भोलेनाथ भगवान शिव शंकर अत्यन्त दयावान हैं। सच्चे हृदय और भाव के साथ यदि उनको ध्याता तो उसके सभी कलेश मिल जाते हैं। उसे अतुल्य वैभव की प्राप्ति होती है। सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। इसमें लेशमात्र का संशय नहीं करना चाहिए। सच्चे हृदय और पूर्ण भक्तिभाव से उनकी अराधना, पूजा व अर्चना करने से दैहिक, दैविक व भौतिक तापों का नाश हो जाता है। ऐसे भोले नाथ की महिमा का बखान भला कौन करने में समथ्र्य है? भला कौन उनके प्रभाव का गुणगान कर सकता है? वह निराकार भी है, और साकार भी है। ऐसे भोलेनाथ को प्रसन्न करने के कुछ सहज विधि-विधान हम आपको बताने जा रहे है, जिससे भूतभावन भगवान शंकर प्रसन्न होते है और भक्त की मनोकानाओं को शीघ्र पूर्ण करते है।
भगवान शिव की पूजा-अर्चना से समस्त सुखों व आनंद की प्राप्ति होती है। ऐसा पुराणों और अन्य धर्म शास्त्रों में विस्तार से वर्णित है। शिवमहापुराण में विभिन्न रसों से भगवान शिव की पूजा का वर्णन विस्तार से बताया गया है, जिससे साधक को कई रोगों से छुटकार मिल जाता है, वहीं उसे मनोवांछित फल की प्राप्ति भी होती है। किस द्रव्य को भगवान शंकर को अर्पित करने से कौन सी मनोकामना होती है पूरी। आइये जानें-
-यदि आप ज्वर अर्थात बुखार से पीड़ित है तो भगवान शंकर पर जलधारा अर्पित करें। इससे आपको लाभ होगा।
– मधु की धारा शिव पर अर्पित की जाए तो राजयक्ष्मा (टीबी) रोग दूर हो जाता है।
– पावन गंगा जल का अपना ही महत्व है। इसे अत्यन्त पावन माना जाता है, इसकी जलधारा यदि भगवान शिव को अर्पित की जाए तो भक्त को भोग व मोक्ष की प्राप्ति सहज ही हो जाती है।
– सुख व संतान की प्राप्ति की आपको इच्छा है तो जलधारा से शिव की पूजा उत्तम बताई गई है। जलधारा से अभिष्ोक करने से सुख व संतान की प्राप्ति होती है।
– उत्तम भस्म धारण कर दिव्य द्रव्यों से शिव का अभिषेक करना चाहिए और उनके सहस्त्रनाम मंत्रों से घी की धारा चढ़ाने से वंश की वृद्धि होती है।
– अगर दस हजार मंत्रों से शिव की पूजा की जाती है तो डायबिटीज रोग समाप्त हो जाता है।
– नपुंसक व्यक्ति अगर घी से शिव का अभिषेक करे और ब्राह्मणों को भोजन कराए। साथ ही प्राजापत्य व्रत करे तो उसकी समस्या का निदान हो जाता है।
– भगवान शिव शम्भू पर ईख(गन्ना) के रस की धारा चढ़ाई जाए तो सभी आनन्दों की प्राप्ति होती है। यह आत्मिक शांति प्रदान करने वाला अत्यन्त प्रभावशाली उपाय है। ऐसा करने से भक्त को परम आनंद की अनुभूति होने लगती है।
इन सभी रसों की धाराएं मृत्युंजय मंत्र से चढ़ानी चाहिए, उसमें भी उक्त मंत्र का दस हजार जप करना चाहिए और ग्यारह ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। तभी मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। मनोकामनाएं पूर्ण करने का यह अत्यन्त ही सहज उपाय है, भगवान शंकर इससे शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते है और भक्त को मनोवांछित फल प्रदान करते है। महा मृत्युंजय मंत्र के प्रभाव से मनुष्य काल के पंजों से भी छूट जाता है। उसे परमानंद की प्राप्ति सहज ही हो जाती है।