साधारण तौर पर हमे मंत्र के बारे में बताना हो तो यह कथन सही प्रतीत हो रहा है। कथन है- जो गुप्त रहस्य का ज्ञान कराये, उसे मंत्र कहते हैं। मंत्र के जप से जो शक्ति प्राप्त होती है, उसका अनुभव वही व्यक्ति कर सकता है, जिसे यह शक्ति प्राप्त हो गई है। मंत्र जप से मनुष्य की आत्म शक्ति बढ़ जाती है। मंत्र सिद्ध कर दुष्कर कार्य सिद्ध किए जा सकते हैं। आम तौर पर देखा जाता है कि आजकल मंत्र सिद्ध करने के लिए प्रयास तो बहुत से लोग करते है, लेकिन मंत्रों की सिद्घि के लिए कुछ नियम है, जिनका पालन नहीं करते हैं। जिससे साधक को उतने उत्तम फल की प्राप्ति नहीं होती है, जितना वे प्राप्त कर सकते है। आइये हम आपको मंत्र साधना के कुछ अत्यन्त जरूरी नियम बताते हैं, लेकिन उससे पहले हम मंत्र के प्रभाव पर चर्चा कर लेते है।
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यदि कोई व्यक्ति मंत्र सिद्ध कर लेता है तो उसके लिए कोई भी कार्य उसके लिए दुष्कर व असंभव नहीं है। उसका इस लोक भी और दूसरे लोक भी कल्याण होता है। वास्तव में मंत्र शक्ति की अनुभूति वह व्यक्ति ही कर पाता है, जो साधाना के पथ पर गया हो। मंत्र का मूल भाव होता है- मनन। मनन के लिए ही मंत्रों के जप के सही तरीके धर्म ग्रंथों में उजागर है। धर्म शास्त्रों के अनुसार , मंत्रों का जप पूरी श्रद्धा और आस्था से करना चाहिए। साथ ही एकाग्रता और मन का संयम मंत्रों के जप के लिए बहुत जरुरी है। मान्यता है कि इनके बिना मंत्रों की शक्ति कम हो जाती है और कामना पूर्ति या लक्ष्य प्राप्ति में उनका प्रभाव नहीं होता है।
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‘मंत्र’ का अर्थ शास्त्रों में ‘मन: तारयति इति मंत्र:’ के रूप में बताया गया है, अर्थात मन को तारने वाली ध्वनि ही मंत्र है। वेदों में शब्दों के संयोजन से ऐसी ध्वनि उत्पन्न की गई है, जिससे मानव मात्र का मानसिक कल्याण हो। ‘बीज मंत्र’ किसी भी मंत्र का वह लघु रूप है, जो मंत्र के साथ उपयोग करने पर उत्प्रेरक का कार्य करता है। यहां हम यह भी निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि बीज मंत्र मंत्रों के प्राण हैं या उनकी चाबी हैं। जैसे एक मंत्र-‘श्रीं’ मंत्र की ओर ध्यान दें तो इस बीज मंत्र में ‘श’ लक्ष्मी का प्रतीक है, ‘र’ धन सम्पदा का, ‘ई’ प्रतीक शक्ति का और सभी मंत्रों में प्रयुक्त ‘बिन्दु’ दुख हरण का प्रतीक है। इस तरह से हम जान पाते हैं कि एक अक्षर में ही मंत्र छुपा होता है। इसी तरह ऐं, ह्रीं, क्लीं, रं, वं आदि सभी बीज मंत्र अत्यंत कल्याणकारी हैं। हम यह कह सकते हैं कि बीज मंत्र वे गूढ़ मंत्र हैं, जो किसी भी देवता को प्रसन्न करने में कुंजी का कार्य करते हैं। मंत्र शब्द मन +त्र के संयोग से बना है । मन का अर्थ है सोच ,विचार ,मनन ,या चिंतन करना। और “त्र ” का अर्थ है बचाने वाला , सब प्रकार के अनर्थ, भय से । लिंग भेद से मंत्रो का विभाजन पुरुष ,स्त्री तथा नपुंसक के रूप में है । पुरुष मन्त्रों के अंत में “हूं फट ” स्त्री मंत्रो के अंत में “स्वाहा ” तथा नपुंसक मन्त्रों के अंत में “नमः ” लगता है । मंत्र साधना का योग से घनिष्ठ सम्बन्ध है। मंत्रों की शक्ति तथा इनका महत्व ज्योतिष में वर्णित सभी रत्नों एवम उपायों से अधिक है।
भक्त वत्सल भगवान राम ने भी शबरी को नवधाभक्ति का उपदेश देते समय कहा था-
मंत्र जाप मम दृढ़ विस्वासा।
वास्तव में मंत्र शब्दों का संचय है, जिससे इष्ट को प्राप्त करते हैं तथा अनिष्ट बाधाओं को नष्ट करते हैं । मंत्र इस शब्द में ‘मन्’ का तात्पर्य मन और मनन से है और ‘त्र’ का तात्पर्य शक्ति और रक्षा से है ।
