जनेऊ कान पर क्यों चढ़ाते हैं? और आखिर इसकी जरूरत क्या है? वह इसलिए क्योंकि लघुशंका या दीर्घशंका के दौरान जनेऊ को अपवित्र होने से बचाना होता है। इसे खींचकर कान पर चढ़ाया जाता है। दूसरा कारण यह भी लोकव्यवहार में माना जाता है कि जनेऊ को कान पर चढ़ा हुआ देखकर दूसरा व्यक्ति समझ जाए कि वह लघुशंका या दीर्घशंका को आए हैं और अभी तक इन्होंने हाथ, पैर और मुंह नहीं धोये हैं।
पवित्रता की दृष्टि से भी इसका महत्व है। लोक व्यवहार में एक अन्य मान्यता भी है कि दाहिने कान की एक विश्ोष नाड़ी है, जिसे आयुर्वेद में लोहितिका नाम से जाना जाता है। यदि उस नाड़ी का दबा दिया जाए तो पूर्ण स्वस्थ्य व्यक्ति को भी पेशाब निकल जाता है। ऐसा क्यों होता है?, इसकी वजह यह होती है कि यह नाड़ी का अंडकोष से सीधा सम्पर्क होता है। हिरणिया नाम की बीमारी का इलाज करने के लिए डॉक्टर लोग दाहिने कान की नाड़ी का छेदन करते हैं। इस कान में जब जनेऊ लपेटा जाता है तो इसे बांधने से मूत्र सहजता से हो जाती है। इसकी अंतिम बूंद तक उतर जाती है। इन सबसे इतर पवित्रता का स्थान सर्वोपरि रहता है। जनेऊ की पवित्रता बनाए रखना भी बेहद जरूरी होता है, इसलिए भी लोकव्यवहार में जनेऊ दाहिने कान में लपेटा जाता है