चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत का जन्म मुजफ्फरनगर के कस्बा सिसौली में 6 अक्टूबर 1935 में एक किसान परिवार में हुआ। गांव के ही एक जूनियर हाईस्कूल में कक्षा सात तक पढ़ाई की। पिता का नाम चौहल सिंह टिकैत और माता का नाम श्रीमती मुख्त्यारी देवी था। चौधरी चौहल सिंह टिकैत बालियान खाप के चौधरी थे।
पिता की मृत्यु के समय चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत मात्र आठ साल के थे। आठ वर्ष की आयु में इन्हें बालियान खाप की जिम्मेदारी संभालनी पड़ी। सर्वखाप मंत्री चौधरी कबूल सिंह के सहयोग से चौधरी टिकैत ने अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह किया। चौधरी टिकैत ने वर्ष 1950, 1956, 1963, 2006, 2010 में बड़ी सर्वखाप पंचायतों में पूर्ण रूप से भागीदारी रखते हुए दहेज प्रथा, मृत्युभोज, दिखावा, नशाखारी, भ्रूण हत्या आदि जैसी सामाजिक कुरीतियों, बुराइयों पर नियंत्रण करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
1986 में बने भाकियू के राष्ट्रीय अध्यक्ष वर्ष 1986 में किसान, बिजली, सिंचाई, फसलों के मूल्य आदि को लेकर पूरे उत्तर प्रदेश के किसान आंदोलित थे। तब एक किसान संगठन की आवश्यकता महसूस की गई। तब 17 अक्टूबर 1986 को सिसौली में एक महापंचायत हुई, जिसमें सभी जाति-धर्म व सभी खापों के चौधरियों, किसानों व किसान प्रतिनिधियों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और सर्वसम्मति से चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत को भारतीय किसान यूनियन का राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोनीत किया गया।
पंद्रह साल के संघर्ष के परिणाम स्वरूप किसानों का कर्जा पूर्ण रूप से भारत सरकार द्वारा माफ किया गया तथा किसानों को उर्वरक सब्सिडी भाकियू की मांग के आधार पर सीधे देने की घोषणा की गई। साथ ही पिछली वार्ताओं के कारण आज कृषि ऋण का ब्याज 12 प्रतिशत से घटकर चार प्रतिशत तक पहुंचा है। भारतीय किसान यूनियन द्वारा 2006 में प्रधानमंत्री को विश्व व्यापार संगठन में कृषि पर करार रोकने के लिए 25 लाख किसानों के हस्ताक्षर सौंपे गए, जिस कारण यह करार नहीं हो पाया। वर्ष 2004 से आज तक भाकियू के विरोध के कारण सीड्स बिल संसद में पास नहीं हो पाया।
अस्वस्थता के चलते चौ. टिकैत इस वार्ता में नहीं जा सके
वर्ष 2001 से 2010 तक जंतर-मंतर नई दिल्ली में किसानों की समस्याओं जैसे विश्व व्यापार संगठन, बीज विधेयक 2004, जैव परिवर्तित बीज, किसानों के कर्ज माफी, फैसलों का उचित लाभकारी मूल्य आदि को लेकर प्रत्येक वर्ष विशाल किसान पंचायत का सफल आयोजन किया। अस्वस्थता के दौरान भी चौ. टिकैत फरवरी 2011 में प्रेस के माध्यम से ऐलान किया कि देश के प्रधानमंत्री किसानों की समस्याओं पर गंभीर नहीं हैं। अगर प्रधानमंत्री किसान प्रतिनिधिमंडल से वार्ता नहीं करते तो दिल्ली को चारों तरफ से बंद किया जायेगा। इससे घबराकर प्रधानमंत्री ने 8 मार्च 2011 को ही किसान प्रतिनिधि मंडल को बुलाकर वार्ता की। अस्वस्थता के चलते चौ. टिकैत इस वार्ता में नहीं जा सके। भारत के प्रधान मंत्री डा.मनमोहन सिंह ने फोन कर चौ. टिकैत के स्वास्थ्य की जानकारी लेते हुए किसान समस्याओं को गंभीरता से विचार करने का आश्वासन दिया। चौ. टिकैत ने ठीक 7 बजकर 08 मिनट पर अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर मिलते ही हर तरफ शोक की लहर व्याप्त हो गई।
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कामयाबी के पीछे पत्नी का हाथ
