घटना सितंबर 2013 की है, जब राहुल गांधी ने एक सार्वजनिक मंच पर तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार द्वारा पारित एक अध्यादेश (ordinance) को “बकवास” (nonsense) कहकर उसकी आलोचना की और उसकी प्रतियां प्रतीकात्मक रूप से फाड़ दीं। यह अध्यादेश आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए गए सांसदों और विधायकों को तत्काल अयोग्य ठहराने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को कमजोर करने के लिए लाया गया था।
घटना का विवरण:
1. अध्यादेश का उद्देश्य: यह अध्यादेश ऐसे नेताओं को चुनाव लड़ने की अनुमति देने का रास्ता बनाता था, जो किसी अदालत से दोषी करार दिए गए थे, लेकिन अपील लंबित होने तक उनकी सदस्यता बनी रहती।
2. राहुल गांधी का विरोध: राहुल गांधी ने अचानक एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पहुंचकर इस अध्यादेश को खुले तौर पर खारिज किया। उन्होंने कहा:
> “यह पूरी तरह से बकवास है, इसे फाड़कर फेंक देना चाहिए।”
3. डॉ. मनमोहन सिंह की स्थिति: उस समय डॉ. मनमोहन सिंह अमेरिका दौरे पर थे। राहुल गांधी के इस कृत्य को उनकी सरकार के निर्णयों और उनके नेतृत्व पर सार्वजनिक आलोचना के रूप में देखा गया। इसे उनकी छवि के लिए अपमानजनक माना गया, क्योंकि यह निर्णय प्रधानमंत्री और उनकी कैबिनेट द्वारा लिया गया था।
प्रतिक्रिया:
राजनीतिक और मीडिया विवाद: इस घटना ने कांग्रेस पार्टी और सरकार में असहमति को उजागर किया। इसे कांग्रेस के भीतर “पारिवारिक” राजनीति और मनमोहन सिंह के नेतृत्व पर राहुल गांधी के प्रभाव का प्रतीक माना गया।
विपक्ष की आलोचना: भाजपा और अन्य विपक्षी दलों ने इस घटना को डॉ. मनमोहन सिंह के प्रति अनादर के रूप में देखा और कहा कि यह प्रधानमंत्री की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला कदम था।
कांग्रेस का रुख: पार्टी ने इसे राहुल गांधी की नैतिक सोच और भ्रष्टाचार-विरोधी रुख के रूप में पेश करने की कोशिश की।
यह घटना भारतीय राजनीति में एक बड़ा विवाद बनी और आज भी इसे डॉ. मनमोहन सिंह के प्रति कांग्रेस नेतृत्व के व्यवहार के संदर्भ में चर्चा में लाया जाता है।