meenaakshee devee siddhapeeth ( maduree ): dakshinamathura bhee kaha jaata hai, krpa mile shiv- paarvatee keeमीनाक्षी देवीपीठ ( मदुरई ): भारत के दक्षिणी प्रदेश तमिलनाडु में वेगा नदी के दाहिने तट पर बसा शहर मदुरई ( मदुरै ) एक पवित्र नगर है, जो पांड्य राजाओं की राजधानी रह चुका है। ढाई हजार वर्ष से भी अधिक प्राचीन इस नगर का नाम संस्कृत भाषा के ग्रंथों में ‘ मधुरा ‘ लिखा हुआ मिलता है। इसे ‘ दक्षिणमथुरा ‘ भी कहा जाता है। शताब्दियों से तमिल साहित्य और संस्कृति का केंद्र रहे मदुरई का दक्षिण में वही स्थान है, जो उत्तर भारत में विद्या के क्षेत्र में काशी या बनारस का था। इसलिए मदुरई को दक्षिण की काशी भी कहते हैं।
मीनाक्षी देवीपीठ ( मदुरई ) की धार्मिक कथा
मलयध्वज के कोई संतान न थी। उन्होंने पत्नी कंचनमाला के साथ घोर तप किया, तब शिव ने उन्हें कन्या संतान होने का वरदान दिया। पार्वती अपने अंश से कन्या रूप में पैदा हुई। इनके नेत्र अत्यधिक सुंदर होने के कारण इनका नामकरण मीनाक्षी रखा गया। सुंदरेश्वर ने मीनाक्षी से विवाह की इच्छा व्यक्त की। रानी ने बड़ी धूमधाम से समारोहपूर्वक उसका विवाह किया। परंपराओं के अनुसार मदुरई में पहले कदंबवन था। वहां सुंदरेश्वर का स्वयंभू लिंग था। स्वयं देवता उसकी पूजा करते थे। राजा मलयध्वज ने जब यह सुना तो वहां मंदिर बनाने का निश्चय किया। स्वप्न में स्वयं शंकर ने इस संकल्प की परीक्षा की और एक दिन सर्प रूप में पधार कर नगर की सीमा का निर्धारण भी कर गए। इस प्रकार सुंदर भव्य मीनाक्षी मंदिर राजा मयलध्वज ने निर्मित कराया। इस नगर का मुख्य आकर्षण मीनाक्षी – सुंदरेश्वर मंदिर है। यह मंदिर द्रविड़ वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। आयताकार क्षेत्र में बना यह मंदिर, जो मदुरई के पुराने नगर में स्थित है, यहां का प्रसिद्ध तीर्थ है। मंदिर में कुल 27 गोपुरम् हैं, जिन पर देवी – देवताओं और विभिन्न जीव – जंतुओं की बेशुमार बहुरंगी आकृतियां बनी हैं। इनमें दक्षिण दिशा का गोपुरम सबसे विशाल है, जिसकी ऊंचाई 160 फुट है। इस गोपुरम् से मदुरई नगर का दृश्य बड़ा मनोरम दिखाई देता है।
मीनाक्षी देवीपीठ ( मदुरई ) के तीन परिक्रमास्थल
मीनाक्षी मंदिर में प्रवेशद्वार के बाद तीन परिक्रमास्थल हैं। तीसरे परिक्रमापथ में मूर्ति के दर्शनों के लिए गर्भगृह तक जाने का मार्ग है। मीनाक्षी देवी की श्याम वर्ण की मूर्ति अत्यंत सजीव है। बहुमूल्य आभूषणों से सजी इस मूर्ति को देखकर श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। गर्भगृह में देवी मीनाक्षी तथा महादेव सुंदरेश्वर की आकर्षक प्रतिमा है।
यह मंदिर अपने हजार स्तंभों वाले अद्भुत कलाकारी के लिए प्रसिद्ध है। इन सुंदर स्तंभों को बड़ी उत्कृष्ट कारीगरी से बनाया गया है, जिनमें अधिकांश बड़ी आकर्षक बनाई गई हैं। उत्तर दिशा के गोपुरम के नीचे पत्थर के पतले 22 खंभे हैं, जो ग्रेनाइट पत्थर के एक ही खंड से काटकर बनाए गए हैं। इनको हाथ से थपथपाने या छोटे कंकड़ से बजाने पर संगीत की मधुर ध्वनियां निकलती हैं। जानकार लोगों का कहना है, ये ध्वनियां शास्त्रीय संगीत के रागों पर आधारित हैं। इन स्तंभों को संगीत स्तंभ कहते हैं। निर्माण की सुंदरता की दृष्टि से मीनाक्षी मंदिर दक्षिण ही नहीं, पूरे देश के मंदिरों में सर्वोत्कृष्ट है। यह कला का विशाल भंडार है। इसमें कुल मिलाकर 3 करोड़ 30 लाख आकृतियां बताई जाती हैं।
स्वर्ण कमल सरोवर : मंदिर के अंदर एक सरोवर है, जिसे स्वर्ण कमल सरोवर कहा जाता है। इस सरोवर में गोपुरम का प्रतिबिंब दिखाई पड़ता है। श्रद्धालु इसमें स्नान करते हैं। सरोवर में चारों ओर बरामदे बने हैं, जिनकी दीवारें देवी – देवताओं के कथा – चित्रों से अलंकृत हैं।
अद्भुत सिंह मूर्ति : यहां शिल्प की दृष्टि से अद्भुत सिंहमूर्ति है। सिंह के मुंह में गोला है, जबड़े में अंगुली डालकर हिलाने से वह गोला घूमता है।
मुख्य उत्सव : मदुरई को उत्सवों का नगर कहा जाता है। यहां का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पर्व है – देवी मीनाक्षी और भगवान सुंदरेश्वर ( शिव ) का पावन विवाह , जो कि मार्च – अप्रैल में पड़ने वाले तमिल महीने चितैरे में आता है । इसीलिए इसे चितैरे पर्व कहा जाता है। दस दिन तक बड़ी धूमधाम से मनाए जाने वाले इस उत्सव में विशाल भीड़ एकत्रित हो जाती है। इस पर्व पर बड़ी सुंदरता से सजे हुए रथ में देवी मीनाक्षी और भगवान सुंदरेश्वर की जोड़ी की मूर्तियों को बैठाकर सारे नगर में झांकी निकाली जाती है। इस अवसर पर बजने वाला संगीत वातावरण में धार्मिक भावना और हर्षोल्लास का प्रवाह कर देता है।
श्रद्धालुओं को आकर्षित करने वाला एक अन्य पर्व है – थेप्पन ( तैरना ) , जोकि जनवरी – फरवरी माह में आता है। नगर के पूर्व भाग में वेगा नदी के किनारे एक सरोवर के बीच में एक छोटा – सा द्वीप है। थेप्पन उत्सव इसी सरोवर में होता है। प्रात : काल मीनाक्षी देवी और उनके जुलूस के पति भगवान सुंदरेश्वर की उत्सव मूर्तियों को साथ इस सरोवर तक ले जाते हैं, जहां फूलों से सजी नाव में बैठाकर सरोवर में प्रवाहित कर दिया जाता है। इसके अलावा मदुरई में दस और बड़े वार्षिक उत्सव मनाए जाते हैं ।
यात्रा मार्ग
दक्षिण रेलवे का यह एक जंक्शन है और चेन्नई व तिरुनेलवेली के साथ जुड़ा हुआ है।