मां कालरात्रि का पूजन नवरात्रि के सातवें दिन करने का विधान है। मां कालरात्रि जिस प्रसन्न हो जाती हैं, उसके सभी क्लेशों को दूर कर देती है। उसके जीवन में आने वाली बाधाएं समाप्त हो जाती है।
मां कालरात्रि की साधना का मंत्र है
ओम देवी कालरात्र्यै नम:।
इस मंत्र से देवी की साधना करने से माता की कृपा भक्त को प्राप्त होती है। नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना करने से भक्त को सभी संकटों से मुक्ति मिलती हैं। इस दिन मां को अगर गुड़ का नैवेद्य अर्पित किया जाए तो भक्त को शोक से मुक्ति प्राप्त होती है। दुख व दरिद्रता से उसे छुटकारा मिलता है। नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना से भक्त को प्रतिकूल ग्रहों से उत्पन्न होने वाली बाधाओं से मुक्ति मिलती है। मां कालरात्रि की उपासना जल, अग्नि, जंतु व तंतु के भय से मुक्ति प्रदान करती है।
यह भी पढ़ें –नवदुर्गा के स्वरूप साधक के मन में करते हैं चेतना का संचार
मां कालरात्रि के भक्त के लिए सृष्टि की सभी सिद्धियां सुलभ हो जाती हैं। माता कालरात्रि का स्वरूप अत्यन्त ही भयानक है। वह अत्यन्त उग्र स्वरूप वाली देवी हैं। अत्यन्त भयानक स्वरूप वाली माता कालरात्रि भक्त को नकारात्मक शक्तियों के प्रभाव से मुक्ति प्रदान करती हैं। वह भक्त को दानवों, भूत- पिशाच आदि के भय से मुक्ति प्रदान करती हैं। माता का यह रूप ज्ञान और वैराग्य प्रदान करने वाला है।
घने अँधेरे की तरह एकदम काले रंग वाली, तीन नेत्रों वाली, सिर के बालों को बिखेरे रखने वाली देवी है। उनकी नाक से आग की लपटों के रूप में सांसें निकलती हैं। मां का यह स्वरूप अत्यन्त ही उग्र है, जो भक्तों को अभय और दुष्टों को नाश करने वाला है। इनके तीन नेत्र ब्रह्माण्ड के तीन गोलों की तरह से गोल हैं। इनके गले में विद्युत जैसी माला है। माता कालरात्रि के चार हाथ हैं। ये अपने हाथों में अभय, वर मुद्राएं व शस्त्र धारण करती है। मां कालरात्रि के चार हाथों में से दो हाथों में शस्त्र रहते हैं। दाहिनी ओर के ऊपर वाले हाथ में हसिया या चंद्रहास खड़ग रहती है, जबकि नीचे वाले हाथ में कांटेदार कटार रहती है।
दो हाथों में अभय व वर मुद्राएं रहती हैं। इनका वाहन गधा है। ये स्मरण करने पर शुभ फल प्रदान करती हैं और भक्त की रक्षा करती है। मां का ऊपरी तन लाल रक्तिम वस्त्र से और नीचे का आधा भाग बाघ के चमड़े से ढका रहता है। मां कालरात्रि की अराधना करने से भक्त को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। मां का भक्त निर्भय होकर सृष्टि में रहता है और मुक्ति प्राप्त करता है।