जानिए,सप्तपुरियों की महिमा, जहां मिलता है जीव को मोक्ष

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janiye-saptpuriyo-ki-mahima-jaha-milata-he-mokchhसनातन परम्परा में सप्तपुरियों का विशेष महत्व है। सप्तपुरियों को मोक्षदायिनी नगरी माना जाता है। इन परम पवित्र नगरियों में काशी, कांची अर्थात कांचीपुरम, अयोध्या, द्बारका, मथुरा, माया अर्थात हरिद्बार व अवंतिका अर्थात उज्जयिनी शामिल हैं।

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सप्तपुरियों में अयोध्या में राम, मथुरा में कृष्ण, वाराणसी में शिव, द्बारका में कृष्ण, उज्जयिनी में शिव, हरिद्बार में भगवान विष्णु, कांचीपुरम में माता पार्वती शामिल हैं। धर्म शास्त्रों का एक मत यह भी है कि अयोध्या समेत सातों पुरियां काशी में वर्तमान है। ऐसा पुराणों व अन्य धर्म शास्त्रों का वचन है। इसी आधार पर उनकी काशी में जिन-जिन स्थानों पर संस्थितियां हैं।

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वहां-वहां पर ही उन पुरियों की यात्रा मानी जाती है। यह यात्रा वैसे तो नित्य करने का विधान है, लेकिन इस यात्रा की विश्ोषता यह है कि किस ऋतु में किस पुरी की यात्रा करनी चाहिए, इसका भी स्पष्ट उल्लेख किया गया है। इस सम्बन्ध में निर्देशित भी किया गया है। ब्रह्मवैवर्त्तपुराण के मुताबिक शंखोद्बार अर्थात शंखूधारा के पास द्बारका है। यहां की वर्षा ऋतु में करनी चाहिए।

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बिंदुमाधव के पास विष्णु कांची हैं। वहां की यात्रा शरद ऋतु में करनी चाहिए। सोमेश्वर के वायव्यकोण में रामकुंड पर अयोध्या है, जहां रामेश्वर नाम का शिवलिंग है। वहां क यात्रा ग्रीष्म ऋतु में करनी चाहिए। असीसंगम पर गंगाद्बार अर्थात हरिद्बार है। जहां की शिशिर ऋतु में यात्रा करनी चाहिए। वृद्धकाल से कृत्तिवासेश्वर तक उज्जयिनी और अवंतिका हैं। जहां की यात्रा हेमेंत ऋतु में करने का विधान है। उत्तरार्क अर्थात बकरियां कुंड से उत्तर वरुणा नदी तक मथुरा है। यहां की यात्रा वसंत ऋतु में होती है। काशी और शिवकांची तो काशी में चहुओर व्याप्त हैं ही।

‘काशी कांची चमायाख्यातवयोध्याद्वारवतयपि, मथुराऽवन्तिका चैताः सप्तपुर्योऽत्र मोक्षदाः’;

‘अयोध्या-मथुरामायाकाशीकांचीत्वन्तिका, पुरी द्वारावतीचैव सप्तैते मोक्षदायिकाः।’

अयोध्या
रामायण के अनुसार अयोध्या की स्थापना मनु ने की थी। कई शताब्दियों तक यह नगर सूर्य वंश की राजधानी रहा। अयोध्या एक तीर्थ स्थान है और मूल रूप से मंदिरों का शहर है। अयोध्या नगरी उत्तर प्रदेश के प्रचानतम नगरों में से एक है। इस नगरी को साकेत नाम से भी जाना जाता है। अयोध्या को अथर्ववेद में ईश्वर का नगर बताया गया है और इसकी तुलना स्वर्ग से की गई है। त्रेता युग में महाराजा दशरथ अयोध्या के राजा हुआ करते थे।

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भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम का जन्म इसी नगरी में इन्हीं के राजवंश में हुआ था। राम की जन्म-भूमि अयोध्या उत्तर प्रदेश में सरयू नदी के दाएं तट पर अवस्थित है। अयोध्या सनातन धर्मियों यानी हिंदुओंं के प्राचीन और सात पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है। यहां आदिनाथ सहित पांच जैन तीर्थंकरों का जन्म भी हुआ था।

