नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा अर्चना की जाती है। मां महागौरी की पूजा-अर्चना से जीव के जन्म जन्मान्तरण के पाप धुल जाते हैं। भगवती की यह शक्ति शीघ्र ही प्रसन्न होती है और भक्त को अमोघ फल की प्राप्ति होती है। भक्त को अनन्न भाव से एकनिष्ठ होकर पादारविन्दों का ध्यान करना चाहिए। भगवती के इस स्वरूप की कृपा पाने के लिए उनके चरणों का स्मरण करते हुए हमेशा ध्यान-पूजन करना चाहिए। इनकी उपासना से असम्भव कार्य भी सम्भव बन जाते है।
मां महागौरी देवी की साधना का मंत्र निम्न उल्लेखित है।
मंत्र है- ओउम देवी महागौर्ये नम:
मां महागौरी जिस पर प्रसन्न होती है, उसके दुख संताप को हर लेती हैं। इनकी कृपा से साधक हर तरह से सभी पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है। उसे अलौकिक सिद्धियां प्राप्त होती हैं। मां की अराधना से भक्त सत्कर्मों की ओर प्रेरित होता है। माता महागौरी अतिसौन्दर्यवान, शांत, करुणामयी, स्वरूप वाली हैं। सभी भक्तों को भौतिक जगत में प्रगति के लिए आर्शीवाद देती हैं। मां का यह स्वरूप सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाला है। नवरात्रि के आठवें दिन कंद, फूल, चंद्र या श्वेत शंख जैसे निर्मल गौर वर्ण वाली महागौरी का ध्यान-पूजन किया जाता है।
इनके सभी वस्त्र व आभूषण और वाहन वृषभ अर्थात बैल हिम के समान गौर वर्ण वाला है। मां महागौरी की चार भुजाएं हैं। इनके दाहिने के ऊपर वाले हाथ में अभय मुद्रा और नीचे के हाथ में त्रिशूल है। ऊपर वाले बाये हाथ में डमरू और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है। माता पार्वती के रूप में जब मां भगवती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी, तब इस कठोर तप के कारण उनकी देह क्षीण और वर्ण काला पड़ गया था।
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अंतत: तपस्या से संतुष्ट होकर जब भगवान शिव ने अपनी जटा से निकलती पवित्र गंगा की धारा उन पर डाली थी, तब वह विद्युत प्रभा के समान अति कांतिमय और गौर वर्ण हो गईं। तभी से मां का नाम महागौरी पड़ा। नवरात्रि के आठवें दिन मां केक इस रूप का ध्यान कर पूजा अर्चना कर नारियल का भोग लगाने का विधान है। इससे साधक को परम सौभाग्य की प्राप्ति होती है।