आठमुखी यानी अष्टमुखी रुद्राक्ष को लाल धागे में पिरोकर गण्ोश जी के चरणों से स्पर्श कराकर ऊॅँ सदा मंगल गण्ोशाय नम:…………………………….मंत्र का जप करते हुए धारण करना चाहिए। इसे मांगलिक कार्यों के लिए शुभ माना जाता है। अष्टमुखी रुद्राक्ष को गण्ोश जी का प्रत्यक्ष अवतार माना जाता है। इसकी देवियां आठ माताएं हैं। इसे धारण करने जीवन भर अपयश नहीं मिलता है। यह आठों वसु और गंगा को प्रसन्न करने वाला है।
पौराणिक गंथों के अनुसार आठ मुखी रुद्राक्ष को अष्टमूर्ति स्वरूप साक्षात शिव का शरीर माना गया है। अष्टमूर्ति का आशय है, पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, सूर्य, चंद्र और यजमान। इसे अष्ट प्रकृति का प्रतीक भी माना गया है। अष्ट प्रकृति का आशय है, भूमि, आकाश, जल, अग्नि, वायु, मन, बुद्धि व अहंकार। अष्टमुखी रुद्राक्ष को विजयश्री प्रदान करने वाला माना गया है। ऐसी मान्यता है कि आठ मुखी रुद्राक्ष धारण करने वाला आठों दिशाओं में विजय प्राप्त करता है। इसी धारणा के अनुसार कुछ विद्बान मानते हैं कि अष्ट मुखी रुद्राक्ष धारण करने से कोर्ट-कचहरी के मामलों में भी सफलता मिलती है। साथ ही यह धारक की दुर्घटनाओं और प्रबल शत्रुओं से भी रक्षा करता है। अष्टमुखी रुद्राक्ष भूत-प्रेत बाधाओं को दूर कर साहस और शक्ति प्रदान करता है। मान्यता के अनुसार अष्टमुखी रुद्राक्ष को विनायक देव यानी गणपति का स्वरूप भी माना जाता है। इसे धारण करने से अन्न, धन और स्वर्ण की वृद्धि होती है। गुरु पत्नी और दुष्ट स्त्री से किए गए सहवास का पाप नष्ट हो जाता है। इसको धारण करने से समस्त विध्न बाधाएं नष्ट हो जाती है। धारक का कल्याण होता है और अंतत: परमपद की प्राप्ति होती है।
पद्म पुराण के अनुसार आठ मुखी रुद्राक्ष को निम्न मंत्र से अभिमंत्रित करके धारण करना श्रेयस्कर होता है। इसे प्रतिष्ठित करने का मंत्र परम पावन है।
मंत्र है- ऊॅँ स: हूॅँ नम:
स्कन्द पुराण के अनुसार आठ मुखी रुद्राक्ष को निम्न मंत्र से अभिमंत्रित करना श्रेयस्कर होता है।
मंत्र है- ऊॅँ कं वं नम:
महाशिव पुराण के अनुसार आठ मुखी रुद्राक्ष को निम्न मंत्र से अभिमंत्रित कर धारण करना श्रेयस्कर होता है।
मंत्र है- ओं हूॅँ नम:
योगसार नामक ग्रंथ के अनुसार अष्टमुखी रुद्राक्ष धारण करने का निम्न मंत्र श्रेयस्कर होता है।
मंत्र है- ऊॅँ नम:
आठ मुखी रुद्राक्ष को धारण करने का अन्य मंत्र होता है। जिसका उल्लेख निम्न किया गया है।
मंत्र है- ऊॅँ ह्राँ ग्रीं लं आं श्रीं
विधि- सर्व प्रथम रुद्राक्ष को पंचामृत, पंचगव्य आदि से स्नान आदि कराकर पुष्प गंध, दीप से पूजा करकर अभिमंत्रित करना चाहिये। पूजन पूर्ण श्रद्धा भाव से करना चाहिए।