मां वैष्णोदेवी: दर्शन में असीम आध्यात्मिक सुख

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maan vaishnodevee: darshan mein aseem aadhyaatmik sukh जम्मू – कश्मीर क्षेत्र में स्थित ‘ वैष्णोदेवी ‘ में यहां महासरस्वती, महालक्ष्मी तथा महाकाली – ये तीनों महादेवियां ‘ वैष्णवीदेवी ‘ के संयुक्त नाम से प्रतिष्ठित हैं। क्षेत्रीय भाषा में इन्हें ‘ वैष्णोदेवी ‘ कहा जाता है। ये तीनों देवियां ही संपूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति, पालन तथा संहार की मुख्य आधार हैं। यथार्थ में ये सब अलग – अलग होते हुए भी एक हैं। इन पराशक्तियों को सहस्रों नामों से संबोधित किया जाता है। इनके सहस्रों स्वरूप हैं और ये विभिन्न प्रकार की लीलाएं करने के लिए सहस्रों रूपों में अवतरित होती रही हैं।

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श्रद्धालु भक्तजनों ने अपनी – अपनी भक्तिभावना प्रदर्शित करने के लिए विभिन्न स्थानों पर उनकी मूर्तियों एवं मंदिरों की स्थापना की है। कई स्थानों पर इस पराशक्ति की मूर्तियां प्राकृतिक रूप में प्रकट हुई हैं। त्रिकूट पर्वत की गुफा में प्राकृतिक रूप में निर्मित तीन पिंडों के रूप में प्रतिष्ठित ये देवियां अनेक नाम, रूप धारण करके विश्व, ब्रह्मांड के प्रत्येक अणु तथा कण – कण में प्रतिष्ठित हैं। वैष्णोदेवी का यह स्थान अत्यंत प्राचीन है, किंतु वर्तमान समय में इसकी प्रसिद्धि जम्मू के डोगरा नरेश रणजीत देव के कार्यकाल से हुई। डोगरा – वंशजों ने इस स्थान को अपनी आराध्यस्थली माना। जम्मू – कश्मीर के डोगरा राजा गुलाब सिंह ने मार्ग का नवीनीकरण कराकर स्वयं वैष्णोदेवी के दर्शन किए। धीरे – धीरे आवागमन की सुविधाओं के बढ़ने से दर्शनार्थियों की संख्या बढ़ती गई। वैसे तो वर्षभर दर्शनार्थी वैष्णोदेवी की यात्रा करते रहते हैं, किंतु नवरात्र ( आश्विन और चैत्र ) में यह यात्रा स्वयं में महत्त्वपूर्ण बन जाती है। विशेषकर अक्तूबर और मार्च मास में दर्शनार्थी जहां आध्यात्मिक सुख का अनुभव करते हैं, वहां वे प्राकृतिक सौंदर्य से भी लाभान्वित होते हैं।

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वैष्णोदेवी की यात्रा मानव को दो मार्गों पर चलने की प्रेरणा देती है – यती और सती बनने की। वैष्णोमाता का यह प्राचीन मंदिर त्रिकूट पर्वत की एक गुफा में स्थित है। यह स्थान जम्मू – कश्मीर राज्य के ऊधमपुर जिले के अंतर्गत है।

