कार्तिक मास में दीप दान का विशेष महत्व है। इसकी महिमा का गान शास्त्रों में किया गया है। स्त्रियां और पुरुषों ने जन्म से लेकर जो भी पाप कर्म किए हैं, वह कार्तिक दीप दान से नष्ट हो जाते हैं। इसे लेकर प्राचीन कथा का उल्लेख जरूरी प्रतीत हो रहा है। कथा के अनुसार प्राचीनकाल में द्रविड़ देश में एक बुद्ध नामक ब्राह्मण रहता था। उसकी स्त्री बड़ी दुष्टा और दुराचारी थी। उसके संग दोष से पति की आयु क्षीण होकर वह मृत्यु को प्राप्त हो गया। पति के मर जाने पर वह उसी तरह से घृणित कार्यों में लगी रही। लोक निंदा से उसे तनिक भी लज्जा नहीं आती थी। उसके न तो कोई पुत्र था और न भाई था।
उसका जीवन अधर्म के पथ पर था। वह सदा भिक्षा के अंन्न का भोजन करती थी। वह अपने हाथ से बनाए शुद्ध भोजन का ेन खाकर मांकर लाए गए बासी भोजन को ग्रहण करती थी। तीर्थ यात्रा से वह हमेशा दूर ही रहती थी। कभी सत्संग नहीं किया। एक वह ऐसे ही भ्रमण करता हुआ कोई तीर्थ यात्री उसके यहां आया। वह विद्बान ब्राह्मण था। उसका नाम कुत्स था। उस ब्राह्मणी को निंदित कार्य में संलिप्त देखकर विद्बान ब्राह्मण ने उसे पूछा कि ओ मूढ़ नारी, तू मेरी बात ध्यान से सुनों। यह देह पानी के बुलबुले के समान है। एक दिन इसका नाश होना निश्चित है। इस अनित्य शरी को यदि तू नित्य मानती है तो तो अपने मन बैठे हुए इस मोह को विचारपूर्वक त्याग दे।
सबसे श्रेष्ठ भगवान विष्णु का चिंतन कर और उन्हीं की लीला कथा को आदरपूर्वक सुन। उन्होंने कहा कि आगे जब कार्तिक मास आए तो तब भगवान दामोदर की प्रसन्नता के लिए स्नान-दान इत्यादि करके दीपदान आवश्य कर ले। भगवान विष्णु की परिक्रमा करके उन्हें प्रणाम करयह व्रत विधवा और सौभाग्यवती सभी स्त्रियों के करने के योग्य है। यह सभी पापों की शांति और उपद्रवों को शांत करने वाला है। तू मेरी बात मानकर निश्चित पूर्वक ही कार्तिक मास में दीप दान करके भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त कर लेगी। ऐसा कहकर कुत्स ब्राह्मण तो वहां से चला गया। वह दुराचारी ब्राह्मणी भी पश्चाताप करते हुए इस निश्चय पर पहुंची कि मैं कार्तिक मास का व्रत आवश्य करूंगी। कार्तिक मास आने पर उसने पूरे महीने भर प्रात: सूर्योदय काल में स्नान और दप दान किया।
कुछ काल के पश्चात आयु समाप्त होने पर उसकी आयु समाप्त हो गई। उसकी मृत्यु हो गई। वह स्वर्ग लोक को गई और समयानुसार उसकी मुक्ति भी हो गई। कार्तिक व्रत में तत्पर होकर जो व्यक्ति दीप दान की इस कथा को सुनता है और स्वयं दीपदान करता है। वह निश्चित ही मोक्ष को प्राप्त कर लेता है।