जानिये रत्न धारण करने के मंत्र

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माणिक्य
माणिक्य सोने की अंगूठी में धारण करना चाहिए। माणिक्य कम से कम ढाई रत्ती का होना चाहिए।
धारण करने का मंत्र है-
ऊॅँ घृणि: सूर्याय नम:।
अंगूठी को शुक्ल पक्ष के किसी रविवार को सूर्योदय के समय धारण करना चाहिए। धारण करने से पहले अंगूठी को कच्चे दूध या गंगा जल में रखना चाहिए। इसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराके पुष्प, चंदन और धूप से उपासना करनी चाहिए। यह रत्न धारण की उपासना पद्धति है। इसके साथ ही उपरोक्त मंत्र का 7००० बार जप करना चाहिए। यह अंगूठी दाहिने हाथ की तर्जनी अंगुली में धारण करनी चाहिए।

पुखराज
इसे सोने की अंगूठी में धारण करना चाहिए। तीन रत्ती से कम के पुखराज को धारक करने से कोई लाभ नहीं होता है। रत्न कम से कम तीन, सात व बारह रत्ती का होना चाहिए।
धारण करने का मंत्र है-
ऊॅँ बृ बृहस्पतये नम:।
उपासना पद्धति के बाद उपरोक्त मंत्र का 19००० बार जप करके किसी शुक्ल पक्ष के गुरुवार को श्रद्धापूर्वक धारण करना चाहिए। इसे तर्जनी अंगुली में में धारण करने का विधान है।

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हीरा
हीरे को चांदी या प्लेटिनम की अंगूठी में धारण करना श्रेयस्कर होता है। हीरा कम से कम 2.5 सेंट से लेकर 1.5 रत्ती का धारण करना श्रेयस्कर होता है।

धारण करने का मंत्र है-
ऊॅँ शुं शुक्राय नम:।
उपरोक्त मंत्र का उपासना पद्धति के बाद 19००० बार जप करके धारण करना चाहिए। रत्न को शुक्ल पक्ष के किसी शुक्रवार को प्रात:काल कनिष्ठिका में धारण करना चाहिए।

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मोती
मोती दो, चार, छह या 11 रत्ती का चांदी की अंगूठी में पहनना श्रेयस्कर होता है। सोमवार या गुरुवार को रत्न खरीदना श्रेयस्कर होता है।
धारण करने का मंत्र है-
ऊॅँ सों सोमाय: नम:।
मोती किसी शुक्ल पक्षके सोमवार को उपासना विधि के पश्चात उपरोक्त मंत्र का 11००० बार जप करके धारण करना चाहिए। यह अंगूठी संध्या के समय चंद्र दर्शन करके धारण करनी चाहिए।

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मूंगा
मूंगा सोने में धारण करना चाहिए। यह छह रत्ती से कम का नहीं होना चाहिए।
धारण करने का मंत्र है-
ऊॅँ अं अंगारकाय नम:।
उपासना विधि की पश्चात उपरोक्त मंत्र का 11००० बार जप करना चाहिए। शुक्ल पक्ष के किसी मंगलवार को सूर्योदय के घंटे भर बाद धारण करना श्रेयस्कर होता है। यह अंगूठी किसी भी हाथ की अनामिका में धारण करनी चाहिए।

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पन्ना
इस र‘ को चांदी की अंगूठी में पहनना श्रेयस्कर होता है। रत्न तीन रत्ती से कम का नहीं होना चाहिए।
धारण करने का मंत्र है-
ऊॅँ बुं बुधाय नम:
उपासना विधि के पश्चात उपरोक्त मंत्र का 9००० बार जप करके अंगूठी को धारण करना चाहिए। किसी भी शुक्ल पक्ष के किसी बुधवार को इसे सूर्योदय के दो घंटे पश्चात धारण करना श्रेयस्कर होता है। इस अंगूठी को दाहिने हाथ की कनिष्ठिका में धारण करना चाहिए।

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नीलम
नीलम का वजन चार रत्ती से कम नहीं होना चाहिए। इसे पंचधातु या स्टील की अंगूठी में धारण करना श्रेयस्कर होता है।
धारण करने का मंत्र है-
ऊॅँ शं शनैश्चराय नम:।
उपासना विधि के पश्चात अंगूठी को उपरोक्त मंत्र का 23००० बार जप करके धारण करना चाहिए। इसकी अंगूठी को सूर्यास्त के दो घंटे पहले शनिवार के दिन मध्यमा में धारण करना श्रेयस्कर होता है।

गोमेद
गोमेद छह रत्ती से कम का नहीं होना चाहिए। इसे अष्टधातु या चांदी की अंगूठी में धारण करना चाहिए।
धारण करने का मंत्र है-
ऊॅँ रां राहुवे नम:।
सूर्यास्त के दो घंटे बाद उपासना विधि के पश्चात शनिवार के दिन उपरोक्त मंत्र का 18००० बार जप करके धारण करना चाहिए। इसे मध्यमा में धारण करना चाहिए।

लहसुनिया
इस रत्न को चांदी की अंगूठी में धारण किया जाता है। रत्न तीन रत्ती से कम का नहीं होना चाहिए।
धारण करने का मंत्र है-
ऊॅँ के केतवे नम:।
उपासना विधि के पश्चात इसे शनिवार की आधी रात के समय इसे मध्यमा या कनिष्ठिका में धारण करें। उपरोक्त मंत्र का जप 17००० बार करके इसे धारण करना चाहिए।           

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