अगले स्तर पर मंत्र अर्थात जिसके मनन से व्यक्ति को पूरे ब्रह्मांड से उसकी एकरूपता का ज्ञान प्राप्त होता है । इस स्तर पर मनन भी रुक जाता है तथा मन का लय हो जाता है । फिर मंत्र भी शांत हो जाता है । इस स्थिति में व्यक्ति जन्म-मृत्यु के फेरे से छूट जाता है ।
मंत्र जप के लाभ हैं-
अलौकिक शक्ति पाना, पाप नष्ट होना, आध्यात्मिक प्रगति, शत्रु का विनाश और वाणी की शुद्धि।
मंत्र जप में आध्यात्मिक प्रगति सबसे महत्वपूर्ण पहलू है, क्योंकि इसका सीधा सम्बन्ध ईश्वरीय सत्ता से है। आध्यात्मिक चेतना जागृत होती है तो मनुष्य के लिए संसार का विषय ज्ञान स्वभाविक रूप से हो जाता है। वह आत्मतत्व को जानने के लिए आगे बढ़ने लगता है। वैसे आपको बता दें, मंत्र जप और ईश्वर का नाम लेने में भेद है । मंत्र जप करने के लिए बहुत से नियमों का पालन करना पड़ता है, लेकिन नामजप करने के लिए इसकी आवश्यकता नहीं होती है, जैसे-
मंत्र जप सात्त्विक वातावरण में ही करना आवश्यक है, लेकिन भगवान का नाम जप कही भी किया जा सकता है। मंत्रजप से जो आध्यात्मिक ऊर्जा उत्पन्न होती है, उसका विनियोग अच्छे या बुरे कार्य के लिए किया जा सकता है ।
मंत्र जप के जरूरी नियम और तरीके-
गुरु मंत्र हो या किसी भी देव का मंत्र हो या उससे मनचाहे कार्य सिद्ध करने के लिए मंत्र हो, इसके लिए नियम पालन बहुत जरूरी माने गए हैं-
– मंत्र जप के लिए सही समय भी बहुत जरूरी है। इसके लिए ब्रह्ममूर्हुत यानी करीब 4 से 5 बजे या सूर्योदय से पहले का समय श्रेष्ठ माना जाता है। प्रदोष काल यानी दिन का ढलना और रात्रि के आगमन का समय भी मंत्र जप के लिए उचित माना गया है।
– अगर यह वक्त भी साध न पाएं तो सोने से पहले का समय भी चुना जा सकता है।
– मंत्र जप प्रति दिन नियत समय पर ही करें।
-मंत्रों का पूरा लाभ पाने के लिए जप के दौरान सही मुद्रा या आसन में बैठना भी बहुत जरूरी है। इसके लिए पद्मासन मंत्र जप के लिए श्रेष्ठ होता है। इसके बाद वीरासन और सिद्धासन या वज्रासन को प्रभावी माना जाता है।
– एक बार मंत्र जप शुरु करने के बाद बार-बार स्थान न बदलें। एक स्थान नियत कर लें।
– मंत्र जप में तुलसी, रुद्राक्ष, चंदन या स्फटिक की 108 दानों की माला का उपयोग करें। यह प्रभावकारी मानी गई है।
– कुछ विशेष कामनों की पूर्ति के लिए विशेष मालाओं से जप करने का भी विधान है। जैसे धन प्राप्ति की इच्छा से मंत्र जप करने के लिए मूंगे की माला, पुत्र पाने की कामना से जप करने पर पुत्रजीव के मनकों की माला और किसी भी तरह की कामना पूर्ति के लिए जप करने पर स्फटिक की माला का उपयोग करें।
– किसी विशेष जप के संकल्प लेने के बाद निरंतर उसी मंत्र का जप करना चाहिए।
– मंत्र जप के लिए कच्ची जमीन, लकड़ी की चौकी, सूती या चटाई अथवा चटाई के आसन पर बैठना श्रेष्ठ है। सिंथेटिक आसन पर बैठकर मंत्र जप से बचें।
– मंत्र जप दिन में करें तो अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा में रखें और अगर रात्रि में कर रहे हैं तो मुंह उत्तर दिशा में रखें।
– मंत्र जप के लिए एकांत और शांत स्थान चुनें। जैसे- कोई मंदिर या घर का देवालय।
– मंत्रों का उच्चारण करते समय यथासंभव माला दूसरों को न दिखाएं। अपने सिर को भी कपड़े से ढंकना चाहिए।
– माला का घुमाने के लिए अंगूठे और बीच की उंगली यानी मध्यमा का उपयोग करें।
– माला घुमाते समय माला के सुमेरू यानी सिर को पार नहीं करना चाहिए, जबकि माला पूरी होने पर फिर से सिर से आरंभ करना चाहिए।
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