कहते हैं कि हर इंसान की सफलता के पीछे एक स्त्री का हाथ होता है। ऐसी ही एक शख्सियत चौधरी टिकैत के साथ भी जुड़ी हुई थी। बाबा के नाम से मशहूर किसान मसीहा चौधरी टिकैत की कामयाबी के पीछे उनकी स्वर्गीय पत्नी बलजोरी का हाथ था। बलजोरी देवी अधिक शिक्षित नहीं थी, लेकिन उन्हें टिकैत के बालियान खाप का मुखिया होने का अहसास था। बलजोरी देवीे चौधरी टिकैत के प्रत्येक कार्य का विशेष ध्यान रखती थीं। खेत से लौटने के बाद बलजोरी देवी टिकैत के हुक्का-पानी व खाना आदि का विशेष ध्यान रखती थीं। 1987 में भाकियू के गठन के बाद बलजोरी देवी ने कंधे से कंधा मिलाकर हर कार्य में टिकैत का साथ दिया। भाकियू को विशेष पहचान देने वाले करमूखेड़ी आंदोलन में बलजोरी देवी ने अपने साथ सैकड़ों मातृशक्ति को लेकर धरने पर उनका नेतृत्व किया। समय-समय पर बलजोरी देवी टिकैत को सलाह भी देती थीं, जिसे टिकैत अमल में भी लाते थे। चौधरी टिकैत ने बलजोरी देवी की सक्रियता के चलते उन्हें महिला विंग की राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित कर दिया था। जिस के चलते उन्होंने धरने प्रदर्शनों में बढ़ चढकर हिस्सा लेना शुरू कर दिया था। लखनऊ पंचायत में हुए लाठीचार्ज में बलजोरी देवी गंभीर रुप से घायल हो गयी थीं। बावजूद इसके उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। बलजोरी देवी ने टिकैत को घर-बार व खेत खलिहानों की चिंता से पूरी तरह मुक्त कर रखा था। टिकैत की माता के देहांत के बाद बलजोरी देवी के जिम्मे पूरे घर की देखभाल थी। बीमारी के चलते अंतिम समय में बलजोरी देवी काफी समय तक बिस्तर पर रहीं, लेकिन तब भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और चौधरी टिकैत को प्रोत्साहित करती रहीं। इसके अलावा महिला विंग की कार्यकत्रियों में भी जोश भरती रही।
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किसान ज्योति बुझी
किसानों के मसीहा और भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष महेंद्र सिंह टिकैत की रविवार को प्रात: सांसें थमते ही सिसौली में किसान ज्योति भी बुझ गयी। इसे संयोग या यूं कहें कि किसान पुत्र की अंतिम विदाई को यह किसान ज्योति भी सहन नहीं कर सकी। सिसौली में बने किसान भवन परिसर स्थित किसान ज्योति करीब पांच दशकों से जल रही थी। एक छोटे से कमरे में स्थित इस पीतल के बड़े से कटोरे में जली ज्योति को हवा और बारिश से बचाने के लिए चारों ओर शीशे लगे हुए हैं। यह किसान ज्योति बाबा के घर से किसान भवन परिसर में वर्ष 1988 में स्थापित कर दी गयी थी। इससे पहले यह किसान ज्योति भाकियू सुप्रीमो के घर जलती थी। बाबा टिकैत ही इसे जलाते थे। अब बाबा की तरह यह किसान ज्योति भी इतिहास बन गयी है। इस ज्योति को जलाने की प्रेरणा उन्हें हरिद्वार स्थित शांतिकुंज की अखंड ज्योति से मिली थी। बाद में वहीं किसान ज्योति सिसौली स्थिति किसान भवन में किसानों के शक्ति का केन्द्रीय स्थल बना। किसानों के मन में बाबा टिकैत की तरह ही किसान ज्योति के लिए श्रद्धा और आदर का भाव था। बाबा और ज्योति एक रूप थे। 15 मई 2011 को बाबा के प्रयाण के साथ ही किसान ज्योति भी बुझ गई।
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जीवन किसानों को न्योछावर
