कूष्माण्डा की नवरात्रि के चतुर्थ दिन अराधना कर भक्त अपनी आतंरिक प्राणशक्ति को उर्जावान बनाते हैं। इन्हें सृष्टि की आदि स्वरूप देवी माना जाता है। यही आदि शक्ति हैं, इनसे पूर्व ब्रह्माण्डा का अस्तित्व नहीं था।कूष्माण्डा का अभिप्राय कद्दू से हैं। गोलाकार कद्दू मानव शरीर में स्थित प्राणशक्ति समेटे हुए हैं। एक पूर्ण गोलाकार वृत्त की भांति प्राणशक्ति दिन-रात भगवती की प्रेरणा से सभी जीवों का कल्याण करती हैं।
कद्दू प्राणशक्ति, बुद्धिमत्ता और शक्ति की वृद्धि करता है। कू का अर्थ है छोटा, उष्म का अर्थ उर्जा और अंडा का अर्थ है ब्रह्मांडीय गोला। धर्म ग्रंथों में मिलने वाले वर्णन के अनुसार अपने मंद और हल्की से मुस्कान मात्र से अंड को उत्पन्न करने वाली होने के कारण इन्हें कूष्माण्डा कहा गया है। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, चारों ओर अंधकार ही अंधकार था, तब इन्हीं देवी ने महाशून्य में अपने मंद हास्य से उजाला करते हुए अंड की उत्पत्ति की, जो कि बीज रूप में ब्रह्मतत्व के मिलने से ब्रह्माण्ड बना।
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इस प्रकार मां दुर्गा की यही अजन्मा और आदिशक्ति रूप है। जीवों में इनका स्थान अनाहत चक्र माना गया है। नवरात्रि के चतुर्थ दिन योगी इसी चक्र में अपना ध्यान लगाते हैं। मां कूष्माण्डा का निवास सूर्य लोक में है। उस लोक में निवास करने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। इनका वाहन सिंह है। संस्कृत भाषा में कूष्माण्डा यानी कुम्हड़े को कहते हैं। बलियों में कुम्हड़े की बलि इन्हें प्रिय मानी जाती है। इस कारण इन्हें कूष्माण्डा कहा जाता है।
इनके स्वरूप की कांति और तेज मंडल भी सूर्य के समान है। सूर्य के समान ही अतुलनीय है। मां कूष्माण्डा अष्टभुजा देवी हैं। इनके सात हाथों में क्रमश: कमण्डल, धनुष, वाण, कमल का फूल, अमृत कलश, चक्र और गदा है, जबकि आठवें हाथ में सर्वसिद्धि और सर्वनिधि देने वाली जप माला है। नवरात्रि के चतुर्थ दिन मां के इस स्वरूप के सामने मालपूवे का भोग लगाना चाहिए। इसके बाद इस प्रसाद को दान करें और स्वयं भी ग्रहण करें। ऐसा करने से भक्तों की बुद्धि का विकास होने के साथ-साथ निर्णय क्षमता भी बढ़ती है।
देवी कूष्मांडा का साधना मंत्र
ओम देवी कुष्मांडायै नम: