कोकिला वन शनिधाम: चिंताएं मिट जाती हैं

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कोकिला वन शनिधाम

kokila van shanidhaam: chintaen mit jaatee hainकोकिला वन शनिधाम: यह शनिधाम वृंदावन से पहले कोसीकला नाम के नगर के पास पड़ता है। जब दिल्ली से वृंदावन सड़क मार्ग से जाते हैं तो लगभग 16 किलोमीटर पहले कोसीकला का तिराहा पड़ता है, जहां से बायीं ओर शहर में प्रवेश करके दायीं ओर मुड़कर सीधे लगभग 12 किलोमीटर चलकर या वाहन द्वारा इस धाम पर पहुंच जाते हैं। यह धाम एक छोटे से जंगल के मध्य अवस्थित है। शनि का महत्त्व सभी स्थानों पर लगभग एक सा ही होता है, पर यहां एक विशेषता है कि जब आप शनि की पूजा अर्चना करके आते हैं तो उसी समय से आपके मस्तिष्क से सभी चिंताएं मिट जाती हैं और चित्त प्रसन्न हो जाता है।

कोकिला वन की कथा

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पौराणिक कथाओं के अनुसार, अपने इष्ट देव भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन करने के लिए शनिदेव ने कड़ी तपस्या की थी। उनकी तपस्या से खुश होकर श्रीकृष्ण ने कोयल के रूप में उन्हें दर्शन दिए थे। श्रीकृष्ण ने जिस वन में शनिदेव को दर्शन दिए थे उसी को कोकिला वन नाम से जाना जाता है। बृजमंडल में जब श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था तब सभी देवी-देवता उनके दर्शन के लिए आए थे। इन सभी में शनिदेव भी मौजूद थे। लेकिन मां यशोदा ने उन्हें श्रीकृष्ण के दर्शन करने नहीं दिए थे। उन्हें डर था कि कहीं शनि देव की वक्र दृष्टि श्रीकृष्ण पर ना पड़ जाएं।शनिदेव इससे बहुत निराश हो गए थे और नंदगांव के पास में ही एक वन में जाकर तपस्या करने लगे थे। श्रीकृष्ण ने उनके तप से प्रसन्न होकर शनिदेव को दर्शन दिए। श्रीकृष्ण ने शनि देव से कहा आप सदैव इसी स्थान पर अपना वास करना। श्रीकृष्ण ने शनिदेव को कोयल के रूप में दर्शन दिए थे इसलिए इस वन को कोकिलावन नाम से जाना जाता है।

क्यों सिद्ध कहलाता है कोकिला वन मंदिर

द्वापरयुग में शनिदेव ने भगवान श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिए कड़ी तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने शनिदेव को कोयल के रूप में दर्शन दिए थे। श्रीकृष्ण ने कहा था कि नंदगांव से सटा कोकिला वन उनका वन है। जो व्यक्ति शनिदेव की पूजा और इस वन की परिक्रमा ककरेगा उसे मेरी और शनिदेव दोनों की ही कृपा प्राप्त होती है। यही कारण है कि कोकिलावन के शनिदेव मंदिर को सिद्ध मंदिर का दर्जा प्राप्त है। कोकिला धाम में श्री शनि देव मंदिर, श्री गोकुलेश्वर महादेव मंदिर, श्री गिरिराज मंदिर, श्री बाबा बनखंडी मंदिर, श्री देव बिहारी मंदिर प्रमुख हैं। मंदिरों के अलावा यहां दो प्राचीन सरोवर और गौशाला भी स्थित हैं।

