दसमुखी रुद्राक्ष को लाल धागे में पिरोकर रविवार या बृहस्पतिवार के दिन प्रात:काल स्नानादि-ध्यान, पूजा,पाठ करके ऊॅँ भगवान विष्णुय नम:………….. मंत्र का जप करते हुए गले या दाहिने बाजू मेंधारण करना चाहिए। इसके धारण करने से मानसिक परेशानियों व मस्तिष्क के रोगों का नाश व संतान की प्राप्ति व विद्या की प्राप्ति होती है।
दसमुखी रुद्राक्ष की स्वामी स्वामी दसों दिशाएं हैं। इसे साक्षात् जनार्दन विष्णु भगवान का रूप माना गया है। यह रुद्राक्ष अत्यन्त शक्तिशाली होता है। इसे धारण करने वाले व्यक्ति को सर्प का भय नहीं होता है। भूत-प्रेत, ब्रह्मराक्षस आदि की बाधाएं शांत होती हैं। दसों दिशाओं में प्रीति बढ़ती है। साथ ही प्राणी के सर्व ग्रह शांत होते हैं।
दसोमुख रुद्राक्ष को दशावतार-मत्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध व कल्कि का स्वरूप प्रतीक माना गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार ये दसों अवततार प्रसन्न होकर दसोंमुखी रुद्राक्ष में वास करते हैं। दसमुखी रुद्राक्ष को धारण करने से दसों दिशाएं व दस दिक्पाल- इंद्र, अग्नि, यम, निऋति, वरुण, वायु, कुबेर, ईशान, अनन्त और ब्रह्मा धारक से संतुष्ट रहते हैं।
दसमुखी रुद्राक्ष धारण करने से दसों इंन्द्रियों से किए हुए सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। दसमुखी रुद्राक्ष धारण करने वाले को लोक सम्मान मिलता है। उसे कीर्ति, विभूति और धन की प्राप्ति होती है। इसके धारण करने से धारक की सभी लौकित व पारलौकिक कामनाएं पूर्ण होती हैं। इसके इन्हीं गुणों के कारण नेताओं, समाजसेवियों व कलाकारों आदि के लिए इसे धारण करना श्रेयस्कर माना जाता है।
पद्म पुराण के अनुसार दसमुखी रुद्राक्ष को अभिमंत्रित करने का निम्न मंत्र प्रभावशाली माना गया है। इससे प्रतिष्ठित करने का विधान है।
मंत्र है- ऊॅँ ह्रीं नम:
स्कन्द पुराण के अनुसार दस मुखी रुद्राक्ष को अभिमंत्रित करने का निम्न मंत्र प्रभावशाली माना गया है।
मंत्र है- ऊॅँ ह्रीं नम:
महाशिव पुराण के अनुसार दसमुखी रुद्राक्ष को अभिमंत्रित करने का निम्न मंत्र प्रभावशाली माना गया है।
मंत्र है- ओं ह्रीं हूॅँ नम:
योगसार नामक गं्रथ के अनुसार दसमुखी रुद्राक्ष को अभिमंत्रित करने का निम्न मंत्र प्रभावशाली माना गया है।
मंत्र है- ऊॅँ हूॅँ नम:
दसमुखी रुद्राक्ष को अभिमंत्रित करने के अन्य पावन मंत्र निम्न लिखित है।
मंत्र हैं- ऊॅँ ह्रीं क्लीं व्रीं ऊॅँ
विधि- सर्व प्रथम रुद्राक्ष को पंचामृत, पंचगव्य आदि से स्नान आदि कराकर पुष्प गंध, दीप से पूजा करकर अभिमंत्रित करना चाहिये। पूजन पूर्ण श्रद्धा भाव से करना चाहिए।