मकर संक्रांति (माघ कृष्ण प्रतिपदा) का पर्व परमपुण्य प्रदान करने वाला है, इसे देशभर में मनाया जाता है। हम इस लेख में आपको इस पावन मकर संक्रांति पर्व के बारे में विस्तार से बताने जा रहे है, जिससे आपको इस व्रत के महात्म्य का ज्ञान हो सके। इस पावन दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है, इसलिए आत्मकल्याण के लिए जीव को इस पावन मकर संक्रांति दिन पुण्य कर्म करते हुए दान-पुण्य आवश्य करना चाहिए। कहा जाता है कि इसी दिन यशोदा जी ने श्रीकृष्ण को पुत्र रूप में प्राप्त करने के लिए व्रत किया था।
जितने लम्बे समय में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाती है, हम उसे सौर वर्ष कहते हैं। आइये अब जानते हैं कि संक्रांति चक्र क्या है, तो हम जानिए कि पृथ्वी का गोलाई में सूर्य के चारों ओर घूमना क्रान्ति चक्र कहलाता है। इस परिधि को बारह भागों में बांट कर बारह राशियां बनी हैं। इन राशियों का नामकरण बारह नक्षत्रों के अनुरूप हुआ है। पृथ्वी का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश संक्रान्ति कहलाती है। पृथ्वी का मकर में प्रवेश करना मकर संक्रान्ति कहलाता है। सूर्य के उत्तरायण होने को मकर संक्रान्ति और दक्षिणायण तथा माघ आषाढ़ तक दक्षिण के अन्तिम भाग से उत्तर के अन्तिम भाग तक जाना उत्तरायण है।
उत्तरायण में दिन बड़े हो जाते हैं और प्रकाश बढ़ जाता है । राते दिन की अपेक्षा छोटी होने लगती हैं। दक्षिणायन में इसके ठीक विपरीत होता है। शास्त्रों के अनुसार उत्तरायण की अवधि देवताओं का दिन और दक्षिणायन देवताओं की रात्रि है। वैदिक काल में उत्तरायण को देवयान और दक्षिणायन के पितृयान कहा जाता था। मकर संक्रान्ति के दिन यज्ञ में दिए गए द्रव्य को ग्रहण करने के लिए धरा पर अवतरित होते हैं। इसी मार्ग से पुण्यात्मा पुरुष शरीर छोड़ कर स्वर्गादिक लोकों में प्रवेश करते हैं, इसलिए यह आलोक का अवसर माना गया है। धर्मशास्त्रों के कथनानुसार इस दिन पुण्य, दान, जप तथा धार्मिक अनुष्ठानों का विशेष महत्व है। इस अवसर पर दिया हुआ दान पुर्नजन्म होने पर सौगुणा होकर प्राप्त होता है।
यह पर्व भारतभर में मनाया जाता है। इस पर्व की पूजन – पद्धति में शीत की अतिशयता से छुटकारा पाने का विधान अधिक है। इस पर्व पर तिल का विशेष महत्व माना गया। तिल खाना तथा तिल – बांटना इस पर्व की महानता है। शीत के निवारण के लिए तिल, तेल तथा तूल का महत्व अधिक है। तिल मिश्रित जल से स्नान तिल- उबटन, तिल – हवन , तिल – भोजन तथा तिल – दान सभी पापनाशक प्रयोग हैं, इसीलिए इस दिन तिल, गुड़ और चीनी मिले लड्डू खाने और दान देने का अपार महत्व है।
हिमाचल, हरियाणा और पंजाब में मकर संक्रान्ति से एक दिन पहले यह त्यौहार लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सायंकाल अन्धेरा होते ही होली के समान आग जला कर तित गुड़, चावल तथा उबले हुए मक्का से अग्नि – पूजन करके आ डाली जाती है। इस सामग्री को तिल – चौली कहते है। उत्तर प्रदेश में इस उत्सव को खिचड़ी कहते हैं। इस दिन खिचड़ी खाने और खिचड़ी – तिल का दान देने का विशेष महत्च है। महाराष्ट्र में इस दिन ताल – गुल नामक हलवे के बांटने की प्रथा है। इस दिन महिला समाज परस्पर गुड़ , तिल , रोली व हल्दी बांटती हैं। बंगाल में भी इस दिन स्नान करके ‘ तिल – दान की विशेष प्रथा का प्रचलन है। इस अवसर पर गंगा – सागर में बहुत बड़ा मेला लगता है। प्राचीन रोम समाज में इस दिन खजूर , अंजीर तथा शहद बांटने की प्रथा का उल्लेख मिलता है। प्राचीन ग्रीक के लोग वर – वधू की संतान – वृद्धि के लिए तिलों का पकवान बांटते थे। इस दिन कम्बल तथा शुद्ध घी का दान महान पुण्य माना जाता है । यह पावन पर्व पूरे भारत में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है, इस पर्व पर दान व धर्म का विशेष महत्व है, इस दिन किए गए दान-पुण्य का फल अगले जन्म में मनुष्य को कई गुना प्राप्त होता है। यह पवन पर्व अर्थ, धर्म, काम व मोक्ष प्रदान करता है।