कार्तिक में प्याज, श्रृंगी यानी सिंघाड़ा, सेज, बेर, राई नशीली वस्तुएं और चिउड़ा इन सबका प्रयोग कदापि न करें। कार्तिक व्रत करने वाला मनुष्य देवता, वेद, ब्राह्मण, गुरु, गौ, व्रती, स्त्री और महात्माओं की निंदा न करे। कार्तिक मास में नरक चतुर्दशी को यानी दीपावली से एक दिन पूर्व शरीर पर तेल लगाना चाहिए। इसके अतिरिक्त व्रती मनुष्य अन्य किसी दिन तेल न लगाएं।
व्रती मनुष्य को चाहिए कि वह कार्तिक में चाण्डाल, म्लेच्छ, पतित, व्रतहीन, ब्राह्मण द्बेषी और वेद बहिष्कृत लोगों से कदापि बातचीत न करे। व्रत करने वाले को उचित है कि वह हमेशा एक पहर रात बाकी रहे, तभी प्रातः काल उठ जाए। तब स्तोत्र द्बारा इपने इष्ट देव की स्तुति करके दिन के कार्यों पर विचार करे। ग्राम अथवा नगर की प्रकृति के अनुसार दैनिक कृत्य मल-मूत्र त्यागर उत्तरामिभुख होकर बैठे। तदंतर दांत और जिह्वा की शुद्धि के लिए वृक्ष के पास जाकर यह मंत्र पढ़ें-
आयुर्बल यशो वर्च: प्रजा पशुवसूनि च।
ब्रह्म प्रज्ञां च मेघां च त्वं नो देहि वनस्पते।।
भावार्थ- हे वनस्पति, आप मुझे आयु, बल, यश, तेज, धन, पशु, सन्तति, वैदिक ज्ञान, प्रज्ञा और धारणा शक्ति दें। ऐसा कह कर वृक्ष से दांतुन ले। दूध वाले वृक्षों की दांतुन नहीं लेनी चाहिए। इस प्रकार विधि पूर्वक दांतों को शुद्ध करके मुख को जल से धो डालें और भगवान के नामों का उच्चारण करते हुए दो घड़ी रात रहते जलाशय पर जाएं। तब कार्तिक का व्रत करने वाला विधि से स्नान करें। स्नान के पश्चात नए वस्त्र पहनकर तिलक धारण करें। तब अपने गोत्र विधि के अनुकूल उपासना करें। जब तक सूर्योदय न हो, तब तक गायत्री मंत्र का जप करते रहें। उपासना के अंत में विष्णु सहस्त्रनाम आदि का पाठ करें। तब अपनी दिनचर्या आरम्भ करें। मध्याह्न् में दाल के अतिरिक्त श्ोष अन्य भोजन करें।
अतिथियों को भोजन कराकर जो भोजन ग्रहण करता है तो वह अमृत समान है। मुख शुद्धि के लिए तुलसी का भक्षण करें तो श्रेष्ठ रहता है। फिर श्ोष दिन सांसारिक व्यवहार में व्यतीत करें। सायंकाल में पुन: भगवान के मंदिर में जाएं और संध्या करके शक्ति के अनुसार दीप दान करें। भगवान विष्णु अथवा अपने देवता को प्रणाम करके आरती उतारें। प्रथम पहर में कीर्तन करते हुए जागरण करें। प्रथम पहर बीत जाने के बाद शयन करें। इस प्रकार एक मास तक शास्त्रोक्त विधि का पालन करते हुए जो कार्तिक मास में स्नान-दान करता है, वह भगवान के सालोक्य को प्राप्त करता है।
कार्तिक मास में निम्न उल्लेखित वस्तुओंं का भी करना चाहिए त्याग-
तेल लगाना, दूसरे का दिया भोजना करना, तेल खाना, जिसमें ज्यादा बीज हो, ऐसे फलों का सेवन, चावल और दाल ये कार्तिक में त्याज्य हैं। इसके अतिरिक्त गाजर, बैंगन, बासी अन्न, मसूर, काँसे के पात्र में भोजन, कांजी, दुर्गंधित पदार्थ, किसी भी समुदाय का अन्न अर्थात भंडारा, शूद्र का अन्न, सूतक का अन्न, श्राद्ध का अन्न यह कार्तिक व्रत करने वाले त्याग दें।
क्या करें-
कार्तिक में केला और आँवले के फल का दान करें। शीत से कष्ट पाने वाले गरीब को और ब्राह्मण को कपड़ा दान करें। इस माह में जो व्यक्ति भगवान को तुलसी दल समर्पित करता है, वह मुक्ति पाता है।
जो कार्तिक की एकादशी को निराहार रहकर व्रत करता है, वह पूर्व जन्मों के पापों से मुक्ति पा लेता है। जो राह चल आए हुए थके हुए व्यक्ति को अन्न देता है और भोजन के समय उसे भोजन कराकर संतुष्ट करता है। वह अनन्य पुण्य का भागी हो जाता है। जो कार्तिक में भगवान विष्णु की परिक्रमा करता है, उसे पग-पग पर अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है। जो कार्तिक में भगवान के मंदिरों में चूना व सफाई आदि कराकर सुदर बनाने में सहयोग करता है और उसमें भगवान के निमित्त वस्त्र अलंकार भ्ोंट देता है। वह विष्णु के सामीप्य का आनंद अनुभव करता है।