जानिए, संतों के लक्षण क्या है

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गवान श्री राम ने संतों के लक्षण संसार को बताये हैं। भगवान श्री राम के श्रीमुख से संतों के लक्षण तब संसार को विदित हुए, जब श्री राम ने अपने प्रिय अनुज भरत जी को संतों के लक्षण बतायें। उन्होंने संतों के लक्षण बताते हुए कहा-
संतन्ह के लच्छन सुनु भ्राता। अगनित श्रुति पुरान बिख्याता।।
संत असंतन्हि कै असि करनी। जिमि कुठार चंदन आचरनी।।
काटइ परसु मलय सुनु भाई। निज गुन देइ सुगंध बसाई।।
ताते सुर सीसन्ह चढ़त जग बल्लभ श्रीखंड।
अनल दाहि पीटत घनहिं परसु बदन यह दंड।।
विषय अलंपट सील गुनाकर। पर दुख दुख सुख सुख देख्ो पर।।
सम अभूतरितु बिमद बिरागी। लोभामरष हरष भय त्यागी।।
कोमल चित दीनन्ह पर दाया। मन बच क्रम मम भगति अमाया।।
सबहि मानप्रद आपु अमानी। भरत प्रान सम मम ते प्रानी।।
बिगत काम मम नाम परायन। सांंति बिरति बिनती मुदितायन।।
सीतलता सरलता मयत्री। द्बिज पद प्रीति धर्म जनयत्री।।
ए सब लच्छन बसहिं जासु उर। जानेहु तात संत संतत फुर।।
अर्थात-
हे भाई, संतों के लक्षण यानी गुण असंख्य हैं, जो वेद और पुराणों में प्रसिद्ध हैं। संत और असंत की करनी ऐसी है, जैसे कुल्हाड़ी चंदन को काटती है, क्योंकि उसका स्वभाव या काम ही वृक्षों को काटना है। लेकिन चंदन अपने स्वभाववश अपना गुण देकर उसे यानी काटने वाली कुल्हाड़ी को सुगंध से सुवासित कर देता है। इसी गुण के कारण चंदन देवताओं के सिर पर चढ़ता है और जगत का प्रिय हो रहा है और कुल्हाड़ी को दंड यह मिलता है कि उसको आग में जलाकर फिर घन से पीटते हैं।
संत विषयों में लम्पट यानी लिप्त नहीं होते हैं। शील और सद्गुणों की खान होते हैं। उन्हें पराया दुख देखकर दुख और पराया सुख देखकर सुख होता है। वे सबमें, सर्वत और सब समय समता रखते हैं। उनके मन में किसी के प्रति शत्रुता नहीं होती, वे मद से रहित और वैराग्यवान होते हैं और लोभ, क्रोध, हर्ष और भय का त्याग किए रहते हैं। उनका चित्त कोमल होता है। वे दीनों पर दया करते हैं और मन, वचन और कम से मेरी निष्कपट अर्थात विशुद्ध भक्ति करते हैं। सबको सम्मान देते हैं। पर स्वयं मानरहित होते हैं। हे भरत भाई, वे प्राणी अर्थात संतजन मेरे प्राणों के समान है। उनको कोई कामना नहीं होती हैं। शांति, वैराग्य, विनय और प्रसन्नता के घर होते हैं। उनमें शीतलता, सरलता, सबके प्रति मित्रभाव और ब्राह्मण के चरणों में प्रीति होती है, जो धर्मों को उत्पन्न करने वाली है। हे तात, ये सब लक्षण जिसके हृदय में बसते हो, उसको सदा सच्चा संत जानना चाहिए।

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