मानसिक पूजा का होता है चमत्कारिक प्रभाव

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अंत:करण में भगवान का वास होता है, तभी भगवान की असीम कृपा जीव को प्राप्त होती है और उसे इसकी अनुभूति होती है। भगवान की असीम कृपा कैसे प्राप्त हो?, इसके लिए भौतिक पूजा के विधान धर्म शास्त्रों में बताए गए हैं, इनका अपना ही महत्व है। भौतिक पूजा आवश्यक भी है, लेकिन किन्हीं परिस्थितियों में आप भौतिक पूजा करने में स्वयं को असमर्थ पाते हैं तो वाराह, मुगदल, नारद आदि पुराण आदि धर्मशास्त्रों में मानसिक पूजा का वर्णन किया गया है, मानसिक पूजा का अपना ही महत्व बताया गया है, लेकिन इसका आशय यह नहीं लगाया जाना चाहिए कि भौतिक पूजा नहीं करनी चाहिए।

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हमारे कहने का यहां आशय है कि भौतिक पूजा के साथ मानसिक पूजा भी करनी चाहिए, इससे भक्त पर भगवान की असीम कृपा होती है। अक्सर अपने को विद्बान घोषित करने वाले तथाकथित कुछ विद्बान यह कहते हुए दिख जाएंगे, कि ईश्वर तो भाव के भूखे हैं, यह सत्य है कि ईश्वर भाव को देखता है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि आप भौतिक पूजा ही न करें, क्योंकि अगर आपके लिए भौतिक पूजा संभव है और मानसिक पूजा करके ही इतिश्री कर लेते है, तो इसमें दोष लगता है। संक्षप में कहे तो भौतिक पूजा के साथ ही मानसिक पूजा भी करनी चाहिए। आइये, अब आते हैं, मानसिक पूजा के मूल विषय पर, जिसके बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं, मानसिक पूजा के माध्यम हम भगवान से निजता के संभव सरलता से बना सकते हैं। ईश्वर के साथ जिस दिन व्यक्ति का निजिता का संबंध स्थापित हो जाएगा, उस दिन यह मान लें कि भगवान की भक्ति उसे आ गई है और उसे अब कोई भी मार्ग से नहीं हटा सकता चाहे कितनी ही बड़ी विपदाएं क्यों न मार्ग में आ जाए।

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भगवान की पूजा तो हम सभी करते है और सभी चाहते हैं कि जो भी उनकी कामनाएं है, वह भगवान पूरा कर दें। कामनाओं की इच्छा पूर्ति न होने पर भगवान में ही उन्हें खोट दिखाई देती है, वे समझते है कि इतनी पूजा-अर्चना करने के बाद भी जब परिणाम सुखद नहीं रहा तो फिर पूजा करने का क्या तात्पर्य। भौतिक पूजा के साथ-साथ मानसिक पूजा भी आवश्यक है, कामनाएं पूरी न होने पर या किसी बहकावे में आकर व्यक्ति को भौतिक पूजा बंद नहीं करनी चाहिए।

मानसिक पूजा का तात्पर्य यह है कि जब आप भौतिक पूजा करते हैं उस समय मानसिक पूजा की भी आवश्यकता होती और यह काफी महत्वपूर्ण है। जब तक अंत:करण में भगवान की आशक्ति नहीं होगी तब तक कुछ प्राप्त होने वाला नहीं है। सीधे रूप अगर आप मानसिक पूजा को समझता चाहते हैं कि यह मन से भगवान को समर्पण है। मन को उनमें लीन करना होता है। मानसिक पूजा के दौरान मन की धारणा खंडित नहीं होनी चाहिए। संसारिक व लौकिक विचार मन में नहीं आने चाहिए, इससे पूजा खंडित हो जायेगी। मानसिक पूजा के दौरान मन और आंखे भगवान में लीन रहें। ऐसी एकाग्रता से की गई मानसिक पूजा ही फलीभूत होती है। यह साधना परम आनंद देने वाली होती है।

कैसे करें मानसिक पूजा

ओम लं पृथिव्यात्मक गन्धं परिकल्पयामि।
अर्थ- हे भगवन आपको पृथ्वी रूपी चंदन आपको अर्पण करता हूं। आप मेरा यह मानसिक चंदन स्वीकार करें।
ओम आकाशात्मकं पुष्पं परिकल्पयामि।
अर्थ- हे भगवन आपको आकाश रूप पुष्प आपको अर्पण करता हूं। आप मेरा आकाश रूप पुष्प स्वीकार करें।
ओम यं वाय्वात्मकं धूपं परिकल्पयामि।
अर्थ- हे भगवन मैं आपको वायुदेव रूप में आपको धूप अर्पण कर रहा हूं। आप मेरा वायुदेव रूप धूप स्वीकार करें।
ओम रं वह्न्यात्मकं दीपं दर्शयामि।
अर्थ- हे भगवन मैं आपको अग्निदेव के रूप में दीप प्रदान कर रहा हूं। आप मेरा अग्निदेव के रूप में दीप स्वीकार करें।
ओम वं अमृतात्मकं नैवेद्यं निवेदयामि।
अर्थ- हे भगवान मैं आपको अमृत रूपी नैवेद्य अर्पण कर रहा हूं। आप मेरा अमृत रूप नैवेद्य स्वीकार करें।
ओम सौं सर्वात्मकं सर्वोपचारं परिकल्पयामि।
अर्थ- हे भगवन मैं सर्वात्म रूप से आपको संसार की सभी पूजा सामग्री आपको समर्पित कर रहा हूं। आप स्वीकार करें। प्रसन्न हों।

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