मां गंगा धरतीवासियों के लिए वह वरदान हैं, जो सहज उद्धार करती हैं। सच्चे मन व नियम से उनका पूजन किया जाए तो वह मुक्ति प्रदान करती हैं। कहते हैं कि गंगा के पावन जल से स्पर्श होकर बहने वाली वायु भी मनुष्य को मुक्ति प्रदान करती हैं। ऐसी पावन गंगा मां का धरती पर अवतरण कैसे हुआ, इसे पढ़ने-सुनने से ही जीव में भक्ति का आलौकिक भाव उत्पन्न होता है, जो जीवन के सत्य की ओर प्रेरित करता है।
माता गंगा ने धरती पर अवतरण के साथ ही चक्रवर्ती राजा सगर के साठ हजार पुत्रों का उद्धार किया था। माता के घरती पर अवतरण की कथा कुछ इस प्रकार है- चम्पापुर में बाहुक राजा के घर में सगर का जन्म हुआ। वे महाचक्रवर्ती व गुरु आज्ञाकारी हुए। एक बार उन्होंने अश्वमेघ यज्ञ किया। देवराज इंद्र को यह भय सताने लगा कि सगर 1०1 यज्ञ करके स्वर्ग को उससे हथिया न लें, इसलिए उन्होंने घोड़ा चुरा लिया और कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया।
सगर चक्रवर्ती के साठ हजार पुत्र थे, जो अश्व की खोज में धरती पर विचर रहे थे। वे अश्व खोज करते हुए कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे। वहां कपिल मुनि तप में मगÝ ईश्वर भक्ति में लीन थे, लेकिन सगर पुत्रों ने उन पर चोरी का आरोप लगाया। इससे कपिल मुनि क्रोधित हो गए और उनके नेत्रों से निकली चिंगारी से वे सगर पुत्र वहीं भस्म हो गए।
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वे सभी श्रापित हो कर मुक्ति मार्ग से भटक गए। राजा सगर इसे बहुत दुखी हुए लेकिन इसी बीच सगर दूसरी पत्नी को पुत्र हुआ। उसका नाम असमंजस रखा गया, जो पूर्व जन्म में योगी और तपसी थे, लेकिन योग भ्रष्ट होने के कारण उनका जन्म हुआ था। उनके पुत्र अंशुमान हुए, जो अपने दादा सगर का प्यारे थे। दादा सगर उन्हें अश्वमेघ यज्ञ की बातें सुनाते रहते हैं। अंशुमान अपने दादा की पीड़ा को भलीभांति समझते थे। दादा सगर से आज्ञ लेकर अंशुमान अश्व की खोज में निकले। उन्हें एक स्थान पर भस्म का ढेर दिखाई दिया। वहां कपिल मुनि तप में लीन थ्ो, लेकिन अंशुमान ने वह चूक नहीं की, जो उसके पूर्वजों ने की थी। पहले उन्होंने तप से मुनि के उठने का इंतजार किया, फिर उचित समय आने पर वह वहां कपिल मुनि की महिमा का बखान करने लगे। कपिल मुनि के चेहरे पर उस समय अद्भुत तेज और प्रकाश दिख रहा था। अंशुमान के वंदन से कपिल मुनि ने प्रसन्न हो कर कहा- ये यज्ञ पशु हैं। इसे लेकर जाओ। यहां पड़ी भस्म तेरे पूर्वजों की है, इनकी मुक्ति तभी सम्भव है, जब गंगा जल इन्हें स्पर्ष करें।
इसके बाद राजा सगर ने यज्ञ पूर्ण किया और परमधाम को अपनाया। अंशुमान को अपने पूर्वजों के कल्याण की चिंता सता रही थी, लिहाज वे मां गंगा को प्रसन्न करने के लिए तप करने चले गए लेकिन वे मां गंगा को प्रसन्न नहीं पाए और स्वर्ग सिधार गए। अशुमान के पुत्र दिलीप थे। वे भी गंगा मां को तप के बल प्रसन्न नहीं कर सके।