महेंद्र सिंह टिकैत एक मजबूत व नेक दिल इंसान जिसका दिल हमेशा मजलूम किसानों व मजदूरों के लिए धड़का। इसे इत्तफाक ही कहेंगे कि 27 जनवरी 1987 को मुजफ्फरनगर जिले के करमूखेड़ी बिजलीघर पर सिर्फ बिजली की समस्याओं को लेकर शुरु हुआ एक छोटा सा धरना तत्कालीन सरकार की अदूरदर्शिता के चलते न सिर्फ एक राष्ट्रीय आंदोलन में तब्दील हो गया बल्कि जाट बिरादरी की एक खाप के मुखिया चौ. महेंद्र सिंह टिकैत को अंतर्राष्ट्रीय नेता और किसानों के महानायक के रुप में प्रतिष्ठित कर गया और फिर इस महानायक ने अपनी पूरी जिंदगी किसानों के दुख दर्द को समर्पित कर दी। चौ. टिकैत के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर अगर नजर दौड़ाएं तो स्पष्ट होगा कि करमूखेड़ी में उमड़ी किसानों की भीड़ पर की गई गोलीबारी और उसमें दो किसानों अकबर और जयपाल सिंह की शहादत ने टिकैत के कोमल मन के अंदर एक ऐसे ज्वालामुखी को जन्म दे दिया कि 1 मार्च 1987 को करमूखेड़ी बिजलीघर पर हुई आक्रोश प्रदर्शन रैली में टिकैत की हुंकार, देश ही नहीं विदेशों में भी सुनी गई। यही कारण था कि देशी ही नहीं विदेशी मीडिया का ध्यान भी इस रैली ने आकर्षित किया। भारतीय किसान यूनियन के बिना किसी प्रयास के आयोजित हुई इस रैली में किसानों और मजदूरों की लाखों की संख्या में मौजूदगी और रोष के बावजूद उनकी शांतप्रियता सरकार को किसानों मजदूरों की ताकत का अहसास कराने के लिए काफी थी। टिकैत रातों रात किसानों मजदूरों के भगवान बन चुके थे। उनकी एक आवाज पर जन सैलाब उमड़ता था। टिकैत ने भाकियू को अराजनैतिक घोषित करते हुए राजनेतओं से दूरी बनाए रखी। 11 अगस्त 1987 को उप्र के मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह सिसौली आये और किसानों को आश्वासन दिया परन्तु टिकैत और उनकी भाकियू इससे संतुष्ट नहीं हुई और असहयोग आंदोलन की घोषणा कर दी। उन्होंने मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह को करवे से ओक में पानी पिलाया। 28 सितंबर 1987 को किसानों से अपने क्षेत्र के सांसद व विधायकों के द्वारा उनकी मांगे न उठाने के कारण बहिष्कार किया। 17 अक्टूबर 1987 को उप्र के मुख्यमंत्री श्री वीरबहादुर सिंह की मुजफ्फरनगर रैली के बहिष्कार की घोषणा की गई। वक्त गुजरता गया। मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश की सत्ता संभाली तो वे 15 सितंबर 1994 को सिसौली आये और चौ. टिकैत को लखनऊ आने का निमंत्रण दिया। इस दौरान चौ. टिकैत और उनकी भाकियू अनवरत किसानों के हित में लड़ती रही। टिकैत ने जब यह देखा कि सत्ता के गलियारों में पैठ बनाए बिना वह किसानों की समस्याओं का निराकरण नहीं करवा पाएंगे तो उन्होंने अपनी गैर राजनीतिक सोच बदलते हुए 10 अक्टूबर 1996 को भारतीय किसान कामगार पार्टी नामक राजनैतिक शाखा का गठन किया और उसकी कमान ठा. भानु प्रताप सिंह को सौंपी। 17 अप्रैल 1999 पूरे विश्व में किसान दिवस के रुप में मनाया गया। 24 मार्च 2001 को चौ. महेंद्र सिंह टिकैत व भाकियू के प्रतिनिधियों की मुख्यमंत्री निवास पर रामप्रसाद गुप्त (मुख्यमंत्री) के साथ मांग पत्र पर वार्ता हुई तथा कई मुद्दों पर सहमति के बाद भी सरकारी आदेश नहीं हुए। 13 सितंबर 2001 को उप्र के मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह को 20 सूत्रीय मांग पत्र दिया, जिस पर वार्ता करने की बात कहकर फिर कभी वार्ता नहीं की। 2 अक्टूबर 2001 को महात्मा गांधी के जन्म दिवस पर बंगलौर में एक बड़ी किसान पंचायत की गई, जिसमें विश्व व्यापार संगठन में कृषि समझौते के कारण भारत के किसान व कृषि के होने वाले नुकसान के लिये सरकार को चेतावनी दी गयी। 28 दिसंबर 2001 विश्व व्यापार संगठन के विरुद्ध साझा लड़ाई लड़ने के लिए चौ. टिकैत व शिवसेना सुप्रीमों बालठाकरे की मुंबई में भेंट वार्ता हुई। इसी बीच चौ. टिकैत ने किसानों के सम्मान के लिए बागपत कोर्ट में जमानत नहीं कराई और 12 नवंबर 2007 को जेल चले गए। जेल में वह काफी बीमार रहे और 24 दिसंबर 2007 को कोर्ट ने उन्हें रिहा कर दिया गया। 23 मार्च 1992 को बरेली जंक्शन पर ट्रेन में हुई तोड़फोड़ के मामले में 27 अक्तूबर 2009 को बाबा टिकैत को बरेली एसीजेएम कोर्ट में पेश होकर जमानत करानी पड़ी। दिल्ली जंतर-मंतर पर धरने के दौरान उनकी गिरफ्तारी हुई और रिहा कर दिया गया।। चौ. टिकैत ने पूरा जीवन किसानों के हितों के लिए न्योछावर कर दिया।
