kalpavrksh (paarijaat): har ichchha karata hai poorn, vaidik dharm granthon mein ullekh कल्पवृक्ष (पारिजात) एक बहुत ही प्राचीन और पवित्र वृक्ष है, पर इसकी संख्या भारत में अल्प ही है। सनातन धर्म में कल्पवृक्ष का विशेष उल्लेख है। इसे स्वर्गलोक का वृक्ष माना जाता है। श्री मद्भागवत पुराण के अनुसार समुद्रमंथन से कल्पवृक्ष की प्राप्ति हुई थी। यही वृक्ष स्वर्गलोक की शोभा बढ़ाता है। यह भक्तों की इच्छाएं उनकी इच्छित वस्तु देकर वैसे ही पूर्ण करता है, जैसे पृथ्वी पर ईश्वर सबकी इच्छाएं पूर्ण करते हैं।
इसी प्रकार अनेक धार्मिक ग्रंथों में भी कल्पवृक्ष के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है। पौराणिक धर्मग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि इस वृक्ष के नीचे बैठकर व्यक्ति जो भी इच्छा करता है, वह पूर्ण हो जाती है, क्योंकि इस वृक्ष में अपार सकारात्मक ऊर्जा होती है। श्रीमद्भागवत पुराण में समुद्र मंथन की.विस्तृत चर्चा है और उसी के उपरान्त कामधेनु गाय, कल्पवृक्ष, अमृत आदि प्राप्त हुए थे। औषधीय दृष्टि से इसकी उपयोगिता की चर्चा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा की गई है। समय – समय पर इसके महत्त्व पर देश – विदेश के मीडिया ने भी प्रकाश डाला है। इस वृक्ष की खासियत यह है कि कीट-पतंगों को यह अपने पास फटकने नहीं देता और दूर-दूर तक वायु के प्रदूषण को समाप्त कर देता है। इस मामले में इसमें तुलसी जैसे गुण हैं।
पानी के भंडारण के लिए इसे काम में लिया जा सकता है, क्योंकि यह अंदर से (वयस्क पेड़) खोखला हो जाता है, लेकिन मजबूत रहता है जिसमें 1 लाख लीटर से ज्यादा पानी की स्टोरिंग केपेसिटी होती है। इसकी छाल से रंगरेज की रंजक (डाई) भी बनाई जा सकती है। चीजों को सान्द्र बनाने के लिए भी इस वृक्ष का इस्तेमाल किया जाता है।
समुद्र मंथन के 14 रत्नों में से एक कल्पवृक्ष, पद्मपुराण के अनुसार पारिजात ही कल्पतरु
पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन के 14 रत्नों में से एक कल्पवृक्ष की भी उत्पत्ति हुई थी। समुद्र मंथन से प्राप्त यह वृक्ष देवराज इन्द्र को दे दिया गया था और इन्द्र ने इसकी स्थापना सुरकानन वन (हिमालय के उत्तर में) में कर दी थी। पद्मपुराण के अनुसार पारिजात ही कल्पतरु है।
दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में बहुतायत में
ओलिएसी कुल के इस वृक्ष का वैज्ञानिक नाम ओलिया कस्पीडाटा है। यह यूरोप के फ्रांस व इटली में बहुतायत मात्रा में पाया जाता है। यह दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में भी पाया जाता है। भारत में इसका वानस्पतिक नाम बंबोकेसी है। इसको फ्रांसीसी वैज्ञानिक माइकल अडनसन ने 1775 में अफ्रीका में सेनेगल में सर्वप्रथम देखा था, इसी आधार पर इसका नाम अडनसोनिया टेटा रखा गया। इसे बाओबाब भी कहते हैं।
