भगवती छिन्नमस्ता शीघ्र प्रसन्न होने वाली देवी है। उनकी प्रार्थना से जीव को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और धरा पर वह निर्भय होकर विचरता है। उनकी कृपा से भक्त को देह त्याग के पश्चात उत्तम लोक की प्राप्ति होती है। स्वयं अपना शीश काटकर भक्तों की क्षुधा तृप्ति करने वाली करने वाली माता छिन्नमस्ता के मंत्रों का जप करने वाला प्राणी सदैव ही सुखी रहता है।
छिन्नमस्ता या ‘प्रचण्ड चण्डिका’ दस महाविद्यायों में से एक हैं। छिन्नमस्ता देवी के हाथ में अपना ही कटा हुआ सिर है तथा दूसरे हाथ में कटार है। देवी के गले में हड्डियों की माला तथा कन्धे पर यज्ञोपवीत है, इसलिए शांत भाव से इनकी उपासना करने पर वह शांत स्वरूप को प्रकट करती हैं।
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उग्र रूप में उपासना करने पर यह उग्र रूप में दर्शन देती हैं। दिशाएं ही इनके वस्त्र हैं। इनकी नाभि में योनि चक्र है। छिन्नमस्ता की साधना दीपावली से शुरू करनी चाहिए।
मंत्र है-
ऊॅँ श्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं एें वज्र
वैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा।।
उक्त पावन मंत्र की कम से कम पांच माला का मंत्र जप करना चाहिये। माला 1०8 मनकों की होनी चाहिए। मंत्र जप के बाद अंत में एक माला मंत्र जप करते हुए बेल या पलाश के पुष्पों से हवन करना चाहिए। प्रसन्न होने पर भगवती छिन्नमस्ता माता आपकी सभी मनोकामनाएं भगवती पूर्ण करती है।
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