नवरात्रि के दूसरे दिन भगवती के ब्रह्मचारिणी स्वरूप का ध्यान-पूजन व अर्चन किया जाता है। इनकी प्रसन्नता से भक्त के जीवन की बाधाएं दूर होती हैं, उसे सफलता प्राप्त होती है। भगवती के ब्रह्मचारिणी स्वरूप को गुड़हल व कमल के पुष्प अत्यन्त प्रिय हैं। नवरात्रि के दूसरे दिन इन्हीं पुष्पों से भगवती ब्रह्मचारिणी का पूजन-अर्चन श्रेयस्कर होता है। इन्हीं पुष्पों को अर्पित कर चीनी, मिश्री व पंचामृत का भोग लगाने से ब्रह्मचारिणी मां शीघ्र प्रसन्न होती हैं। भक्त को लम्बी आयु, यश व सौभाग्य प्रदान करती हैं। ब्रह्मचारिणी सृष्टि में सर्वव्यापी ब्रह्मांडीय चेतना का दूसरा स्वरूप है। ब्रह्म का सीधा अर्थ है परम चेतना। वह परम चेतना, जिसका न तो आदि है और न ही अंत है, अर्थात जिसके पास सृष्टि में कुछ भी नहीं है।
भगवती ब्रह्मचारिणी के ध्यान में मग्न भक्त नवरात्रि के दूसरे दिन परमसत्ता की दिव्य अनुभूतियां अनुभव करता है। ब्रह्मचारिणी के ध्यान में रहने वाले भक्त की शक्तियां असीमित व अनंत हो जाती है। सत्, चित्त व आनंदमय ब्रह्म की प्राप्ति ब्रह्मचारिणी मां कराती हैं। यहीं माता ब्रह्मचारिणी का स्वभाव है। पूर्ण चंद्र के समान निर्मल, कांतिमय व भव्य स्वरूप है माता ब्रह्मचारिणी का। ब्रह्मचारिणी मां की दो भुजाएं हैं।
ब्रह्मचारिणी कौमारी शक्ति का स्थान योगियों ने स्वाधिष्ठान चक्र बताया है। इनके हाथ में कमंडल और दूसरे हाथ में जप की माला है। ब्रह्मचारिणी मां अपने भक्त को सन्मार्ग व कर्तव्यपथ पर चलने की शक्ति प्रदान करती हैं। उनका भक्त कभी विचलित नहीं होता है। इनका वाहन पर्वत की चोटी यानी शिखर को बताया गया है।
माता ब्रह्मचारिणी सूक्ष्म से सूक्ष्म रूप में भगवान शिव की प्राप्ति के लिए कठोर तप करती रहीं। तीनों लोकों में भगवती के इस ब्रह्मचारिणी रूप से असीम तेज व्याप्त हो गया। उस समय ब्रह्मा जी ने आकाशवाणी कर ब्रह्मचारिणी स्वरूप में शिव को प्राप्ति का वर प्रदान किया।
देवी ब्रह्मचारिणी का साधना मंत्र
ओम देवी ब्रह्मचारिण्यै नम:
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