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छात्रों के भी नेता : बाबा टिकैत
बाबा टिकैत की पहचान देश भर में किसान नेता के रूप में है। लेकिन किसानों के इस मसीहा ने उतने ही जोश से छात्रों के मुद्दों को भी उठाया और उसे मुकाम तक पहुंचाया। इतना ही नहीं अगर छात्रों का समर्थन करने आए बाबा टिकैत को उनकी बात में कोई खोट नजर आती थी, तो वे उन्हें आइना दिखाने से भी हिचकिचाते नहीं थे। भरी सभा में ही खरी-खोटी भी सुना देते थे। किसानों की पृष्ठभूमि लिए चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में फक्कड़ स्वभाव और साफ दिलवाले इस नेता का कई बार आगमन हुआ। हाल के मामले की बात करें तो तत्कालीन कुलपति प्रो. एसके काक द्वारा हॉस्टल खाली कराने की मुहिम पर छात्रों ने विरोध स्वरूप बाबा टिकैत को विवि बुला लिया। टिकैत पहुंच भी गए। काफी देर तक उनकी कुलपति से बातचीत भी हुई और जब कुलपति ने अपना पक्ष उन्हें बताया तो बाहर आकर भरी सभा में उन्होंने कहा ठीक तो कह रहा है बड़ा मास्टर, जिनकी नौकरी लग गई वो बाहर जाकर रह लें, यहां पढ़न वाले रह लेंगे। इतना कहकर उन्होंने अपना मैसेज भी दे दिया। बाबा टिकैत कुलपति को बड़ा मास्टर कहकर ही संबोधित करते थे। इसी तरह मूल्यांकन घोटाले में उन्होंने विवि की व्यवस्था को लेकर तत्कालीन कुलपति प्रो. ओझा को भी नहीं बक्शा और खूब खरी-खोटी सुनाई। छात्र नेता बाबा की बेबाक छवि को आज भी याद करते हैं। विवि के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष कुलदीप उज्ज्वल का कहना है कि बाबा टिकैत का इमानदारी और जुझारूपन वाले व्यक्तित्व से उन्हें काफी कुछ सीखने को मिला है। छात्र नेता स्नेहवीर पुंडीर का कहना है कि मृत्यु से कुछ महीने पूर्व तक जिस तरह की उनमें ऊर्जा और जोश था, वह बेहद प्रभावकारी है। इस तरह के व्यक्तित्व वाले विरले ही होते हैं।
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मौन हो गया धरतीपुत्रों का रहनुमा
खेड़ीकरमू की घटना के बाद प्रदेश व देश की सरकार को टिकैत की ताकत का अहसास हो गया था। भोपा का नईमा प्रकरण हो या समय-समय पर हुए गन्ना आंदोलन। हमेशा सरकारों ने टिकैत के आगे सिर नवाया। टिकैत एक ऐसा नाम रहा जो किसानों के स्वाभिमान को लेकर कभी नहीं झुका और उनके आंदोलन इतिहास बन गए। चौ. महेन्द्र सिंह टिकैत इस दुनिया में नहीं रहे। लेकिन उनके नेतृत्व में हुए किसानों के आंदोलन इतिहास बन गए हैं। किसान आंदोलनों में बाबा टिकैत ने कभी अपनी जान की परवाह नहीं की। किसान उत्पीड़न पर वह हमेशा सरकार और प्रशासन के सामने दीवार बनकर खड़े रहे। खेड़ीकरमू में दो किसानों की हत्या के बाद उग्र आंदोलन के चलते किसानों ने जब एक पीएसी जवान को मार डाला तो प्रशासन और सरकार किसानों की ताकत को समझ गई। मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह से लेकर कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी तक ने टिकैत के आगे शीश नवाया है। मुख्यमंत्री रहते वीर बहादुर सिसौली आए थे। बीते वर्ष किसान व किसान नेताओं के उत्पीड़न के खिलाफ विदुरकुटी (दारानगरगंज) में स्वाभिमान बचाओ रैली हुई थी। जिसमें रालोद सुप्रीमो चौधरी अजित सिंह समेत किसान मसीहा चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत ने शिरकत की थी। रैली के मंच से सूबे में किसानों के उत्पीड़न के खिलाफ बाबा टिकैत ने प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को युद्ध