कलियुग में काली जल्द सुनती हैं भक्तों की पुकार। सनातन सत्य है कि जब-जब मनुष्य व देव सच्चे हृदय से भगवती काली को स्मरण करते है, वह उनकी किसी न किसी रूप में सहायता आवश्य करती हैं। भक्तों के संकटों को दूर करने के लिए भगवती निराकार होकर भी अलग-अलग रूप धारण कर अवतार लेती हैं। वह निराकार होते हुए भी सकार रूप में प्रकट होती है और भक्तों का कल्याण करती हैं। देवी भगवती ही सत्व, रज और तम इन तीनों गुणों का आश्रय लेती हैं। संपूर्ण विश्व का सृजन, पालन और संहार करती हैं। काल पर भी शासन करने के कारण महाशक्ति काली कहलाती हैं। वह आदिभूता है। उनकी शक्ति अनंत और महिमा अनादि है।
मान्यता है कि आजकल की कलिकाल की कठिन परिस्थितियों से सामना करने में काली अपने भक्तों की सहायता करती हैं। आज का मनुष्य अपने को सभी ओर से असुरक्षित महसूस कर रहा है।
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भगवती काली माता का ध्यान करने से उनके मन में सुरक्षा का भाव आता है। उनकी अर्चना और स्मरण से बड़े से बड़ा संकट भी टल जाता है। हम सभी मिलकर उनसे यह प्रार्थना करें कि वे अभाव और आतंक-स्वरूप असुरों का नाश कर मानवता की रक्षा करें। काली जयंती तंत्रग्रंथों के अनुसार साधक आश्विन मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी के दिन काली-जयंती मनाते हैं, लेकिन कुछ विद्बानों के विचार से जन्माष्टमी यानी भाद्रपद-कृष्ण-अष्टमी काली की जयंती-तिथि है।
कालिका पुराण में काली-अवतार की एक पावन कथा है। इस पावन कथा में कहा गया है कि एक बार देवगण हिमालय पर जाकर देवी की स्तुति करने लगे। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर भगवती ने उन्हें दर्शन दिया और उनसे पूछ कि तुम लोग किसकी स्तुति कर रहे हो? तभी देवी के शरीर से काले पहाड़ जैसे वर्ण वाली दिव्य नारी प्रकट हो गई। उस तेजस्विनी स्त्री ने स्वयं ही देवताओं की ओर से उत्तर दिया कि ये लोग मेरी ही स्तुति कर रहे हैं। उनका रंग काजल के समान काला था, इसलिए उनका नाम काली पड़ गया।
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इसी से मिलती-जुलती कथा मार्कण्डेय पुराण के दुर्गा-सप्तशती में भी है। शुम्भ-निशुम्भनामक दो महाबलशाली दैत्य थे। उनके उपद्रव से सम्पूर्ण चराचर जगत में हाहाकार मच गया था। उनसे देवता भयभीत रहते थ्ो और देवताओं को देवलोक छोड़कर मृत्युलोक में भटकना पड़ रहा था। उनके उपद्रव से पीड़ित होकर देवताओं ने महाशक्ति का आह्वान किया, उनकी कठोर पूजन- अर्चन किया, तभी पार्वती की देह से कौशिकी प्रकट हुई, जिनके अलग होते ही देवी का स्वरूप काला हो गया, इसलिए शिव प्रिया पार्वती काली नाम से विख्यात हुई। यह सनातन सत्य है कि कलियुग में काली जल्द सुनती हैं भक्तों की पुकार।
आराधना तंत्रशास्त्र में कहा गया है-
कलौ काली कलौकाली नान्यदेव कलौयुगे।
कलियुग में एकमात्र काली की आराधना ही पर्याप्त है।
साथ ही, यह भी कहा गया है-
कालिका मोक्षदादेवि कलौ शीघ्र फलप्रदा।
मोक्षदायिनीकाली की उपासना कलियुग में शीघ्र फल प्रदान करती है।
शास्त्रों में कलियुग में कृष्णवर्ण यानी काले रंग के देवी-देवताओं की पूजा को ही अभीष्ट-सिद्धिदायक बताया गया है, क्योंकि कलियुग की अधिष्ठात्री महाशक्ति काली स्वयं इसी वर्ण यानी रंग की हैं।
मान्यता है कि काली का रूप रौद्र है। उनके दांत बड़े हैं। वे अपनी चार भुजाओं में क्रम से खड्ग, मुंड, वर और अभय धारण करती हैं। शिव की पत्नी काली के गले में नरमुंडोंकी माला है। हालांकि उनका यह रूप भयानक है, लेकिन कई ग्रंथों में उनके अन्य रूप का भी वर्णन है। भक्तों को जगदंबा का जो रूप प्रिय लगे, वह उनका उसी रूप में ध्यान कर सकता है।
बनें पुत्र तंत्र शास्त्रकी दस महाविद्याओंमें काली को सबसे पहला स्थान दिया गया है, लेकिन काली की साधना के नियम बहुत कठोर हैं।
