जन्माष्टमी पर करें श्रीकृष्ण लीलाओं का श्रवण

0
852

भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण का भाद्रपक्ष कृष्णाष्टमी की रात को 12 बजे मथुरा में अवतरण हुआ था। इस दिन बाल लीलाओं के श्रवण से भगवान शीघ्र प्रसन्न होते हैं। श्रीमद्भागवत गीता में वर्णित श्री कृष्ण लीलाओं के पठन पाठन का इस दिन विशेष महत्व होता है। इस दिन श्रद्धालु व्रत रखते हैं और रात्रि में 12 बजे श्री कृष्ण जन्मोत्सव मनाते हैं, जिसे जन्माष्टमी कहा जाता है। जन्माष्टमी के दूसरे दिन दधिकांदो या फिर नंदोत्सव मनाया जाता है। उत्सव में लोग भगवान को कपूर, हल्दी, दही व केसर अर्पित करते है।

पावन पर्व की कथा-

Advertisment

सत्ययुग में एक तेजस्वी राजा केदार हुआ करते थ्ो। उसकी पुत्री का नाम वृंदा था। वृंदा ने आजीवन कौमार्य व्रत धारण कर यमुना के पावन तट पर कठिन तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु प्रकट हुए। उन्होंने वृंदा को वर मांगने के लिए कहा तो वृंदा ने उन्हें पति रूप में मांग लिया। इस पर भगवान उसे स्वीकार कर अपने साथ ले गए। इस कुमारी में जिस वन में तपस्या की थी, वही अब वृंदावन के नाम से जाना जाता है। यमुना के दक्षिणी तट पर मधु नामक दैत्य ने मधुपुरी नामक नगर बसाया था। यही मधुपुरी मथुरा है। द्बापर के अंत में इस मथुरा में उग्रसेन नाम के राजा राज्य करते थे। उग्रसेन का राज्य सिंहासन उनके पुत्र कंस ने बलपूर्वक छीन लिया था और स्वयं राज्य करने लगा था। इसी कंस की बहन देवकी का विवाह यदुवंशी वसुदेव के साथ हुआ था।
एक दिन कंस देवकी को ससुराल पहुंचाने जा रहा था कि आकाशवाणी हुई। इसमें कहा गया- हे कंस, जिस देवकी को तो बड़े प्रेम से उसके ससुराल छोड़ने जा रहा है। उसी के आठवें गर्भ से उत्पन्न हुआ बालक तेरा संहार करेगा। आकाशवाणी को सुनकर कंस देवकी के ससुराल पहुंचा और देवकी के पति वसुदेव की हत्या करने लगा। तब देवकी ने प्रार्थना की कि भाई, तुम मेरे पति को छोड़ दो, मै तुम्हें अपनी संतानें सौप दूंगी। तुम जैसी मर्जी हो वैसा व्यवहार करना। इस पर  कंस ने देवकी की विनती स्वीकार कर ली और वह मथुरा लौट आया और उसने वसुदेव और देवकी को कैद कर लिया। देवकी के गर्भ से जब पहला बालक पैदा हुआ तो वह कंस के सामने लाया गया। कंस ने 8वें गर्भ की बात पर विचार किया और उसे छोड़ने लगा, तभी नारद जी आए और उन्होंने कंस से कहा- हो सकता है यहीं आठवां गर्भ हो। इसके जन्म को लेकर कुछ रहस्य भी तो हो सकता है। इस पर कंस भयभीत हो गया और इस क्रम में कंस ने जन्में सात बालकों को मौत के घाट उतार दिया।
कंस को जब देवकी के आठवें गर्भ की सूचना मिली तो उसने बहन और बहनोई बहनोई को एक विशेष कारागार में डाल दिया और कड़ा पहरा लगा दिया। भादो के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण ने अवतरण लिया। उस समय भूतल पर सब सो रहे थे और अंधकार छाया हुआ था। मूसलाधार वर्षा हो रही थी लेकिन वासुदेव जी की कोठरी में अलौकिक प्रकाश छाया हुआ था। उन्होंने देखा की शंख, चक्र, गदा व पद्म धारण किए चतुर्भुज भगवान विष्णु उनके सामने हैं। भगवान के इस अनुपम रूप देखकर देवकी और वसुदेव उनके चरणों में गिर गए।

भगवान ने तब कहा- अब मैं बालक का रूप ग्रहण करता हूं। तुम मुझे तत्काल गोकुल में नंद जी के यहां पहुंचा दो। उसके यहां अभी-अभी कन्या ने जन्म हुआ है। मेरे स्थान पर उस कन्या को कंस को सौंप देना। हालांकि उस समय प्रकृति ने भयानक रूप धारण कर रखा है लेकिन ईश्वरीय लीला के चलते सब पहरेदार सो गए और कारागार के ताले और फाटक स्वत: खुल गए। जब वसुदेव जी श्री कृष्ण को ले जा रहे थ्ो तो जल मार्ग में यमुना जी व अन्य जलचरों ने भगवान के अवतार श्री कृष्ण के चरणों को स्पर्श किया। साथ ही यमुना ने वासुदेव जी को मार्ग भी दे दिया।

तब वसुदेव जी श्री कृष्ण को सूप में रखकर गोकुल में नंद जी के घर पहुंचे। वहां पर सभी लोग सो रहे थे लेकिन दरवाजे खुले थे। वसुदेव जी ने सोई हुईं नंद रानी की बगल में सो रही कन्या को उठा लिया और उनके स्थान पर श्रीकृष्ण को सुला दिया और कन्या को लेकर वे पुन: कारागार पहुंचे। उनके वहां पहुंचने के साथ ही कारागार के ताले बंद हो गए और पहरेदार भी जाग गए। इसकी सूचना कंस को मिली तो वह वहां पहुंचा और जब कंस ने कन्या को पकड़कर शिलापट पटक कर मारने के लिए हाथ में उठाया तो कन्या उसके हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गई। आकाश में जाकर उसने कहा- मुझे मारने से क्या लाभ है? तेरा काल तो गोकुल में सुरक्षित है। यह दृश्य देखकर कंस चकित रह गया और उसने श्री कृष्ण को मारने के लिए तमाम असुर गोकुल भ्ोजे लेकिन सभी असफल रहे। श्री कृष्ण ने सभी का बाल काल में ही वध कर दिया।
बड़े होने पर श्री कृष्ण जब मथुरा पहुंचे तो उन्होंने का कंस का वध किया और उग्रसेन को राज्यगद्दी पर बिठाया। अपने माता पिता को कारागार से मुक्त किया।

सनातन धर्म, जिसका न कोई आदि है और न ही अंत है, ऐसे मे वैदिक ज्ञान के अतुल्य भंडार को जन-जन पहुंचाने के लिए धन बल व जन बल की आवश्यकता होती है, चूंकि हम किसी प्रकार के कॉरपोरेट व सरकार के दबाव या सहयोग से मुक्त हैं, ऐसे में आवश्यक है कि आप सब के छोटे-छोटे सहयोग के जरिये हम इस साहसी व पुनीत कार्य को मूर्त रूप दे सकें। सनातन जन डॉट कॉम में आर्थिक सहयोग करके सनातन धर्म के प्रसार में सहयोग करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here