कोकिला वन शनिधाम : मुख्य मंदिर का विवरण

मंदिर एक छोटे कोकिला वन के मध्य है और इस वन व मंदिर को घेरती हुई लगभग पांच किलोमीटर की परिक्रमा है। इस परिक्रमा में भांति – भांति के पक्षी वन में दिखलाई पड़ते हैं। परिक्रमा मार्ग कच्चा, पत्थर – युक्त है, अत : इस पर कहीं – कहीं पर जूट की पट्टी बिछी हुई है, जिससे भक्तों को कष्ट नहीं होता है। यह परिक्रमा पक्षियों को व वन को निहारते हुए सरलता से पूर्ण हो जाती है। परिक्रमा के बाद यात्री प्रसाद क्रय करके मंदिर के पास आते हैं, जो वास्तव में अभी बहुत छोटे व काफी ऊंचाई पर स्थित है। इसका जीर्णोद्धार तेजी से चल रहा है।  सर्वप्रथम ढलवां चढ़ाई के दोनों ओर पत्थर की अनेक बेंचें लगी हैं, जहां पुजारी भक्तगणों से पूजा करवाते हैं और तेल छोड़कर सभी वस्तुएं मंत्र जाप करते हुए शनि को समर्पित करा देते हैं। तेल लेकर भक्त कतार में पक्की ढलान पर चढ़ते हुए मंदिर द्वार तक पहुंचते हैं और वहां स्वयं शनि महाराज पर तेल चढ़ाकर वापस आ जाते हैं। यहाँ एक व्यवस्था और है- यदि भीड़ अधिक है या भक्त के पास समयाभाव है तो वह मंदिर से दूर शनि की प्रतिकृति पर तेल चढ़ा कर वापस जा सकता है। यह तेल एक पात्र व नली से बहता हुआ स्वयं ही मुख्य शनि मूर्ति पर चढ़ जाता है।

कोकिला वन शनिधाम: दर्शनीय स्थल

मंदिर प्रांगण काफी बड़ा है और इसमें अनेक मंदिर, आश्रम आदि निर्मित हैं।

नवगृह मंदिर : षट्कोण आकार का एक बड़ा मंदिर है, जिसके चारों ओर आठ गृह हैं और मध्य में शनि विराजमान हैं। इस प्रकार नव – गृह की परिक्रमा और पूजा साथ – साथ हो जाती है।

शंकर मंदिर : इसी के पास ही गोलाकार शिखर – युक्त एक शंकर मंदिर भी है, जहां पूजा – अर्चना की जाती है। सभी प्रकार के प्रसाद और जल की व्यवस्था पास में ही है।

पवित्र सरोवर : नवग्रह मंदिर के समक्ष दो सरोवर भी हैं, जिसमें एक में पुरुष व दूसरे में स्त्रियां स्नान करती हैं और फिर मंदिरों में पूजा हेतु जाती हैं।

अनेक देवी – देवताओं के छोटे – बड़े दर्शनीय मंदिर

इन मंदिरों के अतिरिक्त भी प्रांगण में अनेक देवी – देवताओं के छोटे – बड़े दर्शनीय मंदिर हैं। इन सभी की व्यवस्था मंदिर ट्रस्ट द्वारा ही की जाती है।

गौशाला : प्रांगण द्वार पर ही एक विशाल गौशाला है, जिसमें बड़े – बड़े हॉलों में गायें सुविधा से निवास करती हैं। यात्री उनके भोजन हेतु धन के साथ साथ सामग्री भी जैसे खली, भूसी, गुड आदि का दान कर सकते हैं।

यात्रा मार्ग

दिल्ली मुख्य रेलवे लाइन पर कोसीकलां स्टेशन मथुरा के पहले पड़ता है जहां कुछ ट्रेनें रुकती हैं। स्टेशन से यह स्थल लगभग 18 किलोमीटर दूर स्थित है। वायु मार्ग हेतु निकट का हवाई अड्डा दिल्ली व आगरा ही है जहां से वाहन द्वारा यहां पहुंचा जा सकता है।  पहले मथुरा में दर्शन करते हैं, फिर वृंदावन का आनंद लेते हुए शनि धाम पहुंचते हैं।

 

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