के लिए ललकारा था। यही नहीं उन्होंने मायावती के खिलाफ तल्ख टिप्पणी भी की थी। जिससे सूबे की राजनीति में हड़कंप मच गया था। इस टिप्पणी के आरोप में भाकियू सुप्रीमो स्वर्गीय टिकैत के खिलाफ बिजनौर शहर कोतवाली में मुकदमा दर्ज कर उनकी गिरफ्तारी की तैयारी की गई थी। इसके लिए बिजनौर, मेरठ, मुजफ्फरनगर जिलों के कई थानों की पुलिस तमाम रास्तों की नाकेबंदी करती रही, पुलिस के कप्तानों समेत बड़े अधिकारी सड़कों पर दौड़ लगाते रहे, लेकिन बाबा प्रशासन की सभी नाकेबंदी को तोड़कर सुरक्षित सिसौली पहुंच गये। प्रशासन ने सिसौली गांव की घेराबंदी की, तो किसानों ने जमकर विरोध किया। लेकिन भाकियू अध्यक्ष न सरकार से डरे और न झुके। आखिरकार प्रदेश सरकार को ही लचीला रुख अपनाना पड़ा। भाकियू अध्यक्ष के मन में हमेशा किसानों का दर्द छलकता रहा। तीन दिन पहले उन्होंने अपनी लड़खड़ाती आवाज में कहा था कि मेरे शरीर की हड्डियां अगर जवाब न देती तो सरकार को हिला देता।
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मेरठ की आग से भड़के थे शोले
बाबा टिकैत के इंकलाबी इतिहास में मेरठ का नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। देश ही नहीं पूरी दुनिया में मेरठ और भाकियू एक साथ सुर्खियों में रहे थे। कह सकते हैं मेरठ के आंदोलन की राह पर चलकर ही टिकैत ने दिल्ली के हुक्मरानों की नाक में नकेल डाली थी। 27 जनवरी 1988 से लेकर 19 फरवरी 1988 तक के वो 25 दिन शायद ही कोई मेरठ वासी भूल पाया हो। किसानों की समस्याओं को लेकर कमिश्नरी के समीप सीडीए ग्राउंड में भाकियू राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में उनकी फौज धूल उड़ाती हुई आ गयी। देखते-देखते कमिश्नर के आसपास ही नहीं सीडीए का मैदान भाकियू के आन्दोलन में तब्दील हो गया। लाखों की संख्या में आये इन किसानों के आन्दोलन की आग के शोले लखनऊ में भड़के। उनके आन्दोलन को कुचलने के लिए तत्कालीन कमिश्नर वीके दीवान ने मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह से बात करके 20 कंपनी पीएसी, 11 कंपनी सीआरपीएफ लगाई। आन्दोलनकारियों को रोकने के लिए मेरठ-मुजफ्फरनगर मार्ग पर लगातार फ्लैग मार्च भी कराया। इस आन्दोलन के दौरान ठंड अधिक होने के कारण सात किसानों की ठंड से मौत भी हुई पर किसानों ने धैर्य नहीं छोड़ा और हक के लिए लड़ाई लड़ते रहे। सैकड़ों भट्ठियां यहां चढ़ी। सैकड़ों गांव से इतनी खाद्यान्न सामग्री यहां आती थी कि आसपास गांव के लोग ही नहीं शहरी भी यहां खाना खाते थे। वीररस के सुप्रसिद्ध कवि हरिओम पंवार काव्य पाठ करके आन्दोलनकारियों में जुनून पैदा करते थे तो करनाल की भूरो, शांति व किशनी यहां भजन सुनाती थी। उस वक्त फोर्स नहीं किसानों ने स्वयं ही यातायात व्यवस्था का संचालन किया। किसी की हिम्मत इस आन्दोलन दौरान धरनास्थल की ओर वाहन ले जाने की नहीं होती थी। लोकदल के अध्यक्ष हेमवती नंदन बहुगुणा, पूर्व राज्यपाल वीरेन्द्र वर्मा, चौधरी चरण सिंह की पत्नी गायत्री देवी, चौधरी अजित सिंह, मेनका गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह, पर्यावरणविद् सुंदर लाल बहुगुणा, शाही इमाम अब्दुल्ला बुखारी समेत देश भर के नेताओं का यहां तांता लगा रहा और टिकैत के आंदोलन का समर्थन किया। यह एक ऐसा मंजर था जो न किसी ने देखा था और न शायद देखने को मिले। शहर के लोगों के लिए हैरत में डालने वाले क्षण थे। क्या ऐसा किसान आंदोलन होता है, क्या ऐसे अपनी मांगें मनवायी जाती हैं, क्या ऐसे सरकार को झुकाया जाता है, ऐसे तमाम सवाल लोगों की जबान पर थे। टिकैत की एक झलक और उनकी ठेठ भाषा भी बहुत लुभाती थी। आंदोलन के 24 दिन बाद प्रदेश