गौरी शंकर रुद्राक्ष प्राकृतिक से ही यह वृक्ष से जुड़ा हुआ उत्पन्न होता है। प्राकृतिक रूप से परस्पर दो जुड़े हुए रुद्राक्षों को गौरी शंकर रुद्राक्ष कहा जाता है।
गौरी शंकर रुद्राक्ष को उभयात्मक- शिव और शक्ति का स्वरूप माना गया है। यह सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है। गौरी शंकर रुद्राक्ष को भी शिव-शक्ति के तुल्य अपार शक्ति वाला और शिव- शक्ति स्वरूप ही मानते है, इसलिए इस रुद्राक्ष को धारण करने से शिव और शक्ति यानी शंकर और पार्वती दोनों ही प्रसन्न रहते हैं।
इसे घर में रखकर विधिवत् पूजा करने से मोक्ष को देने वाला, खजाने में रखने से खजाने को बढ़ाने वाला होता है। इससे एकमुखी रुद्राक्ष से प्राप्त होने वाले सभी फल प्राप्त होते हैं। इसके दर्शन मात्र से सभी प्रकार के आनंद व सुख मिलता है। गौरी शंकर रुद्राक्ष भी प्राय: बहुत कम उपलब्ध होते हैं। जो व्यक्ति एकमुखी रुद्राक्ष प्राप्त करने में असमर्थ है, उसके यह रुद्राक्ष अति उत्तम होता है। घर में, पूजा गृह में, तिजोरी में मंगल कामना की सिद्धि के लिए इसे रखना सदैव लाभदायक रहता है।
धारण की प्रथम विधि- इसे सोमवार के दिन प्रातःनहाकर शिवलिंग से स्पर्श कराकर धारण करना चाहिए। इसे धारण करते समय ऊॅँ नम: शिवाय…………. पंचाक्षर मंत्र का जप करना चाहिए। श्रद्धा और विश्वास से इसे धारण करने से शिव व शक्ति की सदा कृपा बनी रहती है।
धारण की द्बितीय विधि- इसे भी लाल या पीले धो में पिरोकर सोमवार के दिन नहाकर शिवलिंग व माता पार्वती के चरणों से स्पर्श करके शिव शक्ति रुद्राक्षय नम:………….. मंत्र का जप करते हुए हृदय तक धारण करना चाहिए। इसे एकमुखी रुद्राक्ष के अभाव में धारण किया जाता है।
विधि- सर्व प्रथम रुद्राक्ष को पंचामृत, पंचगव्य आदि से स्नान आदि कराकर पुष्प गंध, दीप से पूजा करकर अभिमंत्रित करना चाहिये। पूजन पूर्ण श्रद्धा भाव से करना चाहिए।