हरियाणा के कुरुक्षेत्र में भगवती सती का दक्षिण गुल्फ गिरा था, 51 शक्तिपीठ में से इसे भद्रकालीकापीठ के नाम से जाना जाता है। यहां की शक्ति ‘सावित्री’ और ‘भैरव’ स्थाणु हैं। इस पवित्र स्थान पर चैत्र और आश्विन के नवरात्र में माताजी का विशाल मेला लगता है। पुराणों में भद्रकाली शक्तिपीठ की महिमा का गान करते हुए बताया गया है कि भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्रीकृष्ण व बलराम के मुंडन संस्कार यहां हुए थे। रक्षाबंधन के दिन श्रद्धालु अपनी रक्षा का भार माता को सौंप कर रक्षा सूत्र बांधते हैं। पावन स्थान को लेकर मान्यता यह भी है कि इससे उसकी सुरक्षा होती है।
भद्रकाली शक्तिपीठ में विशेष उत्सव के रूप में चैत्र व आश्विन के नवरात्र बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं ।श्रीमद्भागवतमहापुराण की एक पावन कथा के अनुसार, नन्दबाबा और माता यशोदा ने बालक श्रीकृष्ण का मुण्डन-संस्कार नवरात्र में भद्रकाली मंदिर में किया था। कहा गया है महाभारत युद्घ होने के पूर्व भगवान श्रीकृष्ण ने इस देवीपीठ पर माता भद्रकाली से सोने का घोड़ा चढ़ाने की प्रतिज्ञा की थी। आज भी यात्री प्रतीक के रूप में लकड़ी के घोड़े चढ़ाते हुए देखे जाते हैं।
देश की राजधानी नयी दिल्ली से अम्बाला जाते समय रास्ते में कुरुक्षेत्र स्टेशन है। इस स्टेशन से झांसारोड पर स्थाणु शिव मंदिर के पास भद्रकालीदेवी का मंदिर स्थित है। इन्हीं के नाम पर इस स्थान का नाम ‘स्थाणेश्वरु (थानेश्वर) है। यहां यह उल्लेखनीय है कि पहले स्थाणु शिव का दर्शन कर तब भद्रकाली का दर्शन करना चाहिए। माना जाता है कि महाभारत युद्घ में विजय के लिये पाण्डवों ने स्थाणु शिव और भगवती भद्रकाली का दर्शन-पूजन कर आशीर्वाद प्राप्त किया था। यहां शक्तिपीठ के पास ही द्बैपायन सरोवर भी है। सूर्यग्रहण के मौके पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु दूर-दूर से आकर यहां एकत्र होते हैं। सूर्यग्रहण के अवसर पर यहां स्नान का बड़ा महत्व है। श्रीमद् भागवत महापुराण दशम स्कन्ध क अनुसार भगवान श्रीकृष्ण अपने बंधु-बान्धवों के साथ यहां सूर्यग्रहण पर पर्व स्नान के लिए आये थे।
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कुरुक्षेत्र में आने वाले श्रद्धालु श्रीज्योतिसर, सर्वेश्वर महादेवीजी, सूर्यकुण्ड, कौरव-पाण्डव-मंदिर, थानेश्वर महादेवजी, नरकातारीकुण्ड, लौसनी माताजी, हनुमानजी, ब्रह्मर्सिरोवर आदि धर्मस्थानों के दर्शन करते हुए आत्मशान्ति प्राप्त करते हैं। यह अत्यन्त पावन शक्तिपीठ है। यहां दर्शन पूजन करने से मनुष्य को लौकिन और अलौकिक सुखों की प्राप्ति होती है।
अर्जुन ने भी की थी पूजा
द्बापर युग में महाभारत का युद्ध हुआ है। यह युद्ध कौरवों और पांडवों के बीच हुआ था। इस महासमर में विनाशकारी अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग किया गया था। महाभारत युद्ध के पहले भगवान कृष्ण ने अर्जुन से युद्ध में विजय की कामना से यहीं पर माता भद्रकाली की पूजा करने को कहा था। तब अर्जुन ने अपनी आराधना के समय युद्ध में विजय हासिल करने के बाद माता को घोड़ा चढ़ाने का प्रण लिया था। भगवती भद्रकाली की कृपा से पांडवों ने कौरवों पर विजयी हासिल की थी। जिसका वर्णन विविध धर्म शास्त्रों में किया गया है।
पावन मंत्र
गलद्रक्त मुण्डावली कण्ठमाला, महाघोर रावा,
सुदंर्ष्टाकराला विवस्त्रा श्मशानालय मुक्तकेशी
महाकालकामाकुला कालिकेयम।।
अर्थ- हे भगवती काली! अपने कंठ से रक्त टपकाते हुए, मुंडो की माला पहने हैं। वह अत्यंत घोर शब्द कर रही हैं। उनकी सुंदर दाढ़ी भयानक हैं, वह वस्त्रहीन है, वह शमशान में निवास करती हैं। उनके केश बिखरे हैं और वह महाकाल के साथ कामातुर हो रही हैं।