मंगल देव की महिमा का बखान पुराणों में मिलता है। भगवान शिव के उपासक पर मंगल देव की कृपा बनी रहती है। यदि मंगल देव अनुकूल होते हैं तो मनुष्य के सभी मनोरथ पूर्ण करते हैं। मंगलवार के व्रत से मंगल देव की कृपा मनुष्य मात्र को बड़ी सहजता से प्राप्त हो जाती है। बशर्ते सच्चे मनोभाव व श्रद्धा के साथ व्रत का विधान किया जाए। भविष्य पुराण के अनुसार मंगल व्रत में ताम्र पत्र पर भौमयंत्र लिखकर और मंगलदेव की सुवर्णमयी प्रतिमा का प्रतिष्ठा करके पूजा करनी चाहिए। मंगलदेव के नामों के पाठ मात्र से मनुष्य मात्र को ऋणों से मुक्ति मिलती है।
आम तौर पर यह अशुभ ग्रह माने जाते हैं, यदि ये वक्रगति से न चलें तो एक-एक राशि को तीन पक्ष में भोगते हुए बारह राशियों को डेढ़ वर्ष में पार करते हैं। ये मेष व वृश्चिक राशि के स्वामी हैं।
मंगल देव की चार भुजाएं है, उनके शरीर में लाल रंग के रोए हैं। इनके हाथों में क्रम से अभयमुद्रा, त्रिशूल, गदा व वरमुद्रा सुशोभित होती हैं। इन्होंने लाल मालाएं व लाल वस्त्र धारण किए हुए हैं। इनके सिर पर स्वर्ण मुकुट है और भ्ोड़ा वाहन पर वे सवारी करते हैं। वाराह कल्प से सम्बन्धित एक कथा है, जिसके अनुसार जब हिरण्यकशिपु का बड़ा भाई हिरण्याक्ष पृथ्वी चुरा कर ले गया था, तब सृष्टि का उद्धार करने के लिए भगवान विष्णु ने वाराहावतार लिया था। भगवान का यह रूप देखकर पृथ्वी तब बहुत प्रसन्न हुई थीं, उनके मन में भगवान का पति रूप में वरण करने की इच्छा जागृत हुई। वाराहावतार के समय भगवान का तेज करोड़ों सूर्य के समान असह्य था। पृथ्वी की अधिष्ठात्री देवी की कामना पूर्ण करने के लिए भगवान अपने मनोरम रूप में आ गए और पृथ्वी के साथ एक दिव्य वर्ष तक एकान्त में रहे। उस समय पृथ्वी देवी और भगवान के संयोग से मंगल देव की उत्पत्ति हुई। ब्रह्मवैतवर्त पुराण में इसका उल्लेख मिलता है। इसी तरह से विभिन्न कल्पों में मंगलग्रह की उत्पत्ति की विभिन्न कथाएं हैं। पूजा के प्रयोग में इन्हें भरद्बाज गोत्र कहकर सम्बोधित किया जाता है। इस कथा का उल्लेख गण्ोश पुराण में भी मिलता है।
मंगल देव की शांति के लिए मंत्र
मंगल देव की शांति के लिए शिव उपासना का विश्ोष महत्व है। प्रवाल रत्न धारण करने का भी विधान है। तांबा, सोना, गेहूं, लाल वस्त्र, गुड़, लाल चंदन, लाल पुष्प, केशर, कस्तूरी, लाल बृषभ, मसूर की दाल और भूमि ब्राह्मणों का दान देने से मंगल देव की कृपा प्राप्त होती है। मंगल देव की प्रसन्नता के लिए मंगलवार का व्रत रखना चाहिए और हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। इनकी महादशा सात वर्षो तक चलती है।
मंगल देव की शांति के लिए वैदिक मंत्र
ऊँ अग्निर्मूर्धादिव: ककुत्पति: पृथिव्यअयम। अपा रेता सिजिन्नवति ।।
मंगल देव की शांति के लिए पौराणिक मंत्र
ऊँ धरणीगर्भसंभूतं विद्युतकान्तिसमप्रभम । कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणमाम्यहम ।।
बीज मंत्र
ऊँ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:
सामान्य मंत्र
ऊँ अं अंगारकाय नम:
इनमें से किसी भी मंत्र का श्रद्धानुसार जप करना चाहिए। नित्य निश्चित संख्या में इनका जप करना चाहिए। कुल जप संख्या 1०००० व समय प्रात: आठ बजे है। विश्ोष परिस्थिति में विद्बान ब्राह्मण का सहयोग लेना चाहिए।