मथुरा

मथुरा उत्तर प्रदेश के पवित्रतम नगरों में एक है। यह भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण की पावन नगरी है। यह नगर वृंदावन और गोवर्धन पर्वत के पास बसा हुआ है। मथुरा शहर भगवान कृष्ण की जन्मस्थली है।वराह पुराण में नगरी को लेकर कहा गया है कि इस नगरी में जो लोग शुद्ध विचार से निवास करते हैं, वे मानव के रूप में साक्षात देवता हैं। उत्तानपाद के पुत्र घ्रुव ने मथुरा में तपस्या करके नक्षत्रों में स्थान प्राप्त किया था।यहां को लेकर एक मान्यता है कि यहां रहने से जीव पाप रहित हो जाते हैं और इसमें रहने करने वालों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। श्राद्ध कर्म इत्यादि का विशेष फल मथुरा में प्राप्त होता है।

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मथुरा में श्राद्ध करने वालों के पूर्वजों को आध्यात्मिक मुक्ति मिलती है। इस नगरी में श्राद्ध कर्म करने देश-विदेश से श्रद्धालु आते है। पुराणों में मथुरा की महिमा का वर्णन मिलता है। पृथ्वी के यह पूछने पर कि मथुरा जैसे तीर्थ की महिमा क्या है? महावराह ने कहा था- ’’मुझे इस वसुंधरा में पाताल अथवा अंतरिक्ष से भी मथुरा अधिक प्रिय है। वराह पुराण में भी मथुरा के संदर्भ में उल्लेख मिलता है, यहां की भौगोलिक स्थिति का वर्णन मिलता है। यहां मथुरा की माप बीस योजन बतायी गयी है। इस मंडल में मथुरा, गोकुल, वृन्दावन, गोवर्धन आदि नगर, ग्राम एवं मंदिर, तड़ाग, कुण्ड, वन एवं अनगणित तीर्थों के होने का विवरण मिलता है। इनका विस्तृत वर्णन पुराणों में मिलता है। गंगा के समान ही यमुना के गौरवमय महत्व का भी विवरण किया गया है। पुराणों में वर्णित राजाओं के शासन एवं उनके वंशों का भी वर्णन मिलता है।

हरिद्बार

हरिद्बार नगरी सप्तपुरियों में से एक प्रमुख नगरी है। जिन चार स्थलों पर कुम्भ का आयोजन होता है, उनमें से हरिद्बार नगरी एक है। इस नगरी के गंगा तट पर कुम्भ मेला लगाया जाता है। यहां मनसा देवी मंदिर, चंडी देवी मंदिर, माया देवी मंदिर और भारत माता मंदिर के प्रसिद्ध मंदिर हैं। यह नगर उत्तराखंड में स्थित है। भारत के पौराणिक ग्रंथों और उपनिषदों में हरिद्बार को मायापुरी बताया गया है। मान्यता है कि गंगा नदी के किनारे बसा हरिद्बार अर्थात हरि तक पहुंचने का द्बार हैं। हरिद्बार को धर्म की नगरी माना जाता है। सैकडों सालों से लोग मोक्ष की तलाश में इस पवित्र भूमि में आते रहे हैं। इस शहर की पवित्र नदी गंगा में डुबकी लगाने और अपने पापों का नाश करने के लिए साल भर श्रद्धालुओं का आना जाना यहां लगा रहता है।

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यहां गंगाघाट पर दैनिक रूप से गंगा आरती होती है, जिसमें हजारों लोग शामिल होते है। यह आरती भव्य होती है, जिसमें विधिवत मां गंगा का पूजन-अर्चन किया जाता है। जब पूजन- अर्चन होता है तो उस अवधि में यहां स्नान नहीं किया जाता है, बल्कि सभी मां गंगा के पूजन में लग जाते है। यहां गंगा नदी पहाड़ी इलाकों को पीछे छोड़ती हुई हरिद्बार से ही मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है।संपूर्ण हरिद्बार में सिद्धपीठ, शक्तिपीठ और अनेक नए पुराने मंदिर बने हुए हैं। यहां हरिद्बार के निकट की ऋषिकेश है, जो कि बेहद पवित्र स्थल माना जाता है, यह ऋषि-मुनियों की तपोस्थली माना जाता है। यदि आप हरिद्बार जाएं तो आपको निश्चित तौर पर यहां भी कुछ समय गुजारना चाहिए। यहां गंगा स्नान बहुत सहजता से हो जाता है। यहां गंगा जल भी अपेक्षाकृत ज्यादा स्वच्छ है।

