राहु ग्रह यदि आपके प्रतिकूल है तो आपके कार्य सिद्ध होने में बहुत सी बाधाएं उपस्थित होती हैं, ऐसे में निराशा आना स्वभाविक है। राहु की महादशा में उनका प्रभाव और अधिक तीखा हो जाता है, इसलिए जरूरी है कि राहु को प्रसन्न करके आप आपना जीवन सहज बनाएं और मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर कर कार्य सिद्ध करें।
राहु का मुख अत्यन्त भंयकर है। ये सिर पर मुकुट, गले में माला और शरीर पर काले रंग का वस्त्र धारण करते हैं। इनके हाथों में तलवार, ढाल, त्रिशूल व वरमुद्रा है। ये सिंह के आसन पर आसीन हैं। ध्यान में ऐसे ही राहु प्रशस्त माने गए हैं। राहु का रथ अंधकार रूप है। इसे कवच आदि से सजाए हुए काले रंग के आठ घोड़े खींचते हैं। राहु के अधिदेवता काल और प्रत्यधिदेवता सूर्य हैं। नव ग्रह मंडल में इनका प्रतीक वायव्य कोण मे काला ध्वज है। राहु की महादशा 18 वर्ष की होती है। अपवाद स्वरूप कुछ परिस्थितियों को छोड़कर यह क्लेशकारी ही होते हैं।
राहु की माता का नाम सिंहिंका है, जो विप्रचित्ति की पत्नी और हिरण्यकशिपु की पुत्री थीं। माता के नाम से राहु को सैंहिकेय भी कहा जाता है। राहु के सौ और भाई थे, जिनमें राहु सबसे बढ़ा-चढ़ा था। श्री मद्भागवत में उल्लेख मिलता है कि जिस समय समुद्र मंथन के बाद भगवान विष्णु मोहिनी रूप में देवताओं को अमृत पिला रहे थे, उसी समय राहु देवताओं का वेष बना कर उनके बीच बैठ गया और देवताओं के साथ उसने भी अमृत पी लिया। लेकिन उसी क्षण चंद्रमा और सूर्य देव ने उसकी पोल खोल दी। अमृत पिलाते-पिलाते ही भगवान से तीखी धार वाले सुदर्शन चक्र से उनका सिर धड़ से अलग कर दिया।
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अमृत का संसर्ग होने से वह अमर हो गया और ब्रह्मा जी ने उसे ग्रह बना दिया। राहु ग्रह मंडलाकार होता है। ग्रहों के साथ राहु भी परमपिता ब्रह्मा की सभा में बैठते हैं। मत्स्यपुराण में उल्लेख किया गया है कि पृथ्वी की छाया मंडलाकार होती है और राहु इसी छाया का भ्रमण करते हैं। यह छाया के अधिष्ठात्री देवता हैं। असूया यानी सिंहिका के पुत्र राहु जब सूर्य व चंद्रमा को तमसे आच्छन्न कर लेते हैं तो इतना अंध्ोरा छा जाता है कि लोग अपने स्थान को भी नहीं पहचान पाते हैं। ग्रह बनने के बाद भी राहु वैर भाव से पूर्णिमा को चंद्रमा और अमावस्या को सूर्य पर आक्रमण करते हैं। इसे ग्रहण या राहु पराग कहते हैं।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यदि कुंडली में राहु की स्थिति प्रतिकुल या अशुभ है तो यह अनेक तरह की शारीरित व्याधियां उत्पन्न करते हैं। कार्य सिद्धि में बाधा उत्पन्न करने वाले और दुर्घटनाओं का यह जनक माने गये हैं।
ऐसे शांत करें राहु को
राहु की शांति के लिए महा मृत्युंजय जप और गोमेद रत्न धारण करना श्रेयस्कर रहता है। ग्रह की शांति के लिए अभ्रक, लोहा, तिल, नीला वस्त्र, ताम्रपात्र, सप्तधान्य, उड़द, गोमेद, तेल कम्बल, घोड़ा और खड्ग दान करना चाहिए।
राहु को शांत करने का वैदिक मंत्र
ऊँ कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृध: सखा।
कया शचिष्ठया वृता।।
राहु को शांत करने का पौराणिक मंत्र
अर्धकायं महावीर्यं चंद्रादित्यविमर्दनम्।
सिंहिकागर्भसम्भूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम्।।
बीज मंत्र
ऊॅँ भ्रां भ्रीं भौं स: राहवे नम:
साधारण मंत्र
ॅऊॅँ रां राहवे नम:
इनमें से कोई भी एक मंत्र का निश्चित संख्या में जप करना चाहिए। प्रतिदिन जप करने से मनोरथ सिद्ध होता है। जप संख्या 18००० और समय रात्रि होता है।
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rahu ke mantra ka jaap ratri ko karna chayiye but ratri ko kis time karna chayiye please batay?
RATRI PRAHAR ME KABHI BHI
Ek rat me 18000 baar rahu mantra jaap karna chahiye ???