उत्तर भारत की नौ देवियां:: मां वैष्णोदेवी यात्रा मार्ग

  • कटरा तक पहुंचना और कटरा से वैष्णो देवी मंदिर दर्शन तक जाना
  • मार्ग : जम्मू कश्मीर क्षेत्र में स्थित वैष्णोदेवी यात्रा का पहला पड़ाव कटरा नगर है। इसके समीप हवाई अड्डा जम्मू नगर का है। यहां से कटरा नगर की दूरी 52 किलोमीटर है, जो बस या टैक्सी द्वारा पूर्ण की जा सकती है। रेल मार्ग का इसके समीप मुख्य स्टेशन जम्मूतवी है। यहां से कटरा की दूरी 52 किलोमीटर है। स्टेशन से कटरा तक जाने हेतु शासकीय व प्राइवेट बसें हर समय बहुतायत से उपलब्ध हैं। यात्री टैक्सी द्वारा भी कटरा जा सकते हैं। जहां तक बस मार्ग की सुविधा का प्रश्न है तो यह नगर उत्तर भारत के प्रत्येक बड़े नगर से सीधा जुड़ा है। दिल्ली और आसपास से सैकड़ों बसें, टैक्सियां आदि छुट्टियों में कटरा जाती रहती हैं।
  • कटरा नगर पहुंचने के पश्चात् मंदिर यात्रा है। निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना लाभदायक होगा। भारत के सभी नागरिक वैष्णोदेवी की यात्रा करने हेतु बड़े इच्छुक होते हैं, परंतु जानकारी के अभाव में ये यात्रा कष्टकारी हो जाती है। दुख का विषय यह है कि यात्रा करके आए हुए नागरिक भी आने वालों को उचित सलाह न देकर केवल मां की तारीफ ही करते रहते हैं। अत : इस पुस्तक के माध्यम से उचित सलाह दी जा रही है और इसका ध्यान रखने पर यात्रा सुखद होगी तथा कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ेगा। सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि अपने साथ कम से कम सामान यात्रा में ले जाएं, क्योंकि प्रत्येक वस्तु रास्ते में अच्छी से अच्छी मिलती है। अतिरिक्त गर्म कपड़े, कंबल आदि भी न ले जाएं। कंबल मंदिर में कम किराए पर उपलब्ध होते हैं। खानपान की उत्तम व्यवस्था मंदिर व रास्ते में है। कैमरा आदि भी न ले जाएं। यदि आप ये सब सामान ले जाते हैं तो लाकर प्राप्त करने में ही अधिक समय लगता है। मंदिर में किसी भी वस्तु का ले जाना पूर्णतया वर्जित है।
  • सर्वप्रथम तीर्थयात्रियों के समूह से एक को कटरा, मुख्य चौराहे पर स्थित कार्यालय से टिकट अथवा दर्शन हेतु प्रमाणपत्र अवश्य ले लेना चाहिए, क्योंकि इसके बिना आगे यात्रा संभव नहीं है।
  • इसी कार्यालय से आदि कुंवारी से विद्युतशटल का आरक्षण भी प्राप्त कर लें। यह सुविधा सभी को आदिकुंवारी स्थान से सीधी मंदिर के पास तक ले जाती है।
  • कुली, पिट्ट, घोड़ा, पालकी आदि की व्यवस्था भी इसी कार्यालय से होती है। उसे भी करा लें, यदि यात्री बुजुर्ग महिलाएं या पुरुष हैं तो उन्हें तकलीफ नहीं होगी।

बाणगंगा

  •  सर्वप्रथम टैंपो या टूसीटर द्वारा तीन किलोमीटर दूर बाणगंगा तक पहुंचना सरल होगा। यहां यात्री स्नान, नाश्ता आदि करके आगे की यात्रा प्रारंभ कर सकते हैं।
  • यहाँ से यात्री अपना प्रमाणपत्र दिखाकर आगे यात्रा प्रारंभ करते हैं। यहीं से बच्चों हेतु पिट्ट तथा बड़ों के लिए घोड़े, पालकी आदि एक निश्चित दर पर मिलती हैं।
  • आगे की यात्रा के दो मार्ग हैं। एक सीढ़ियों वाला और दूसरा सड़क मार्ग। यात्री दूसरा मार्ग अधिक चुनते हैं, क्योंकि यह सुविधाजनक है। पैदल यात्रियों के साथ घोड़े, पालकी आदि चलती रहती हैं, जिससे सभी आयु के यात्री अपने समूह में साथ रहते हैं।
  • पिट्ट, घोड़े, पालकी आदि केवल मंदिर पहुंचने तक ही करें, क्योंकि दर्शन में इतना समय लगता है कि इनके द्वारा वापस जाना संभव नहीं है। वापसी यात्रा हेतु मंदिर से कटरा तक जाने हेतु दूसरे नए पिट्ट, घोड़े पालकी आदि किराए से प्राप्त करें।

चरण पादुका 

बाणगंगा से आगे चरण पादुका स्थान है, जहां माता के चरण – चिह्न है। वाणगंगा से इसकी दूरी 1.5 किलोमीटर है।

अर्द्धकुंवारी या आदि कुंवारी

चरण पादुका से लगभग चार किलोमीटर आगे यह स्थान है। यहां भोजन व ठहरने की उत्तम व्यवस्था है। यहां एक गर्भगुफा है, जिसमें माता का मंदिर है। यहां दर्शन करने व भोजन आदि करके यात्री आगे की यात्रा प्रारंभ करते हैं। यहां से यात्री विद्युतशटल द्वारा सरलता से मंदिर के पास तक पहुंच जाते हैं। रास्ता खराब होने पर यह सुविधा निरस्त हो जाती है।

हाथी मत्था 

अर्द्धकुंवारी से हाथी मत्था तक खड़ी चढ़ाई पड़ती है, जिसमें यात्री प्रायः थक जाते हैं। यात्री धीरे – धीरे आगे बढ़ें और रास्ते में चाय, जूस, नाश्ता आदि ग्रहण करते जाएं, जिससे थकावट कम होगी। अर्द्धकुंवारी से हाथी मत्था की दूरी लगभग 2.5 किलोमीटर है। इसके पश्चात् चढ़ाई समाप्त हो जाती है और उतराई प्रारंभ हो जाती है तथा मुख्य मंदिर परिसर भी दिखलाई पड़ने लगता है। इससे चित्त प्रसन्न हो जाता है और मार्ग सुलभ लगने लगता है। धूप – वर्षा आदि से बचने हेतु रास्ते में टीनशेड लगे हैं।