वाराणसी अर्थात काशी

वाराणसी अर्थात काशी अर्थात बनारस विश्व का प्राचीनतम शहर है। यह गंगा नदी किनारे बसा है। लाखों वर्षों से सनातन धर्मियों का केन्द्र रहा है। दो नदियों वरुणा और असि के मध्य बसा होने के कारण इसका नाम वाराणसी रखा गया है। वाराणसी यानी काशी को भारत की आध्यात्मिक राजधानी माना जाता है, जो अपने अद्भुत घाट मंदिर और संगीत के लिए भी प्रसिद्ध है। गंगा नदी के बाएं तट पर स्थित, ‘वाराणसी’ शहर सप्तपुरियों में से एक माना जाता है। यह भगवान शिव की नगरी मानी जाती है। पुराणों के अनुसार भगवान शंकर ने माता पार्वती की इच्छा से निवास किया था। यह पावन नगरी भगवान शिव को अति प्रिय है। इसे ज्ञान की नगरी भी कहा जाता है। वाराणसी’ का प्राचीन नाम ‘काशी’ है। नगरी को मोक्षदायिनी माना गया है, इसी कारण लाखों श्रद्धालु यहां स्नान-ध्यान और पूजा करने आते हैं। यहां जीवन का अंतिम समय गुजारने भी बहुत से भक्त आते हैं, ताकि उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो सके।
‘पद्म पुराण’ में इस नगरी का उल्लेख है, पुराण के अनुसार दक्षिणोत्तर में ‘वरणा’ और पूर्व में ‘असि’ की सीमा से घिरे होने के कारण इस नगर का नाम ‘वाराणसी’ पड़ा। ‘अथर्ववेद’ में वरणावती नदी का उल्लेख किया गया है, जोकि संभवत: आधुनिक वरुणा का ही समानार्थक है। ‘अग्नि पुराण’ में नासी नदी का उल्लेख भी मिलता हैं।

 ‘काशी’ का नाम ‘वाराणसी’ भी मिलता है –

‘समेतं पार्थिवंक्षत्रं वाराणस्यां नदीसुतः, कन्यार्थमाह्वयद् वीरो रथनैकेन संयुगे।’

‘ततो वाराणसीं गत्वा अर्चयित्वा वृषभध्वजम्, कपिलाह्नदे नरः स्नात्वा राजसूयमवाप्नुयात्।’

‘मत्स्य पुराण’ में देवाधिदेव शिव वाराणसी का वर्णन करते हुए कहते हैं –

“वाराणस्यां नदी पु सिद्धगन्धर्वसेविता।

प्रविष्टा त्रिपथा गंगा तस्मिन् क्षेत्रे मम प्रिये॥”

अर्थात् – “हे प्रिये, सिद्ध गंधर्वों से सेवित वाराणसी में जहाँ पुण्य नदी त्रिपथगा गंगा आती है, वह क्षेत्र मुझे प्रिय है।”

ऐसी मान्यता है कि यह धार्मिक नगरी भगवान शिव को समर्पित है और उनके त्रिशूल पर स्थित है। इस त्रिशूल के तीन शूल हैं। उत्तर में ओंकारेश्वर, मध्य में विश्वेश्वर तथा दक्षिण में केदारेश्वर है। और ये तीनों ही गंगा तट पर स्थित हैं। वाराणसी का विस्तार गंगा नदी के दो संगमों वरुणा और असी नदी से संगम के बीच बताया जाता है। इन संगमों के बीच की दूरी लगभग 2.5 मील है। इस दूरी की परिक्रमा हिन्दुओं में ‘पंचकोसी यात्रा’ या ‘पंचक्रोशी परिक्रमा’ कहलाती है और इसे विशेष रूप से शुभ फलदायी माना जाता है। यह भी माना जाता है कि वाराणसी का निर्माण सृष्टि रचना के प्रारम्भिक चरण में ही हुआ था। पुराणों में वाराणसी को ब्रह्मांड का केंद्र माना गया है। यह मान्यता है यहां के कण-कण में साक्षात भगवान शिव निवास करते हैं। यह प्राचीन नगर प्रथम ज्योििर्तलंग का भी शहर है। वाराणसी में लगभग हर एक चौराहे पर एक मंदिर स्थित है। वाराणसी के मंदिरों में काशी विश्वनाथ मंदिर, ढुंढिराज गणेश, अन्नपूर्णा मंदिर, काल भैरव, दुर्गा जी का मंदिर, संकटमोचन, तुलसी मानस मंदिर, नया विश्वनाथ मंदिर, भारतमाता मंदिर, संकटा देवी मंदिर व विशालाक्षी मंदिर आदि प्रमुख हैं।