सरकार की ओर से मंत्री सईदुल हसन व हुकुम सिंह ने किसानों के बीच आकर उनसे वार्ता की। इस तरह यहां धरना तो समाप्त हो गया पर टिकैत ने प्रदेश सरकार के खिलाफ असहयोग आन्दोलन चलाने की घोषणा कर दी। इसी दौरान उन्होंने किसानों से अपील की थी कि वह बिजली के बिल न दें। किसी भी सरकारी अधिकारी को गांव में न घुसने दें। इसका असर हर गांव में हुआ। मेरठ के इस ऐतिहासिक आंदोलन के बाद किसान इतने मजबूत हो गए कि विभिन्न महकमों के अफसर गांवों में जाने से कतराने लगे। इस आंदोलन से ही टिकैत किसानों के मसीहा बने और देश दुनिया में नाम बुलंद हुआ। मेरठ के लोगों के जहन में आज भी आंदोलन की याद ताजा है। बहरहाल, टिकैत के दुनिया से चले जाने से सब गमजदा हैं। यही आंदोलन था जिसके बाद टिकैत ने 25 अक्टूबर 1988 को नई दिल्ली स्थित वोट क्लब पर आन्दोलन का बिगुल फूंका।
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किसान आंदोलन
चौधरी चरण सिंह के बाद अगर किसी ने किसानों की असल समस्या समझी और उसके लिए आगे आकर संवेदनहीन तंत्र से जूझकर किसानों के हक की लड़ाई लड़ी तो वे चौधरी टिकैत ही थे। उनके जाने के बाद किसानों को अपने हक के लिए आंदोलन का रास्ता दिखाने वाला दूर-दूर तक कोई निस्वार्थी नेता नजर नहीं आता है। उनके जाने से किसान आंदोलन को गहरा झटका लगा है। विडंबना है कि सरकार तेल कंपनियों का घाटा पाटने के लिए तेल के दाम तो नौ महीनों में नौ बार बढ़ा देती है, लेकिन कथित विकास कायरें की भेंट चढ़ती किसानों की कृषियोग्य भूमि और किसानों के उपज की वाजिब कीमत देने-दिलाने की चिंता की पहल कहीं से नहीं हो रही है। ऐसे ही मुद्दे और सवाल टिकैत के आंदोलन की नींव बनते रहे। 1987 में बिजली की बढ़ी दरों के खिलाफ खेड़ीकरमू पावर हाउस पर टिकैत के किए गए आंदोलन ने उनकी पहचान राष्ट्रीय स्तर पर पुख्ता की और इस आंदोलन का ही असर था कि सरकार को उनके आगे झुकना पड़ा। तत्कालनी मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह को सिसौली आकर किसानों की पंचायत को संबोधित कर उनकी मांगें माननी पड़ी। ये था टिकैत की गर्जना का असर। इसके बाद तो टिकैत की आवाज जब-जब गूंजी, सरकारें कांप गईं। देखते ही देखते वे किसान से भगवान बन गए और उनका पैतृक गांव सिसौली किसानों का तीर्थस्थल। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के निधन के बाद टिकैत ने सफलतापूर्वक किसान आंदोलन की बागडोर अपने हाथों में ली और 17 अक्तूबर 1986 को गैर राजनीतिक संगठन भारतीय किसान यूनियन की स्थापना कर किसानों की जुझारू वृत्ति को धार दी। उनके खाते में 1990 में जनता दल सरकार के खिलाफ प्रदर्शन, लखनऊ पंचायत का आयोजन एवं सात सूत्री मांग को लागू करने के लिए आंदोलन, गाजियाबाद के किसानों को मुआवजा दिलाने के लिए प्रदर्शन, चिनहट काथुआटा के किसानों की अधिग्रहीत भूमि के पर्याप्त मुआवजे के लिए आंदोलन जैसी असाधारण सफलताएं शामिल हैं। उन्होंने कई बार विश्र्व व्यापार संगठन और सरकार की कृषि नीति में किसानों के साथ नाइंसाफी के विरोध का भी बिगुल फूंका। दुखद है कि आज के किसान की कद्र देश की शक्ति और सामर्थ्य का अहसास कराने वाले जय जवान-जय किसान के नारे में कैद होकर रह गई है, इसकी मुक्ति का संग्राम छेड़ने वाले टिकैत अब नहीं रहे।
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गिरफ्तार व रिहा
•15 जुलाई 1990 लखनऊ पचायत में जाते हुए पहली बार चौ. टिकैत बरेली में गिरफ्तार किए गए।
•31 दिसंबर 1991 लखनऊ पंचायत में जाते हुए मेरठ में गिरफ्तार हुए।
•22 जून 1992 लखनऊ पंचायत में जाते फैजाबाद में गिरफ्तार किए गए।
•31 जुलाई 1992 गाजियाबाद पंचायतमें जाते हुए मोदीनगर में गिरफ्तार हुए।
