मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 21 फरवरी, 2021 को कर्नाटक में नाथ सम्प्रदाय मन्दिर में पूजा अर्चना करते तथा श्री कदली काल भैरव मंदिर में अन्नापूर्णा भण्डार का उद्घाटन करते हुए।
कर्नाटक के मठ शैक्षणिक और सामाजिक कार्यों में अर्से से लगे हैं। बड़े-बड़े इंजीनियरिंग-मेडिकल कॉलेज से लेकर अस्पताल तक, मठों के ट्रस्ट से संचालित होते हैं। इस तरह लाखों परिवार इन मठों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़े हुए हैं |
किसी भी प्रकार का भेद-भाव आदि काल से नहीं रहा
नाथ सम्प्रदाय में किसी भी प्रकार का भेद-भाव आदि काल से नहीं रहा है। इस संप्रदाय को किसी भी जाति, वर्ण व किसी भी उम्र में अपनाया जा सकता है।सन्यासी का अर्थ काम , क्रोध , मोह , लोभ आदि बुराईयों का त्याग कर समस्त संसार से मोह छोड़ कर शिव भक्ति में समाधि लगाकर लीन होना बताया जाता है।
नाथ संप्रदाय को अपनाने के बाद 7 से 12 साल की कठोर तपस्या के बाद ही सन्यासी को दीक्षा दी जाती
नाथ संप्रदाय को अपनाने के बाद 7 से 12 साल की कठोर तपस्या के बाद ही सन्यासी को दीक्षा दी जाती थी। विशेष परिस्तिथियों में गुरु अनुसार कभी भी दीक्षा दि जा सकती है। दीक्षा देने से पहले वा बाद में दीक्षा पाने वाले को उम्र भर कठोर नियमो का पालन करना होता है। वो कभी किसी राजा के दरबार में पद प्राप्त नहीं कर सकता , वो कभी किसी राज दरबार में या राज घराने में भोजन नहीं कर सकता परन्तु राज दरबार वा राजा से भिक्षा जरुर प्राप्त कर सकता है। उसे बिना सिले भगवा वस्त्र धारण करने होते है ।
हर साँस के साथ मन में आदेश शब्द का जाप करना होता है
हर साँस के साथ मन में आदेश शब्द का जाप करना होता है था किसी अन्य नाथ का अभिवादन भी आदेश शब्द से ही करना होता है । सन्यासी योग व जड़ी- बूटी से किसी का रोग ठीक कर सकता है पर एवज में वो रोगी या उसके परिवार से भिक्षा में सिर्फ अनाज या भगवा वस्त्र ही ले सकता है। वह रोग को ठीक करने की एवज में किसी भी प्रकार के आभूषण , मुद्रा आदि ना ले सकता हैऔर न इनका संचय कर सकता।
सांसारिक मोह को त्यागना पड़ता है
सांसारिक मोह को त्यागना पड़ता है दीक्षा देने के बाद सन्यासी ,जोगी , बाबा के दोनों कानों में छेड़ किये जाते है और उनमे गुरु द्वारा ही कुण्डल डाले जाते है । जिन्हें धारण करने के बाद निकला नहीं जा सकता।
बिना कुण्डल के किसी को योगी ,जोगी ,बाबा, सन्यासी नहीं माना जा सकता
बिना कुण्डल के किसी को योगी ,जोगी ,बाबा, सन्यासी नहीं माना जा सकता ऐसा सन्यासी जोगी जरुर होता है परन्तु उसे गुरु द्वारा दीक्षा नहीं दी गई होती। इसलिए उन्हें अर्ध सन्यासी के रूप मे माना जाता है।