कांचीपुरम

कांचीपुरम को कांची भी कहा गया है। कांचीपुरम तीर्थ दक्षिण भारत की काशी माना जाता है, जो मद्रास से 45 मील की दूरी पर दक्षिण-पश्चिम में स्थित नगरी है। यह आधुनिक काल में कांचीवरम के नाम से भी प्रसिद्ध है।
कांचीपुरम को लेकर ऐसी अनुश्रुति है कि इस क्षेत्र में प्राचीन काल में ब्रह्मा जी ने देवी के दर्शन के लिए कठोर तप किया था। कांची हरिहरात्मक पुरी कहलाती है। इसके दो भाग शिवकांची और विष्णुकांची हैं। सम्भवत: कामाक्षी अम्मान मंदिर ही यहां का शक्तिपीठ हैं। कांची तमिलनाडु में वेगवथी नदी के तट पर बसा हुआ एक शहर एक पवित्र तीर्थस्थल है। यहाँ बहुत से मंदिर हैं। जैसे कामाक्षी अम्मान मंदिर, कौलासनाथर मंदिर, एकम्बरेश्वर मंदिर, और वैकुण्ठ पेरूमल मंदिर स्थापित हैं। कांचीपुरम की महत्ता का वर्णन तो महाकवि कालिदास ने भी किया है।

उज्जैन

उज्ज्ौन अर्थाता उज्जयिनी का प्राचीनतम नाम अवन्तिका था। यहां अवन्ति नामक राजा के नाम पर था। इस जगह को पृथ्वी का नाभिदेश भी माना गया है। महर्षि सान्दीपनि का आश्रम भी यहीं हुआ करता था। उज्ज्ौन महाराज विक्रमादित्य की राजधानी थी। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में देशान्तर की शून्य रेखा उज्जयिनी से ही शुरू हुई मानी जाती हैं। इसे कालिदास की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। यहां हर बारह वर्ष पर सिहस्थ कुंभ मेला लगता है।

द्बारका
द्बारका गुजरात के जामनगर में बसा हुआ शहर है। पवित्र द्बारका शहर चार धामों में से एक है, इन चार धामों में द्बारका के अलावा बद्रीनाथ, जगन्नाथ पूरी और रामेश्वरम हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाराजा रैवतक के समुद्र में कुश बिछाकर यज्ञ करने के कारण ही इस नगरी का नाम कुशस्थली हुआ था। बाद में त्रिविकम भगवान ने कुश नामक दानव का वध भी यहीं किया था। त्रिविक्रम का मंदिर द्बारका में रणछोड़जी के मंदिर के निकट है। माना जाता है कि महाराज रैवतक (बलराम की पत्नी रेवती के पिता) ने प्रथम बार समुद्र में से कुछ भूमि बाहर निकाल कर यह नगरी बसाई होगी। हरिवंश पुराण के मुताबिक कुशस्थली उस प्रदेश का नाम था, जहां यादवों ने द्बारका बसाई थी। विष्णु पुराण के अनुसार आनर्त के रेवत नामक पुत्र हुआ था, जिसने कुशस्थली नामक पुरी में रह कर आनर्त पर राज्य किया। विष्णु पुराण से पता चलता है कि प्राचीन कुशावती के स्थान पर ही श्रीकृष्ण ने द्बारका बसाई थी-‘कुशस्थली या तव भूप रम्या पुरी पुराभूदमरावतीव, सा द्बारका संप्रति तत्र चास्ते स केशवांशो बलदेवनामा’। द्बारका नगरी भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण ने बसाई थी, इसका शास्त्रों में विवििध स्थानों पर वर्णन मिलता है। भगवान श्री कृष्ण से सम्बन्धित तमाम उल्लेख धर्म ग्रंथों में मिलते हैं।

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Durga Shaptshati

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