उनके पुत्र भागीरथ हुए। उनके जन्म के समय ही ऋषियों ने बताया कि यह परम शिव भक्त होगा। भागीरथ बड़े हुए और गुरुचरणों में वेदों को पठन-पाठन किया। वे स्वजन, माता-पिता व गुरु का आदर करते थ्ो। सारी बातें गुरुजन उन्हें समझाते रहते थे। वे भी अपने पूर्वजों की भाति गंगा मां का वन जाकर ध्यान लगाने बैठ गए और राजपाठ गुरु के आधीन छोड़ दिया। वे स्वयं घोर तपस्या में लीन हो गए। वे उद्घोष कर गंगा मईया को मनाते थे।
भागीरथ की तप शक्ति का गंगा प्रसन्न हुई और दर्शन दिया। तब भागीरथ ने व्यथा बताई और मां गंगा से वर मांगा- उनके साठ हजार पुरखों को मुक्ति दिलाने में वे ही समर्थ हैं। वे धरती पर आएंगी तो ही उनके पुरख्ो मुक्त हो सकेंगे। भागीरथ की विनीत प्रार्थना करने पर माता गंगा बोलीं कि मैं पृथ्वी लोक नहीं आ पाऊंगी, क्योंक धरती मेरे वेग को सम्भाल नहीं पाएगी और मैं पाताल लोक को चली जाऊंगी। दूसरी वजह यह है कि पापी जन मेरे पावन जल को पापों से भर देंगे, तब मृत्यु लोक में कौन मेरे पापों को धोएगा? तब भगीरथ ने माता से प्रार्थना करते हुए कहा कि पृथ्वी पर धर्मनिष्ठ संन्यासी धरती पर रहते हैं। उनके तन को छूने से ही सारे पाप धुले जाते हैं।
वे जटाजूट धारी है, उनकी जटाओं में आकर आप और पावन हो जाएंगी। इस पर माता गंगा धरती पर आने के लिए सहमत हुईं। तब भागीरथ भोलेनाथ भगवान शंकर की तपस्या में लीन हुए। हर पल शिव नाम उच्चारण करने लगे। वर्षो बीत गए और उन्होंने सारी सृष्टि ओमकार मंत्रों से भर दी। तब भक्ति की शक्ति ने ऐसा भाव दिखाया कि भगवान प्रकट हुए। भागीरथ से बोले- तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूं। तब भागीरथ बोले- जगत पिता भगवान शिव- आप कृपालू हो। मेरे पुरखों से भूल हुई है। कपिल मुनि ने उन्हें उनके पाप के लिए दंडित कर भस्म कर दिया है, उनकी मुक्ति तब सम्भव है, जब मां गंगा धरती पर उतरे। मां गंगा को सिर्फ आप ही धरती पर अपनी जटाओं में संभाल सकते हैं, आप मेरे मनोरथ को पूर्ण करें। मेरे वर्षो का तप व्यर्थ न जाए भगवन। इस पर भगवान भोलनाथ ने मुस्कराते हुए अपनी सहमती दी और भागीरथ को वरदान दिया।
इसके बाद भगवान शंकर ने हिमालय के शिखर के लिए प्रस्थान किया। इसके बाद भागीरथ ने माता गंगा को नमन किया तो माता स्वर्ग से धरती पर आने के लिए तैयार हुईं और उन्होंने स्वर्ग लोग को अंतिम प्रणाम किया। तब दौड़े-दौड़े भागीरथ शिव चरणों में आए। तीव्र वेग से गंगा की धारा धरती की ओर आने लगी। तब शिव जी ने मां गंगा को अपनी जटाओं में सम्भाल लिया। इसी वजह से भागवान शंकर को गंगाधर भी कहा जाता है। इस मौके पर देवों ने पुष्प वर्षा की। भागीरथ के निवेदन करने पर भगवान ने गंगा को जटाओं से मुक्त किया। इसके बाद तीव्र वेग से उड़ने वाले रथ पर भागीरथ सवार हो गए। पीछे-पीछे गंगा की धार बहने लगी। जब वे कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे तो उनके पुरख्ो कपिल मुनि के श्राप से मुक्त हो सके। मान्यता है कि जो गंगा की धार में दूध चढ़ाएगा, वह मां से मनचाहा वर पाएगा। जो धूप दीप जलागर माता गंगा की ज्योत जलाते है। वे मुक्ति पाते हैं।
श्री गंगा जी के स्तुति मंत्र–
गंगं वारि मनोहारि मुरारिचरणच्युतम्।
त्रिपुरारिशिरश्चारि पापहारि पुनातु माम्।।
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