कार्तिक माह में स्नान करने का विधान है, जिसे जानकर ही स्नान करना श्रेयस्कर होता है। किस वेला में किया गया स्नान अधिक फलदायी होता है?, इसका क्या विधान है? और मनुष्य को इसका क्या फल प्राप्त होता है? यह सभी महत्वपूर्ण बातें हम आपको इस लेख के माध्यम से बताने जा रहे है। यह स्नान किस समय करें और स्नान के कितने प्रकार है, यह सब कुछ हम आपको इस लेख के माध्यम से बताने जा रहे है, उम्मीद करते हैं, यह लेख आपके लिए लाभकारी होगा, इससे विधान को जानकर आत्मकल्याण की ओर अग्रसित होंगे।
कार्तिक स्नान अश्विन की पूर्णिमा को आरम्भ करके कार्तिक की पूर्णिमा को पूरा करें। भक्तिवान पुरुष या नारी अश्विन की शुक्ल पक्ष की एकादशी आने पर ही भगवान विष्णु को नमस्कार करके कार्तिक व्रत करने की आज्ञा प्राप्त करें। ऐसा करने पर भगवान विष्णु स्वयं भक्त के ऊपर कृपा करके उसे आत्मिक बल और मनोबल प्रदान कर विधि से कार्तिक व्रत करने की सद्बुद्धि देते हैं।
बारह मासों में मार्ग शीर्ष मास अत्यन्त पुण्य प्रद है। उससे अधिक पुण्य देने वाला बैसाख मास बताया गया है। उसे लाख गुना अधिक प्रयाग में माघ मास का महत्व है और उससे भी अधिक फलदायी कार्तिक मास है। इसका महत्व सर्वत्र जल में एक सा ही है। एक बार जब सब प्रकार के दान, व्रत और नियम और दूसरी ओर कार्तिक का स्नान रखकर जब ब्रह्मा जी ने तोला तो कार्तिक स्नान का पलड़ा भारी ही रहा। यह व्रत भगवान श्री कृष्ण को बहुत ही अधिक प्रिय रहा है।
अश्विन की पूर्णिमा से लेकर कार्तिक की पूर्णिमा तक भगवान की प्रसन्नता के लिए प्रतिदिन गंगा स्नान करना चाहिए। देवी पक्ष अर्थाता अश्विन शुक्ल पा की प्रतिपदा से लेकर कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी की महारात्रि आने तक भगवती दुर्गा की प्रसन्नता के लिए स्नान करें। श्री गण्ो जी की प्रसन्नता के लिए अश्विन कृष्ण चतुर्थी से लेकर कार्तिक कृष्ण चतुर्थी तक नियम पूर्वक स्नान करें। जो अश्विन शुक्ल पक्ष की एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक स्नान करता है, उसके ऊपर भगवान जनार्दन अपार प्रसन्न रहते हैं।
जो दूसरों के संगवश या बलात् अनजाने में भी कार्तिक मास में स्नान का नियम पूरा कर लेते है, उन्हें कभी यम- यातना को नहीं देखना पड़ता है। कार्तिक मास में तुलसी के पौध्ो की नीचे श्री राधा-कृष्ण की मूर्ति का निष्काम भाव से पूजन करना चाहिए। तुलसी के अभाव में आँवले के वृक्ष के तले पूजा करनी चाहिए।
स्नान करने का नियम हम आपको बताते हैं। नियम के अनुसार जब दो घड़ी बाकी रहे तब तुलसी की मिट्टी, वस्त्र और कलश लेकर जलाशय या गंगा तट पर जाए, तब पैर धोकर गंगा आदि नदियों तथा भगवान विष्णु व शिव आदि देवताओं का स्मरण करें। फिर नाभि पर्यन्त जल में खड़े होकर इस मंत्र को पढ़ें-
कार्तिकेअहं कारिष्यामि प्रात: स्नानं जनार्दन।
प्रीत्यर्थं तव देवेश दामोदर मया सह।।
भावार्थ- हे जनार्दन देवेश्वर, लक्ष्मी सहित आपकी प्रसन्नता के लिए मैं कार्तिक प्रात: स्नान करुंगा। उसके बाद निम्न उल्लेखित मंत्र का जप करें-
गृहाणाघ्र्यं मया दत्तं राधया सहित हरे।
नम: कमलानाभाय नमस्ते जलशायिने।।
नमस्तेअतु हृषीकेश गृहृाणाघ्र्यं नमअस्तुते।।
भावार्थ- आप श्री राधा के संग मेरे दिए इस अध्र्य को स्वीकार करें। हे हरे, आप कमलनाभ को नमस्कार है। जल में शयन करने वाले आप नारायण को नमस्कार है। यह अघ्र्य ग्रहण कीजिए। आपको बारम्बार नमस्कार है।
मनुष्य जिस तीर्थ में स्नान करे, उसे गंगा का स्मरण जरूर करना चाहिए। पहले मृत्तिका आदि से स्नान करके ऋचाओं द्बारा अपने मस्तक पर अभिष्ोक करें। अघमर्षण और स्नानांग तर्पण करके पुरुष सूक्त से सिर पर जल छिड़कें। उसके बाद बाहर आकर पुन: मस्तक पर आचमन करके अपने वस्त्र बदलें। वस्त्र बदलते पर तिल आदि कीजिये। कुछ रात बाकी रहे, तभी स्नान किया जाए तो उत्तम और भगवान विष्णु को पूर्ण रूप से संतुष्ट करने वालपा है। सूर्योदय काल में किया गया स्नान मध्यम श्रेणी का है। जब तक कृत्तिका अस्त न हो, तभी तक का स्नान उत्तम है, अन्यथा बहुत विलम्ब से किया गया स्नान कार्तिक स्नान की श्रेणी में नहीं आता है। स्नान का तत्व जानने वाले मनीषियों ने चार तरह के स्नान बताये हैं।
1- वायव्य- गोधूलि में किया हुआ स्नान वायव्य स्नान कहलता है।
2- वारुण- समूद्र आदि के जल में स्नान किया जाए तो उसे वारुण कहते हैं।
3- ब्राह्म- वेद मंत्रों के उच्चारण पूर्वक जो स्नान होता है, उसका नाम ब्राह्म है।
4- दिव्य- मेघों अथवा सूर्य की किरणों द्बारा जो जल अपने शरीर पर गिरता है, उसे दिव्य स्नान कहते हैं।
ब्राह्मणों, क्षत्रियों और वैश्यों को मंत्रोच्चार पूर्वक स्नान करना चाहिए। स्त्री और सूद्र के लिए बिना मंत्र के लिए स्नान का विधान है। प्राचीनकाल में श्रेष्ठ तीर्थ पुष्कर में कार्तिक मास में पुष्कर स्नान करने से व्याघ्र योनि से राजा प्रभंजन मुक्त हुए थ्ो। नन्दा भी कार्तिक में पुष्कर का स्पर्श पाकर परम धाम को प्राप्त हुई थी। अत: जो भी श्रद्धाभाव से श्रद्धावान कार्तिक में प्रात: काल उठकर तीर्थ में स्नान करता है, वह सब पापों से मुक्त होकर परब्रह्म को प्राप्त कर लेता है। इस पर तनिक भी संशय नहीं करना चाहिए। यह जीव का कल्याण करने वाला है।