भगवान काशी विश्वनाथ की महिमा अनंत है। वह अविनाशी हैं। उनकी महिमा का बखान वेदों में भी किया गया है। काशी में अवस्थित काशी विश्वनाथ अर्थात विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा बताते हुए कहा गया है कि जहां यह विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग अवस्थित है, यह पावन नगरी ही जीव को मुक्ति प्रदान करने वाली है। भगवान शंकर स्वयं यहां मृत्यु प्राप्त करने वाले जीव के अंतकाल में तारक मंत्र का उपदेश करते हैं, जिससे जीव को मुक्ति प्राप्त होती है।
मुक्तिदाता विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग
श्री विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग काशी यानी वर्तमान नाम वाराणसी में स्थित है। कहा यह भी जाता है कि वरुणा नदी और अस्सी के मध्य का क्षेत्र काशी है, इसलिए इसका नाम वाराणसी पड़ा है। शास्त्रों में इस पावन नगरी को लेकर एक पावन कथा है, जो इसकी महिमा का बखान करती है। पौराणिक गाथा के अनुसार भगवान शंकर का जब माता पावर्ती के साथ विवाह हुआ, तब वे कैलाश पर्वत पर निवास कर रहे थे।
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माता पार्वती चूंकि हिमालय की पुत्री थीं, इसलिए उन्हें ससुराल में रहने का एहसास नहीं होता था। उन्होंने भगवान भोलेनाथ शंकर के सम्मुख इच्छा व्यक्त जतायी कि आप मुझे अपने घर ले चलिए, यहां मुझे ससुराल में रहने का एहसास नहीं होता है। सभी कन्याएं विवाह के बाद पति के घर चली जाती है लेकिन मुझे पिता के घर में रहना पड़ रहा है तो भगवान शंकर ने भी माता की भावनाओं का ध्यान रखते हुए उन्हें साथ लेकर काशी नगरी में आ गए और यहां विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए।
मान्यता है कि भगवान विश्वेश्वर की इस नगरी में मृत्यु होने पर मोक्ष की ही प्राप्ति होती है। मरणकाल में भगवान शंकर उसके कान में तारक मंत्र का उपदेश करते हैं। इस मंत्र के प्रभाव से जीव सहज ही भवसागर की बाधाओं को पार का मुक्ति को प्राप्त करता है।
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सृष्टि की आदि स्थली भी इसी नगरी को माना गया है। यह पावन नगरी का प्रयलकाल में भी लोप नहीं होती है। उस समय भगवान शंकर इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं। सृष्टिकाल प्रकट होने पर वे इसे पुन: पूर्ववत स्थान पर अवस्थित कर देते हैं।
मान्यता है कि भगवान विष्णु ने इसी स्थान पर सृष्टि की कामना से भगवान शंकर को तप करके प्रसन्न किया था। मत्स्यपुराण में काशी की महिमा का बखान करते हुए कहा गया है कि जप, ध्यान, ज्ञान रहित और दुखी मनुष्य के लिए एकमात्र काशी में परमगति सुलभ है। शास्त्रों का यहां तक उल्लेख किया गया है कि विषयों में आसक्त, अधर्म निरत व्यक्ति भी यदि इस काशी क्ष्ोत्र में मृत्यु को प्राप्त करता है तो उसे पुन: संसार बंधन में नहीं आना पड़ता है। श्री विश्वेश्वर की नगरी में दशश्वमेध, लोलार्क, केशव, बिन्दुमाधव और मणिकर्णिका ये पांच तीर्थ हैं। इसलिए इसे अविमुक्त क्ष्ोत्र माना जाता है। इस पावन नगरी के दक्षिण में केदारखंड, उत्तर की तरह ऊॅँ कारखंड और मध्य में विश्वेश्वरखंड है। शास्त्रों यह भी उल्लेख किया गया है कि जो यहां प्रतिदिन दर्शन पूजन करता है, उसके सभी योगक्षेम के समस्त भार भूतभावन भगवान शंकर अपने ऊपर ले लेते हैं और वह परमधाम का अधिकारी बन जाता है।
खास बात यह भी है कि इस पावन नगरी में देश के कोने-कोने से भक्त जीवन काल के अंत में यह विचार कर पहुचते हैं कि भगवान शंकर की कृपा से मोक्ष की प्राप्ति होगी और उन्हें जन्म-मृत्यु के इस जंजाल से मुक्ति मिल जाएगी। इस पावन नगर की संस्कृति भी अद्भुत है, यहां की संस्कृति भी पावनता की अनुभूति कराने वाली है, जो कि दुनिया को सहज आकर्षित करती है। काशी विश्वनाथ की नगरी रूप में भी यह मंदिर प्रसिद्ध है।
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