वृक्षों और जड़ी-बूटियों के जानकारों के मुताबिक यह एक बेहद मोटे तने वाला फलदायी वृक्ष है जिसकी टहनी लंबी होती है और पत्ते भी लंबे होते हैं। दरअसल, यह वृक्ष पीपल के वृक्ष की तरह फैलता है और इसके पत्ते कुछ-कुछ आम के पत्तों की तरह होते हैं। इसका फल नारियल की तरह होता है, जो वृक्ष की पतली टहनी के सहारे नीचे लटकता रहता है। इसका तना देखने में बरगद के वृक्ष जैसा दिखाई देता है। इसका फूल कमल के फूल में रखी किसी छोटी- सी गेंद में निकले असंख्य रुओं की तरह होता है। पीपल की तरह ही कम पानी में यह वृक्ष फलता-फूलता हैं। सदाबहार रहने वाले इस कल्पवृक्ष की पत्तियां बिरले ही गिरती हैं, हालांकि इसे पतझड़ी वृक्ष भी कहा गया है। यह वृक्ष लगभग 100 फुट ऊंचा होता है। 150 फुट तक इसके तने का घेरा नापा गया है। इस वृक्ष की औसत जीवन अवधि 2500-3000 साल है। कार्बन डेटिंग के जरिए सबसे पुराने फर्स्ट टाइमर की उम्र 6,000 साल आंकी गई है।
जैसा की आप जानते हैं कि यह पौधा अधिकतम 100 फीट से ज्यादा ऊंचा और इसके तने की परिधि 60 फीट तक हो सकती है। इसकी शाखाएं 50 फीट तक की परिधि में फैली हो सकती हैं, पर कम आयु वाले वृक्ष छोटे व सुंदर होते हैं और उसमें दो प्रकार की पत्तियां पाई जाती हैं। नीचे की पत्तियां साधारण चांदनी के पौधे की पत्तियों के समान होती हैं, जब कि शिखर की पत्तियां सेमल के पौधे की पत्तियों के समान चार, पांच या छ : एक स्थान से निकली होती हैं। इसके फूल अत्यधिक सुंदर लाल पखंड़ियों युक्त द्विलिंगी होते हैं। फलों के निर्माण हेतु दो पौधों का होना आवश्यक होता है, क्योंकि इसमें पर – निषेचन आवश्यक होता है।
भारत में कहां पाया जाता है कल्पवृक्ष
भारत में रांची, अल्मोड़ा, काशी, नर्मदा किनारे, कर्नाटक आदि कुछ महत्वपूर्ण स्थानों पर ही यह वृक्ष पाया जाता है। पद्मपुराण के अनुसार परिजात ही कल्पवृक्ष है। यह वृक्ष उत्तरप्रदेश के बाराबंकी के बोरोलिया में आज भी विद्यमान है। कार्बन डेटिंग से वैज्ञानिकों ने इसकी उम्र 5,000 वर्ष से भी अधिक की बताई है। समाचारों के अनुसार ग्वालियर के पास कोलारस में भी एक कल्पवृक्ष है जिसकी आयु 2,000 वर्ष से अधिक की बताई जाती है। ऐसा ही एक वृक्ष राजस्थान में अजमेर के पास मांगलियावास में है और दूसरा पुट्टपर्थी के सत्य साईं बाबा के आश्रम में मौजूद है।
प्रदेश | नगर जिला | नगर क़स्बा | स्थान | वृक्ष संख्या |
उत्तर प्रदेश | प्रयागराज | संगम | किले में है | 1 |
इटावा | नगर | अज्ञात | 2 | |
मुजफ्फर नगर | नगर | आश्रम में है | 1 | |
बाराबंकी | रामनगर | आश्रम में है | 1 | |
लखनऊ | नगर | वनस्पति उद्यान | 2 | |
मेरठ | नगर | मेरठ विश्वविद्यालय | 2 | |