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इसलिए साधक पहले गुरु से दीक्षा लें और मंत्र का सविधि अनुष्ठान करें। यह सभी लोगों के लिए संभव नहीं है, इसलिए ऐसे लोग काली को माता मानकर पुत्र के रूप में उनकी शरण में चले जाएं। जो व्यक्ति जटिल मंत्रों की साधना नहीं कर पाते हों, वे सिर्फ काली नाम का जप करके उनकी अनुकंपा प्राप्त कर सकते हैं।
नवार्ण मंत्र का जप करें
निःसंदेह माता कालिका का स्वरूप भयानक है, जो किसी को भी भययुक्त कर दे, लेकिन वह भक्तों के लिए मनोरम और परम अनंदमयी है। यह अनुभव में आया है। वह भक्तों की पुकार पर सहज ही सहायता कर देती है। काली काल का अतिक्रमण कर मोक्ष प्रदान करने वाली देवी है। जिस पर वे प्रसन्न होती है, उसके सभी संकटों को दूर कर उसका दोनों लोकों में कल्याण करती हैं। वह आदि शक्ति है। सहज ही भक्तों पर कृपालु हो जाती हैं। ज्योतिष शास्त्री व तांत्रिकों के अनुसान देवी काली के कुछ ऐसे मंत्र है, जिनका प्रयोग कर जीव अपना सहज ही कल्याण कर सकता है। भगवती की कृपा सहज ही प्राप्त हो जाती है। माता काली के कुछ मंत्रों में एक ऐसा प्रभावशाली मंत्र है नवार्ण मंत्र। दुर्गा सप्तशती के अनुसार नौ अक्षरों से बना यह मंत्र माता के नौ स्वरूपों को समर्पित है। इस प्रकार नौ अक्षरों से बना यह नवार्ण मंत्र नौ ग्रहों के साधकर साधक के जीवन के सभी संकटों को दूर करता है।
नवार्ण मंत्र है-
ऊॅँ एें ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे:।
कैसे करें मंत्र का प्रयोग-
प्रयोग की विधि हम यहां आपको संक्षेप में बता रहे हैं, लेकिन प्रयोग को विधिवत् करना श्रेयस्कर होता है, इसके लिए किसी योग्य और विद्बान ब्राह्मण से सम्पर्क कर उसके मार्गदर्शन में पूजन करें।
वैसे तो इस मंत्र का विश्ोष प्रयोग नवरात्रि के दिनों में किया जाता है। तांत्रिक इसके सवा लाख, पांच लाख या नौ लाख जप करके सिद्धियां प्राप्त करते हैं, लेकिन आम व्यक्ति भी इस मंत्र का प्रयोग कर उतना ही लाभ उठा सकता है। इसके लिए आप अपने घर में माता काली की तस्वीर या प्रतिमा लाएं। सुबह स्नानादि कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें, फिर माता की प्रतिमा या चित्र के सम्मुख दीपक जलायें। तिलकर लगाये और लाल रंग के फूल यानी गुड़हल, गुलाब आदि समर्पित करें। फिर उसी स्थान पर आसन पर बैठक मंत्र का 1०8 बार जप करें। जप के पश्चात माता काली को भोग अर्पित करें।
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सेव या अनार का भोग अर्पित करें।
अगर आपकी अधिक सामर्थ्य नहीं है तो आप मिश्री के दो दाने भी अर्पित कर सकते हैं। भोग लगाने के पश्चात मन ही मन अपनी इच्छा मां से कहिये। इच्छा सत्विक होगी तो माता आपकी पुकार आवश्य सुनेगी। यह प्रयोग आप आजीवन भी कर सकते हैं।
भगवती काली व उनके स्वरूपों से सम्बन्धित पावन मंत्र-
काली स्तुति मंत्र-
काली काली महाकाली कालिके परमेश्वरी।
सर्वानन्दकरी देवी नारायणि नमोअस्तुते।
चामुंडा देवी का मंत्र-
ऊॅँ एें ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।
श्री दुर्गा गायत्री मंत्री-
ऊॅँ महादेव्यै विद्यहे दुर्गायै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्।
शीतला स्तुति-
शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता।
शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नम:।।
सरस्वती पूजन-
नमस्ते शारदे देवी काश्मीरपुर वासिनि।
त्वामहं प्रार्थये नित्यं विद्यादानं च देहि मे।।
कम्बुकण्ठी सुताम्रोष्ठी सर्वाभरणभृषिता।
महासरस्वती देवी जिह्वाग्रे सन्निविश्यताम्।।
गंगा स्तुति-
गांगं वारि मनोहारि मुरारिचरणच्युतम्।
त्रिपुरारिशिरश्चारि पापहारि पुनातु माम्।