माँ मैं तुम जैसा बनना चाहती हूँ,
कितना कुछ सीखा तुमसे,
कुछ और सीखना चाहती हूँ,
हर दिन कुछ नया करना,
तुमसे ही तो सीखा मैंने,
सुख-दुख मैं तटस्थ रहकर ,
धीरज के साथ जीना,
तुमसे ही तो सीखा मैंने,
असफलताओं को सफलता का आधार बनाकर जीना,
तुमसे ही तो सीखा मैंने,
अपने हाँथों से बनाए व्यंजनों में रस भरना,
तुमसे ही तो सीखा मैंने,
एक अच्छी सुता, संगिनी, माॅं बनना है कैसे,
तुमसे ही तो सीखा मैंने,
कुटुम्ब जोड़, रिश्तों को सहेजना,
तुमसे ही तो सीखा मैंने,
सबकी खुशियों में खुश होना,
तुमसे ही तो सीखा मैंने,
हर बंदे मे रब मिलता है,
ये भी तुमसे ही तो सीखा मैंने,
जिंदगी की किताब को नवरंगों से भरना,
तुमसे ही तो सीखा मैंने,
हर पूर्ण विराम के उपरान्त आगे बढ़ना,
तुमसे ही तो सीखा मैंने,
कितना कुछ सीखा तुमसे,
कुछ और सीखना चाहती हूँ,
माँ में तुम जैसी बनना चाहती हूँ।
डॉ• ऋतु नागर
स्वरचित