•23 सितंबर 1992 रामकोला पंचायत में जाते हुए रामकोला में गिरफ्तार हुए।
•7 अकटूबर 1992 सिकंदराबाद पंचायत में जाते हुए अलीगढ़ में गिरफ्तार किए गए।
•14 दिसम्बर 1997 मुजफ्फरनगर में रेल रोको आंदोलन करते हुए गिरफ्तार किए गए।
•12 फरवरी 2000 लखनऊ पंचायत में जाते हुए मुरादाबाद में गिरफ्तार हुए।
•13 मार्च 2000 लखनऊ पंचायत में जाते हुए रामपुर में गिरफ्तार किए गए।
•12 जनवरी 2001 हरिद्वार मुद्दे पर आंदोलन के दौरान बुलंदशहर में गिरफ्तार किए गए।
•19 फरवरी 2001 कृषि उतपाद के आयात के विरोध में मुंबई के आजाद मैदान में गिरफ्तार।
•19 मार्च 2001 कृषि को विश्व व्यापार संगठन से बाहर करने की मांग को लेकर किसान घाट पर गिरफ्तार।
•16 सितंबर 2002 लखनऊ किसान महापंचायत में जाते हुए रामपुर में गिरफ्तार।
•6 अक्टूबर 2002 लखनऊ विधान सभा के सामने गिरफ्तार।
•13 दिसंबर 2002 पांवटा साहिब (हिमाचल प्रदेश) में किसान पंचायत में गिरफ्तार व रिहा।
•15 दिसंबर 2002 बस्ती जाते समय रामपुर में गिरफ्तार।
•2 सितंबर 2004 मुंबई आजाद मैदान में एक लाख किसानों के साथ गिरफ्तार।
•20 नवंबर 2007 बागपत में आपराधिक मामले में टिकैत को समर्पण करने के बाद जेल भेजा।
•3 सितंबर 2009 को जंतर-मंतर पर किसानों के साथ गिरफ्तार।
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भाकियू की संघर्ष गाथा
•27 जनवरी 1987 से 30 जनवरी 1987 तक करमूखेड़ी (मुजफ्फरनगर) बिजलीघर पर 4 दिवसीय धरना।
•27 दिसंबर 1987 से 19 फरवरी 1988 तक कमिश्नरी मेरठ पर 35 सूत्रीय मांगों को लेकर 44 दिवसीय धरना।
•6 मार्च 1988 से 23 जून 1988 तक रजबपुर (मुरादाबाद) में 110 दिवसीय धरना एवं रेल रोको अभियान।
•25 अक्टूबर 1988 से 31 अक्टूबर 1988 तक नई दिल्ली वोट क्लब पर 7 दिवसीय धरना।
•3 अगस्त 1989 से 10 सितंबर 1989 तक गंग नहर के किनारे कस्बे भोपा में नईमा काण्ड पर 39 दिवसीय धरना।
•2 अक्टूबर 1989 को देश के कई किसान संगठनों के साथ दिल्ली के वोट क्लब पर धरना।
•14 जुलाई 1990 से 22 जुलाई 1990 तक लखनऊ (उत्तर प्रदेश) में 9 दिवसीय धरना।
•2 अक्टूबर 1991 को नई दिल्ली में खाद की सब्सिडी एवं अन्य समस्याओं को लेकर धरना। 31 दिसंबर 1991 से 17 जनवरी 1992 तक लखनऊ (उत्तर प्रदेश) में किसानों की मांगों (मुख्यत बिजली एवं खाद के बढ़े मूल्य) को लेकर 18 दिवसीय धरना।
•3 मार्च 1993 से 4 मार्च 1993 तक नई दिल्ली में डन्कल प्रस्ताव एवं बीज सत्याग्रह को लेकर 2 दिवसीय धरना।
•2 जून 1992 से 3 जुलाई 1992 तक लखनऊ में किसानों की 7 सूत्रीय मांगों (मुख्यत दस हजार रुपये का कर्जा माफी) को लेकर धरना।
•2 जून 1992 से 17 अगस्त 1992 तक गाजियाबाद में किसानों की भूमि अधिकरण व अन्य मुद्दों को लेकर 77 दिवसीय धरना।
•4 फरवरी 1993 से 6 फरवरी 1993 तक चौ. टिकैत की लखनऊ बाराबंकी, सुल्तानपुर, जौनपुर, मऊ, बलिया और गोरखपुर सहित अनेक जनपदों में किसान पंचायतें।
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•किसानों की भूमिअधिग्रहण व गिरफ्तार किसानों की रिहाई की मांगों को लेकर 4 दिवसीय धरना।
•26 सितंबर 1993 से 4 अक्टूबर 1993 तक समस्त उत्तर प्रदेश में किसानों की 7 सूत्रीय मांगों (मुख्यत रामकोला के किसानों पर गोली काण्ड, गन्ने का भुगतान तथा 10 हजार रुपये के कर्जे माफी जैसे मुद्दे को लेकर नौ दिवसीय धरना)।
•17 सितंबर 1993 से 19 सितंबर 1993 तक नई दिल्ली में किसानों की मांगों को लेकर (डन्कल प्रस्ताव एवं बीज सत्याग्रह सहित) 3 दिवसीय धरना।
•16 अगस्त 1995 को उप्र के मुख्यमंत्री सुश्री मायावती से लखनऊ में चौ. टिकैत की वार्ता।
•17 सितंबर 1995 को उप्र की राजधानी लखनऊ में किसान महापंचायत।
