मत्स्येन्द्रासन की पहले विधि जानते है। अपने दाये पैर का पंजा बाये पैर के मूल स्थान पर इस प्रकार रख्ों कि उसकी एड़ी तोंद से लगी रहे, लेकिन पैर बाहर खसकने न पाए। बाद में बायें पैर का पंजा उठाकर दाहिने पैर के घुटने के बाहरी भूमि पर रख्ों। फिर दाहिना हाथ को बाये पैर के घुटने से बाहर से डालकर बायें पैर का अंगूठा पकड़ें। फिर बाये हाथ को पीठ की ओर घुमाकर उससे दाहिने पैर की ऐड़ी को पकड़े और अपना मुख और गर्दन पीछे की ओर फेरें और दृष्टि को नसाग्र में रख्ों। इस आसन का नाम मत्सयेन्द्रासन है।
नोट- हाथ-पैर के अदल-बदल से यह आसन दोनों ओर करना चाहिए। इस आसन को दोनों तरफ से किया जाना चाहिए। इस प्रक्रिया को दोहराया भी जाए, ताकि इसका पूर्ण लाभ आपको प्राप्त हो सके। इस आसन को नियमित रूप से करने से स्वास्थ्य उत्तम रहता है, गर्भवती महिलाएं इस आसन को न करें। गर्भवती महिलाओं को इस आसन का कुप्रभाव पड़ सकता है। कुण्डलिनी शक्ति भी जागृत होती है।
जानिए, मत्स्येन्द्रासन के लाभ
इस एक ही आसन के करने से शरीर के कई अंगों पर एक साथ ही काफी प्रभाव पड़ता है। पीठ, पैर, बाहु,कमर, जांघ, छाती के सारे स्नायुओं यानी अंगों का एक साथ ही काफी खिंचाव होने लगता है, जोकि शरीर में विकारों को नष्ट करता है और रक्त का प्रवाह बढ़ाता है।
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इससे पेट का दर्द, आंतों में होने वाले सभी रोगों का पूर्ण निराकरण होता है। स्वास्थ्य की वृद्धि करने में इस आसन का विश्ोष महत्व होता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से निरोगी रहने के लिए इस आसन को करके आप निश्चित तौर पर लाभ प्राप्त कर सकते है।
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