मध्य प्रदेश | सागर | नगर | कचहरी के पास | 1 |
सेंधवा | अज्ञात | अज्ञात | 1 | |
इंदौर | नगर | मांडू का किला | 8 |
गुजरात | बड़ोदरा | जशपुर | जशपुर मार्ग | 1 |
महाराष्ट्र | मुंबई | गुजरात सीमा | बाईकुआ जू | 3 |
प बंगाल | कोलकत्ता | नगर | वनस्पति उद्यान | 5 |
आंध्र प्रदेश | हैदराबाद | नगर | गोलकुंडा फोर्ट | 2 |
हयात नगर | जिला | अज्ञात | 1 | |
कृष्णा नगर | जिला | अज्ञात | 1 |
झाबुआ | नैनपुर | अज्ञात | 1 | |
शिवपुरी | कोलारस | जैन का बगीचा | 1 | |
ग्वालियर | ग्वालियर | विज्ञानं महाविद्यालय | 1 | |
राजास्थान | अजमेर | मंगलिया | आश्रम | 2 |
जयपुर | नगर | विश्व विद्यालय | 1 | |
अजमेर | पुष्कर | मंदिर मार्ग | 1 | |
माउन्ट आबू | नगर | देलवाड़ा मंदिर | 2 | |
झारखंड | रांची | नगर | दूरेन्दा महाविद्यालय निकट | 3 |
पंजाब | चंडीगढ़ | नगर | वनस्पति उद्यान | 2 |
दिल्ली | दिल्ली | नगर | पुरातत्व बाग़ | 1 |
तमिलनाडु | चेन्नई | नगर | वनस्पति उद्यान | 2 |
श्रीलंका | मन्नार दीप | मन्नार खाड़ी | मन्नार दीप समूह | 40 |
कल्पवृक्ष के औषधीय गुण
एलर्जी विरोधी, दमानाशक, मलेरिया ज्वर में कारगर, दर्द निवारक दवा के रूप में, पेट संबंधी रोगों की अचूक दवा, वृक्क और जोड़ों के दर्द में उपयोगी, आंखों के संक्रमण की दवा, कीड़े – मकोड़े के विष नाशक, प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना, एंटी आक्सीडेंट व एंटी एजिंग दवा, कैल्शियम व फास्फोरस की कमी को शरीर से दूर करता है।
वृक्ष की जड़, तना, छाल, पत्ती, फूल, फल और वीज आदि उपरोक्त रोगों में पृथक् – पृथक् उपचार में प्रयुक्त होते हैं, जैसे पत्तियों के सेवन से कैल्शियम और फास्फोरस की कमी दूर होती है। यह एक परोपकारी मेडिस्नल-प्लांट है अर्थात दवा देने वाला वृक्ष है। इसमें संतरे से 6 गुना ज्यादा विटामिन सी होता है। गाय के दूध से दोगुना कैल्शियम होता है और इसके अलावा सभी तरह के विटामिन पाए जाते हैं। इसकी पत्ती को धो-धाकर सूखी या पानी में उबालकर खाया जा सकता है। पेड़ की छाल, फल और फूल का उपयोग औषधि तैयार करने के लिए किया जाता है।
- वृक्ष की 3 से 5 पत्तियों का सेवन करने से हमारे दैनिक पोषण की जरूरत पूरी हो जाती है। शरीर को जितने भी तरह के सप्लीमेंट की जरूरत होती है इसकी 5 पत्तियों से उसकी पूर्ति हो जाती है। इसकी पत्तियां उम्र बढ़ाने में सहायक होती हैं, क्योंकि इसके पत्ते एंटी-ऑक्सीडेंट होते हैं। यह कब्ज और एसिडिटी में सबसे कारगर है।
- इसके बीजों का तेल हृदय रोगियों के लिए लाभकारी होता है। इसके तेल में एचडीएल (हाईडेंसिटी कोलेस्ट्रॉल) होता है। इसके फलों में भरपूर रेशा (फाइबर) होता है। पुष्टिकर तत्वों से भरपूर इसकी पत्तियों से शरबत बनाया जाता है और इसके फल से मिठाइयां भी बनाई जाती हैं।