•7 मार्च 1996 को किसान घाट पर देश बचाओ किसान बचाओ महापंचायत आयोजित की गई, जिसमें उत्तर भारत के राज्यों के लगभग दो लाख किसानों ने हिस्सा लिया। 17 फरवरी 1999 को उप्र की प्रत्येक तहसील पर किसान प्रदर्शन की घोषणा।
•9 मार्च 1999 को भाकियू में अन्दरुनी विवादों व किसानों का पूर्ण सहयोग न मिलने पर टिकैत द्वारा यूनियन को भंग करने की घोषणा। मुख्यालय सिसौली में किसानों की यूनियन को पुन: संगठित करने के दबाव के कारण पुन : संगठित करने की घोषणा की गई।
•13 अक्टूबर 1999 को बाराबंकी में किसान महापंचायत में सरकार की किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ असहयोग आंदोलन जारी रखने की घोषणा।
•29 अक्टूबर 1999 को विश्व व्यापार संगठन के खिलाफ एवं कृषि उपज का लाभकारी समर्थन मूल्य देने की मांग को लेकर नई दिल्ली जंतर मंतर पर एक दिवसीय धरना।
•13 फरवरी 2000 को लखनऊ के बेगम हजरत पार्क में किसान महापंचायत।
•17 मार्च 2000 को अमेरिकी राष्ट्रपति श्री बिल क्लिंटन के भारत आने पर उनके नाम विश्व व्यापार संगठन के कारण भारत के किसानों को होने वाले नुकसान के संबंध में भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को एक ज्ञापन दिया।
•25 मार्च 2000 को उप्र के मुख्यमंत्री रामप्रसाद गुप्त से चौ. टिकैत की वार्ता।
•5 सितंबर 2000 को दक्षिणी एशिया के किसानों का एक सम्मेलन नई दिल्ली में संपन्न हुआ जिसमें विश्व व्यापार संगठन द्वारा किसानों के शोषण, विकासशील देशों की कृषि की व्यवस्था को नष्ट करने की साजिश का मुकाबला करने के लिये 10 सूत्रीय प्रस्ताव पारित किया गया।
•26 सितंबर 2000 को नई दिल्ली में राष्ट्रपति को विश्व व्यापार संगठन से कृषि को बाहर करने के संबंध में एक ज्ञापन दिया।
•29 दिसंबर 2000 को किसान विरोधी केंद्र सरकार की नीतियों के विरोध में किसान घाट से संसद घेराव आंदोलन।
•3 नवंबर 2001 को उप्र के गन्ना उत्पादक किसानों की बरबादी एवं कृषि को विश्व व्यापार संगठन से बाहर रखने के लिये संसद मार्ग नई दिल्ली में प्रदर्शन किया।
•8 नवंबर 2002 को उप्र की चीनी मिल चलाने के लिए मंसूरपुर रेलवे ट्रेक एक दिन के लिए बंद किया और अगले दिन से पशुओं के साथ जेल भरो आंदोलन की घोषणा।
•8 अप्रैल 2008 को उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ लखनऊ में किसान महापंचायत।
•चौ. टिकैत बिजनौर की एक रैली में मायावती पर टिप्पणी को लेकर हुए हंगामे के बाद 2 अप्रैल 2008 को अदालत में पेश हुए। इसको लेकर कई दिनों तक सिसौली का सुरक्षा बलों ने घेराव भी किया।
•27 अक्तूबर 2009 को बरेली एसीजेएम कोर्ट में पेश होकर 23 मार्च 1992 को बरेली जंक्शन पर ट्रेन में की गई तोड़फोड़ के मामले में जमानत करानी पड़ी।
•मार्च 2010 में दिल्ली जंतर-मंतर पर गिरफ्तारी और बाद में रिहा।पर आंदोलन के दौरान बुलंदशहर में गिरफ्तार किए गए।
•19 फरवरी 2001 कृषि उतपाद के आयात के विरोध में मुंबई के आजाद मैदान में गिरफ्तार।
• 19 मार्च 2001 कृषि को विश्व व्यापार संगठन से बाहर करने की मांग को लेकर किसान घाट पर गिरफ्तार।
•16 सितंबर 2002 लखनऊ किसान महापंचायत में जाते हुए रामपुर में गिरफ्तार।
•16 अक्टूबर 2002 लखनऊ विधान सभा के सामने गिरफ्तार। 13 दिसंबर 2002 पांवटा साहिब (हिमाचल प्रदेश) में किसान पंचायत में गिरफ्तार व रिहा।
•15 दिसंबर 2002 बस्ती जाते समय रामपुर में गिरफ्तार।
•2 सितंबर 2004 मुंबई आजाद मैदान में एक लाख किसानों के साथ गिरफ्तार।
•20 नवंबर 2007 बागपत में आपराधिक मामले में टिकैत को समर्पण करने के बाद जेल भेजा।
•3 सितंबर 2009 को जंतर-मंतर पर किसानों के साथ गिरफ्तार