दैत्य जब भी संकटों में घिरते हैं या अपनी शक्ति व सीमा का विस्तार करना चाहते हैं तो वे दैत्य गुरु शुक्राचार्य की शरण में आते हैं। शुक्र देव वृष और तुला राशि के स्वामी हैं। इनकी महादशा 2० वर्ष की होती है। दैत्यगुरु शुक्र का वर्ण श्वेत है। उनके सिंर पर मुकुट और गले में माला शोभा पाती है। वे श्वेत कमल के आसन पर विराजमान हैं। उनके चार हाथों में क्रमश: दंड, रुद्राक्ष की माला, पात्र व वरमुद्रा सुशोभित रहती है। इनका वाहन रथ है और रथ में अगिÝ के समान आठ घोड़े जुते रहते हैं। रथ पर ध्वजाएं फहराती रहती है और इनका आयुध दंड है।
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शुक्राचार्य दानवों व असुरों के पुरोहित हैं। ये योग के भी आचार्य हैं। इन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न करके मृत संजीवनी विद्या प्राप्त की थी और इसी विद्या के बल पर वे युद्ध के दौरान मृत दानवों को जिन्दा कर देते थ्ो।
एक समय शुक्राचार्य ने असुरों के कल्याण के लिए ऐसे कठोर व्रत का अनुष्ठान किया था, जैसा आज तक कोई नहीं कर सका। इस व्रत से इन्होंने देवाधिदेव शंकर को प्रसन्न कर लिया। शिव ने इन्हें वरदान दिया कि तुम युद्ध में देवताओं को पराजित कर दोंगे और तुम्हें कोई नहीं मार सकेगा। भगवान शिव ने इन्हें धन का भी अध्यक्ष बना दिया। इसी वरदान के बल पर शुुक्राचार्य इस लोक व परलोक की सभी सम्पत्तियों के स्वामी बन गए। मत्स्यपुराण में इस प्रसंग का वर्णन किया गया है।
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महाभारत आदि पर्व के अनुसार शुक्राचार्य सम्पत्तियों के ही नहीं, बल्कि औषधियों, मंत्रों और रसों के स्वामी भी हैं। इनकी सामथ्र्य अद्भुत है। इन्होंने अपनी सभी सम्पत्ति शिष्य असुरों को दे दी और स्वयं तपसी जीवन स्वीकार किया।
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ब्रह्मा जी के वर से शुक्राचार्य ग्रह बन कर तीनों लोकों के प्राण का परित्राण करने लगे। कभी वृष्टि, कभी अवृष्टि, कभी भय, कभी अभय उत्पन्न कर ये प्राणियों में योग-क्ष्ोम का कार्य पूरा करते हैं। ये ग्रह के रूप में परमपिता ब्रह्मा जी की सभा में उपस्थित होते हैं। लोकों के लिए यह अनुकूल ग्रह हैं और वर्षा रोकने वाले ग्रहों को शांत कर देते हैं। इनके अधिदेवता इंद्राणी और प्रत्यधिदेवता इंद्र हैं।
शुक्र देव कैसे होते है शांत
शुक्र ग्रह की शांति के लिए गोपूजा करनी चाहिए। हीरा धारण करने से शुक्र ग्रह की कृपा प्राप्त होती है। ब्राह्मणों को चांदी, सोना, चावल, घी, सफेद वस्त्र, सफेद चंदन, हीरा, सफेद अश्व, दही, चीनी, गौ और भूमि देने से शुक्र देव की कृपा प्राप्त होती है। नवग्रह मंडलों में शुक्र का प्रतीक पूर्व में श्वेत पंचकोण है।
शुक्रदेव को शांत व प्रसन्न करने के लिए वैदिक मंत्र
ऊँ अन्नात्परिस्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत क्षत्रं पय: सेमं प्रजापति: ।
ऋतेन सत्यमिन्दियं विपान ग्वं, शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोय्मृतं मधु ।
शुक्रदेव को शांत व प्रसन्न करने के लिए पौराणिक मंत्र
ऊँ हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम । सर्वशास्त्रप्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम ।।
बीज मंत्र
ऊं द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:
सामान्य मंत्र
ऊँ शुं शुक्राय नम:
इनमें से किसी भी मंत्र का एक निश्चित संख्या में जप करना चाहिए। कुल जप संख्या 16००० और समय सूर्योदय काल है।
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Guru ji prabhu ke darshan kra do om hari