नयी दिल्ली। काशी-मथुरा मंदिर विवाद की अब बारी है, लम्बे समय ये भी हिंदुओं की आस्था का केंद्र रहे है।
संबंधी याचिका की सुनवाई उच्चतम न्यायालय में चार सप्ताह के लिए टल गयी।
मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन-सदस्यीय खंडपीठ के समक्ष हिन्दू पुजारियों के संगठन विश्वभद्र पुजारी पुरोहित महासंघ और जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिकाएं सुनवाई के लिए सूचीबद्ध थीं, लेकिन इसे सर्कुलेशन नोटिस के जरिये चार हफ्ते के लिए टाल दिया गया।
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विश्वभद्र पुजारी पुरोहित महासंघ ने पूजास्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की संवैधानिक वैधता को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है। यह केंद्रीय कानून 18 सितंबर, 1991 को पारित किया गया था। यह कानून कहता है कि 15 अगस्त 1947 को देश की आजादी के समय धार्मिक स्थलों का जो स्वरूप था उसे बदला नहीं जा सकता। हालांकि, अयोध्या विवाद को इससे बाहर रखा गया था, क्योंकि उस पर कानूनी विवाद पहले से चल रहा था।
याचिकाकर्ता ने काशी विश्वनाथ एवं मथुरा मंदिर विवाद को लेकर कानूनी प्रक्रिया फिर से शुरू करने की मांग की है। याचिका में कहा गया है कि इस अधिनियम को कभी चुनौती नहीं दी गई और न ही किसी अदालत ने न्यायिक तरीके से इस पर विचार किया।
इस बीच, जमीयत उलेमा ए हिंद ने वकील एजाज मकबूल के माध्यम से अर्जी दायर करके हिंदू पुजारियों की याचिका का विरोध किया है। जमीयत की वादकालीन याचिका में कहा गया है कि शीर्ष अदालत हिन्दू पुजारियों के संगठन विश्वभद्र पुजारी पुरोहित महासंघ की याचिका पर नोटिस जारी न करें।
जमीयत का मानना है कि हिन्दू पुजारी संगठन की याचिका पर नोटिस जारी करने से गलत संदेश जायेगा।
खासतौर से अयोध्या विवाद के बाद अब मुस्लिम समुदाय के लोगों के मन में अपने पूजा स्थलों के संबंध में भय पैदा होगा, जिससे देश का धर्मनिरपेक्ष ताना बाना नष्ट होगा।
जमीयत ने न्यायालय से अनुरोध किया है कि उसे संबंधित मामले में पक्षकार बनाया जाये।