कार्तिक में आकाश दीप दान दूर करता है पितरों का भी कष्ट

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कार्तिक माह में आकाश दीप दान से मनुष्य न सिर्फ स्वयं का कल्याण करता हैं, बल्कि अपने पितरों को भी कष्टों से मुक्ति दिला देता है। उन्हें नरक यातना से मुक्ति दिलाकर उत्तम गति प्रदान करवाता है।

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आकाश दीप का विश्ोष महात्म है। कार्तिक मास आने पर जो प्रात: स्नान में तत्पर होकर आकाशदीप दान करता है, वह सब लोकों का स्वामी और समस्त सम्पत्तियों से सम्पन्न होकर इस लोक में नाना प्रकार के सुख को भोगता है। अंतत: मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। इसलिए कार्तिक में स्नान-दानादि कर्म करते हुए भगवान विष्णु के मंदिर के कंगूरे पर एक मास तक दीप दान करना चाहिए। तुलसी दल से भगवान विष्णु की अथवा श्री कृष्ण की पूजा करके रात में दीपदान करते हुए निम्न मंत्र पढ़ना चाहिये-
दामोदराय विश्वाय विश्वरूप धराय च।
नमस्कृत्वा प्रदास्यामि व्योमदीपं हरिप्रियमं।।
भावार्थ-
मैं सर्व रूप एवं विश्व रूप धारी भगवान दामोदर को नमस्कार करके यह आकाशदीप देता हूं, जो भगवान को अत्यन्त प्रिय हैं।


व्रती का प्रात:काल स्नान और पूजा का क्रम नियम पूर्वक चलता रहे। मास की समाप्ति पर आकाशदीप के नियम को भी समाप्त कर ब्राह्मणों को भोजन कराकर इस अमिट फलदायी व्रत का समापन करें। जो कीट और कांटों से भी हुई दुर्गम और ऊॅँची-नीची भूमि पर दीप दान करता है। वह नरक में नहीं पड़ता है। प्राचीनकाल में राजा धर्मनंद ने आकाशदीप दान के प्रभाव से श्रेष्ठ विमान पर आरूढ़ होकर विष्णु लोक गमन किया था। जो कार्तिक मास में हरिबोधिनी एकादशी को भगवान के श्री विग्रह के समक्ष कपूर का दीपक जलाता है, उसके कुल के उत्पन्न सभी मनुष्य भगवान विष्णु के प्रिय बन जाते है। एकादशी से, तुला राशि के सूर्य से अथवा पूर्णिमा से भगवान की प्रसन्नता के लिए आकाशदीप प्रारम्भ करना श्रेयस्कर होता है।
नम: पितृभ्य: प्रेतेभ्यो नमो धर्माय विष्णवे।
नमो यमाय रूद्राय कान्तारपतये नम:।।
भावार्थ- पितरों को नमस्कार है, प्रेतों को नमस्कार है, धर्म स्वरूप विष्णु को नमस्कार है, यमराज को नमस्कार है और दुर्गम पथों में रक्षा करने वाले भगवान रुद्र को नमस्कार है।

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इस मंत्र से जो मनुष्य पितरों के लिए आकाश में दीप दान करते हैं तो उनके पितर यदि नरक में हो तो भी उत्तम गति को प्राप्त करते हैं। जो व्यक्ति देवालय में, नदी के तट पर, सड़क पर, नींद लेने के स्थान पर दीप देता है, उसे सर्वतोमुखी उन्नति प्राप्त होकर लक्ष्मी प्राप्त होती है। जो ब्राह्मण या अन्य मंदिर में दीप दान करें तो भगवान का अनुग्रह पाते हैं।

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