कड़वे बोल—-
कुटिल वचन सबसे बुरा ,जा से होत न चार साधु वचन जल रूप है बरसे अमृत धार।।
संत कबीर दास जी कह गए है— कड़वे बोल बोलना सबसे बुरा काम है कड़वे बोल से किसी बात का समाधान नहीं होता अपितु वही सज्जन विचार और बोल अमृत के समान है ।
लोग कड़वा क्यों बोलते हैं ?
शायद इसलिए कि उनमें आत्मविश्वास की कमी होती है, वह दूसरों की प्रगति से खुश नहीं होते। वह इस बात को स्वीकारते नहीं हैं अपितु सदैव इसी प्रयास में लगे रहते हैं कि सामने वाला गलती करें या ना करें, वह उसे अवश्य चोट पहुंचाएंगे ही परंतु ईश्वर सभी को समान दृष्टि से देखते हैं और समय आने पर उस व्यक्ति को एहसास कराते हैं कि वह कहां गलत था।
यहां मैं उन लोगों की मानसिकता के विषय में वर्णन कर रही हूं जो चाहे- अनचाहे बोलते रहते हैं ,बोलने से तात्पर्य निरर्थक बातों का है ।ज्यादा बोलने वालों को इस बात का एहसास तक नहीं होता कि वह कब ,क्या ,किससे बोल रहे हैं एवं सामने वाला उसके वाक्य से कितना आहत हुआ….. पर उसे आत्मिक संतुष्टि मिल गई ऐसे लोग भावनाओं में बहते हैं एवं स्वयं की वाणी पर उनका नियंत्रण नहीं रहता। वे नित्य शिकार की खोज में लगे रहते हैं कि आज अपनी कटु वाणी का शिकार किसे बनाया जाए । ऐसे मनुष्यों को मित्र बनाना आसानी से आता है वाकपटुता, चातुर्य व धूर्तता इन्हें जल्दी ही लोगों के समूह में शामिल कर देती है।
कुछ ऐसे ही लोग उच्च पदों पर आसीन हो जाते हैं किंतु जल्दी ही लोगों के मन से उतर जाते हैं ,क्योंकि चाहे छोटा हो या बड़ा हर किसी को मीठी वाणी ही समझ में आती है। कड़वी या तीखी वाणी व्यक्ति के व्यक्तित्व की गौरवान्विता नष्ट कर उसकी बुद्धि भ्रष्ट कर देती हैं।
कबीरदास जी ने सच ही कहा है —
ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोये ।
औरन को शीतल करे आप हो शीतल होये।।
इंसान को ऐसी वाणी बोलनी चाहिए कि जो सुनने वाले के मन को बहुत अच्छी लगे ऐसी वाणी दूसरे लोगों को तो सुख पहुंचाती ही है साथ ही स्वयं को भी आनंद का अनुभव होता है।
डा• ऋतु नागर
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