वैष्णोदेवी का मंदिर 

हाथी मत्था से लगभग चार किलोमीटर दूर माता मंदिर का परिसर आ जाता है जहां पिटू, घोड़े, पालकी आदि को रुपए भुगतान करके छोड़ देना उचित होगा। वैष्णोदेवी परिसर के प्रारंभ में ही अनेक होटल तथा रेस्टोरेंट हैं, परंतु परिसर के अंदर मंदिर ट्रस्ट द्वारा उत्तम नाश्ते व भोजन की सस्ती व बहुत अच्छी व्यवस्था है। बाहरी परिसर में ही कपड़ों की थैली में प्रसाद क्रय किया जाता है। यात्री इसे लेकर अंदर प्रवेश करते हैं। प्रारंभ में ही अपने सामान की व आपकी चेकिंग होती है और मंदिर में प्रवेश हेतु एक नंबर दिया जाता है, उसी अनुसार आपको मुख्य मंदिर की लाइन में प्रवेश मिलता है। चूंकि आपके नंबर आने में अनेक घंटों का समय लग जाता है, कभी – कभी तो ज्यादा भी। यह यात्रियों की संख्या पर निर्भर होता है। अतः यात्री मंदिर के अंदर परिसर में भ्रमण करें, मंदिरों के दर्शन करें और रसीद कटवाकर दान दें। यहां पंडों का पूर्ण अभाव है। इसके पश्चात् लॉकर में अपने सभी सामान जमा करें। मंदिर में केवल चश्मा, पर्स तथा प्रसाद छोड़कर कुछ भी ले जाने नहीं दिया जाता है। चूंकि लॉकर कम हैं, अत : दो – चार घंटे तो इसे प्राप्त करने में ही लग जाते हैं। जो यात्री रात्रि में पहुंचते हैं, वे मंदिर ट्रस्ट के कंबल आदि किराए पर लेकर वहीं के कमरों में सो जाते हैं और तीन या चार बजे प्रात : उठकर दर्शन की लाइन में प्रवेश कर जाते हैं। इस समय नंबर की ज्यादा जांच नहीं की जाती है और आपको प्रवेश मिल जाता है लाइन से मंदिर तक पहुंचने में भी लगभग एक घंटा लग जाता है।

पुराने समय में मुख्य दर्शन हेतु एक जल से भरी संकीर्ण गुफा से गुजरना पड़ता था, पर अब उसे बंद करके एक नया गुफा समान मार्ग बना दिया गया है। एक गुफा से यात्री कतार में तीनों माता की पवित्र पिंडियों के दर्शन करते हैं और दूसरी गुफा से कतार में ही बाहर आ जाते हैं। इसके पश्चात् यात्री प्रसाद प्राप्ति स्थल तक पहुंच कर प्रसाद ग्रहण करते हैं। जो मंदिर का अपना और पैकेट में होता है, दिया जाता है। नारियल के टुकड़े भी दिए जाते हैं।

विशेष व्यवस्था

जो यात्री रक्षातंत्र से पास लेकर आते हैं यां वी.आई.पी. पास आदि लेकर आते हैं या हेलीकॉप्टर से आते हैं, उन्हें एक विशेष मार्ग से लाइन में आगे प्रवेश मिल जाता है और दर्शन मात्र आधे घंटे में ही हो जाते हैं। तीर्थयात्री कटरा से हेलीकॉप्टर द्वारा भी यहां पहुंचते हैं। डेकन व पवन हंस कंपनी के हेलीकॉप्टर अच्छे मौसम में प्रातः 8 बजे से सायं 5 बजे तक उड़ानें भरते रहते हैं। इस सुविधा का लाभ यात्री उठा सकते हैं|

  • डेकन एवियेशन का दूरभाष नंबर 01951-234378 / 79 है। और ई.मेल पता katraticketing@deccanair.com है।
  • पवन हंस का दूरभाष नंबर 01991-233637 व 234658 है तथा ई.मेल पता pawanhans.vd@gmail.com है। इनसे संपर्क कर अग्रिम आरक्षण कराया जा सकता है। हेलीपैड कटरा बस स्टैंड से दो किलोमीटर है, जहां तक यात्रियों को पैदल चलना पड़ता है। दर्शन करने के पश्चात् साधारण यात्रियों के समान ही प्रसाद स्थल तक पहुंचना होता है। हेलीकॉप्टर के यात्री पैदल वापस हेलीपैड तक जाते हैं और आधे घंटे में ही कटरा पहुंच जाते हैं। अन्य यात्री सुविधानुसार वापस की पैदल यात्रा प्रारंभ करते हैं।
  • वापसी यात्रा में यात्री भैरव मंदिर तक जाते हैं, जो लगभग तीन किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई पर स्थित है। यहां से दर्शन के पश्चात् दूसरे रास्ते से वापस जाते हैं, यह रास्ता मुख्य रास्ते से मिल जाता है। यात्रा 24 घंटे सुचारु रूप से चलती रहती है। रात्रि में प्रकाश की अच्छी व्यवस्था पूरे मार्ग में है। यात्रियों को लौटते समय ही फोटोज, मेवा, पुस्तकें आदि क्रय करनी चाहिए, जो कटरा में बहुतायत से मिलती हैं।
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