺 4. शिवभक्ति से प्राप्त दिव्य ज्ञान और बल

  • शिवजी की कृपा से शुक्राचार्य योग, तंत्र, आयुर्वेद, और ज्योतिष के महान विद्वान बने।

  • उन्होंने ‘शुक्र नीति’ नामक ग्रंथ की रचना की, जो आज भी एक महान नीति ग्रंथ माना जाता है।

  • उन्होंने असुरों को न केवल युद्ध की शिक्षा दी, बल्कि नीति, प्रशासन और समाजशास्त्र की भी शिक्षा दी।

शुक्र देव को प्रसन्न करने के आसान उपाय

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