मानसिक पूजा में श्री कृष्ण का गीता का उपदेश करता दृष्य भी बहुत ही कल्याणकारी होता है। इस भाव और पूरे मनोयोग से भगवान श्री कृष्ण को नमन कर उनकी मानसिक पूजा का अतुल्य पुण्य प्राप्त होता है। श्री कृष्ण की दिव्यता को प्रकट करता यह स्वरूप अत्यन्त मनोहारी है, इसी समय भगवान ने अर्जुन को अपने विराट स्वरूप के दर्शन कराये थे। जिस विराट स्वरूप में सम्पूर्ण सृष्टि समाहित थी। आइये, अब जानते हैं, मानसिक पूजा के दौरान भगवान के किस अतुल्य स्वरूप को मानस पटल पर धारण कर उनका ध्यान करना चाहिए।
कौरव व पांडवों की सेना कुरुक्षेत्र के मैदान में सजी हुई हैं। यहां कुरुक्षेत्र में दोनों सेनाओं के बीच अर्जुन का दिव्य रथ खड़ा है। सब ओर शांति सी छायी हुई है। रथ के अगले भाग पर वीर वेष में कवच कुण्डलधारी भगवान श्री कृष्ण विराजमान हैं। श्री कृष्ण का श्याम वर्ण शोभावान है। शरीर पर पीताम्बर सुशोभित हो रहा है।
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सृष्टि की सम्पूर्ण सुंदर उनमें ही प्रतिबिंदित हो रही है। परम सुंदर मुखकमल प्रफुल्लित है। शांत हैं और अपने तेज से सबको प्रकाशित कर रहे हैं। कानों में मकराकृति कुण्डल है। रक्त कमल के समान विशाल नेत्रों से से ज्ञान की दिव्य ज्योति प्रस्फुटित हो रही है। उन्नत ललाट पर ऊध्र्वपुण्ड्र तिलक सुशोभित है। काले घुंघराले मनोहर केश उनकी शोभा को बढ़ा रहे हैं।
सिर पर रत्नमण्डित स्वर्ण मुकुट शोभा पा रहा है। एक हाथ में घोड़े की लगाम है। चाबुक पास में रखी है और दूसरा हाथ ज्ञान मुद्रा से सुशोभित है। अर्जुन रथ के पिछले भाग में बैठे हुए अत्यन्त करुणभाव से शरणापन्न हुए भगवान श्री कृष्ण की ओर देख रहे हैं। श्री कृष्ण भगवान बहुत ही शांति और धैर्य से आश्वासन देते हुए और अपनी मधुर मुस्कान से अर्जुन के विषाद को नष्ट करते हुए उन्हें गीता का महान उपदेश कर रहे है।
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भगवान श्री कृष्ण की भव्यता और अलौकिकता को दर्शाता यह मनोहारी दृष्य अर्जुन के श्री कृष्ण के प्रति समर्पण को प्रकट कर रहा है। सोलह कलाओं से परिपूर्ण भगवान श्री कृष्ण की दिव्यता अनुभूति कराने वाला है।