दो पल के लिए ही सही उस बचपन में लौट जाऊं,
वो अल्हड़ सा बचपन, वो नादान बचपन,
वो मासूम बचपन, वो बेफिक्र बचपन,
वो हंसता हुआ, खिलखिलाता सा बचपन,
हर बात पर इतराता, इठलाता सा बचपन,
वो झूलों में झूलता, मिट्टी में लिपटा सा बचपन,
फूलों की मासूम कलियों सा बचपन,
दादी-नानी के किस्से कहानियों का बचपन,
वो भाई-बहनों की अठखेलियों का बचपन,
दोस्तों की मस्ती,ठिठोली में डूबा सा बचपन,
वे खेल-खिलौने, परियों के ख्वाबों का बचपन,
वौ मिट्टी के घरौंदे, वो गुड़ियों की शादी का बचपन,
दो पल के लिए ही सही उस बचपन में लौट जाऊं,
मां के आंचल में छुप जाऊं , बाबा की बाहों में समा जाऊं,
अपने मन की घुटन को मिट्टी के घरौंदे में रख आऊं,
बचपन का वो उजाला लिए फिर वापस आऊं।
डॉ. ऋतु नागर
लोकभवन के सामने मां-बेटी के आत्मदाह के प्रयास का निकला राजनैतिक कनेक्शन!
ये तारीखें गवाह रहीं श्रीराम मंदिर विध्वंस और श्रीराम मंदिर निर्माण के संघर्ष की
Very nice poem.