कार्तिक पूर्णिमा में पुष्कर तीर्थस्थल में दर्शन का मिलता है विशेष पुण्य, ब्रह्मा जी का इकलौता मंदिर

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सृष्टि का सृजन परमपिता ब्रह्मा ने किया है, भगवान विष्णु जगत के पालनहार है और भगवान शंकर सृष्टि का संहार करते हैं। त्रिदेवों की महिमा अपार है, भगवान शंकर व भगवान विष्णु की पूजा देशभर में होती है, करोड़ों मंदिर है, भोलेनाथ द्बादशलिंगों का अपना माहात्म है तो भगवान विष्णु के चार धामों की महिमा भी अपरम्पार है, जिनका बखान मनुष्य तो मनुष्य, देवों के लिए भी असंभव है लेकिन ब्रह्मा जी जो सृष्टि के सृजनकर्ता है, उनका देश में इकलौता मंदिर है।

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वह राजस्थान के पुष्कर में है। हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा में यहां विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। दीर्घकाल से यहां मेले की परम्परा चली आ रही है। इस अवधि में यहां ब्रह्मा जी के मंदिर में दर्शन का विश्ोष महत्व है, जो मनुष्य को संकटों से निजात दिलाता है। भक्तों को इस अवधि में पूजन का विश्ोष लाभ होता है। यह बात श्रद्धालुओं के अनुभव में आती हैं। भगवान ब्रह्मा जी पूजा क्यों नहीं होती है? उनका इकलौता ही मंदिर ही क्यों है? इसके पीछे एक कथा है।

वैदिक धर्म ग्रंथों में इस कथा का वर्णन मिलता है। पौराणिक काल की बात है कि वज्रनाश नामक राक्षस ने पृथ्वी पर हाहाकार मचाया हुआ था। वह देव भक्तों को सताता था। उसका अत्याचार जब बढ़ गया तो ब्रह्मा जी ने स्वयं उसका वध किया। जब परमपिता ब्रह्मा जी असुर का वध कर रहे थ्ो, तब उनके हाथ से तीन स्थानों पर कमल पुष्प गिरा था, जहां झील का निर्माण हो गया था। असुर का नाश होने के बाद यह स्थान पुष्कर तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध हो गया।

इसके बाद ब्रह्मा ने सृष्टि के कल्याण के लिए इसी स्थान पर एक यज्ञ करने का निर्णय लिया और ब्रह्मा जी स्वयं यज्ञ में शामिल होने के लिए पुष्कर पहुंच गए लेकिन आयोजन स्थल पर किसी परिस्थितिवश माता सरस्वती नहीं पहुंच सकी तो ब्रह्मा जी परेशान हो गए, क्योंकि यज्ञ में उनके साथ उनकी पत्नी का होना आवश्यक था। जब सरस्वती जी काफी समय तक नहीं पहुंची तो जगत पिता ब्रह्मा जी ने दूसरा विवाह करने का निर्णय लिया। उन्होंने वहां गुर्जर समुदाय की एक कन्या गायत्री से विवाह कर यज्ञ शुरू कर दिया। इसी बीच माता सरस्वती वहां पहुंच गई लेकिन ब्रह्मा जी के साथ दूसरी स्ति्र को बैठे देखा तो वह क्रुद्ध हो गईं।

उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि देवता होने पर अब उनकी पूजा नहीं होगी। माता सरस्वती का यह रूप देखकर सभी देवता डर सहम गए और उन्होंने माता से श्राप वापस लेने की विनती की, लेकिन माता उस वक्त नहीं मानी। कुछ समय पश्चात जब माता का क्रोध शांत हुआ तो उन्होंने श्राप बदलते हुए कहा कि उनका मात्र पुष्कर में मंदिर होगा, अन्यत्र यदि कोई उनका दूसरा मंदिर बनाएगा तो उसका विनाश हो जाएगा। चूंकि ब्रह्मा जी की भगवान विष्णु ने भी मदद की थी, इसलिए माता सरस्वती ने श्राप दिया कि उन्हें पत्नी की विरह का कष्ट सहन करना पड़ेगा। इसी वजह से जब भगवान विष्णु श्री राम के रूप में अवतरित हुए तो उन्हें 14 वर्ष वनवास के दौरान पत्नी से अलग रहना पड़ा।

पुष्कर के इस ब्रह्मा मंदिर के जीर्णोद्धार के पीछे भी एक कथा कही जाती है। करीब सवा हजार वर्ष पूर्व अरण्य वंश के एक शासक को सपना आया कि उक्त स्थान पर एक मंदिर है, जिसके सही रखरखाव की आवश्यकता है।

तब तत्कालीन राजा ने इस मंदिर के पुराने ढांचे का जीर्णोद्धार किया। वैसे पुष्कर तीर्थ स्थल में माता सरस्वती जी का भी एक मंदिर है लेकिन वह मंदिर यहां ब्रह्मा जी के मंदिर से कुछ दूर पहाड़ी पर स्थित है। इसके लिए दुष्कर चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। चूंकि भगवान ब्रह्मा ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां यज्ञ का अयोजन किया था, इसलिए इसी अवधि में मेला लगाया जाता है।

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