धर्म शास्त्रों में विशेष रूप से उल्लेखित है कि रुद्राक्ष का बिना अभिमंत्रित किए नहीं धारण करना चाहिए, क्योंकि बिना अभिमंत्रित किए रुद्राक्ष धारण करना व्यर्थ ही रहता है। उससे किसी कार्य की सिद्धि नहीं होती है। कोई मनोकामना नहीं पूरी होती है। विशेषकर पुराणों में रुद्राक्ष को धारण करने से पूर्व इसे अभिमंत्रित करने का विधान है। पद्म पुराण के अनुसार रुद्राक्ष को कैसे अभिमंत्रित करना चाहिए, आइये जानते हैं-
पंचामृतं पंचगव्यं स्नानकाले प्रयोजयेत्।
रुद्राक्षस्य प्रतिष्ठायां मन्त्र: पंचाक्षर यथा।।
ऊॅँ त्र्यम्बकादि मन्त्रं च यथा तेन प्रयोजयेत।
भावार्थ- रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति को रुद्राक्ष को अभिमंत्रित करने से पूर्व स्नान के समय पंचामृत व पंचगव्य का भी प्रयोग करना चाहिए और रुद्राक्ष की प्रतिष्ठा में पंचाक्षर मंत्र नम: शिवाय….. का पाठ करना चाहिए। तब ऊॅँ त्र्ययंबकादि मंत्र का व्यवहार करना चाहिए।
ऊॅँ त्र्ययंबकादि मंत्र–
ऊॅँ त्र्ययंबकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।। ऊॅँ हौं अघोर घोरेहुं घोरतरे हुं ऊॅँ ह्रीं श्रीं सर्वत: सर्वान्गे नमस्ते रुद्ररूपे हुम।। इति मंत्र:।।
अन्य मंत्रों से भी रुद्राक्ष की पूजा कर अभिमंत्रित करते हैं। इसकी प्रतिष्ठा विधिवत रूप से करने से यह अधिक फलदायक होता है। इसलिए रुद्राक्ष को अपने-अपने मंत्रों से अभिमंत्रित कर भक्तिपूर्वक पहनना चाहिए।
मंत्रमहार्णव से-
अनेनापि च मन्त्रेण रुद्रास्य द्बिजोत्तम:।
प्रतिष्ठां विधि वत्कुय्र्यान्ततेधिक फलं भवेत।।
तथा यथा स्वमन्त्रेण धारयेद्भक्ति संयुत:।।