मूल्यशास्त्र का महावाक्य है सत्यं शिवं सुन्दरं।मानव जीवन के यही तीन मूल्य हैं, जो सत्य है वही शिव है और जो शिव है, वहीं सुंदर है। शास्त्रों मे ब्रह्मा आदि , मुक्ति प्रदान करने वाले न हो कर केवल महादेव को ही मुक्ति प्रदान करने वाला कहा गया हैं । ब्रह्मा आदि त्रिवर्ग ( धर्म , अर्थ , काम ) देने वाले हैं, जब कि महादेव तो निर्विकार , परब्रह्म , तुरीय , प्रकृति , त्रिगुणों से परे हैं । ज्ञानरुप , ज्ञानगम्य , अव्यय , साक्षी , त्रिवर्ग देने वाले के साथ ही पांचवी मुक्ति कैवल्य मुक्ति भी प्रदान करने वाले महादेव ही हैं।
सांसारिक दुखो का नाश करने वाली , आनन्द देने वाली मुक्ति चार प्रकार की कही गयी है (1) सारूप्य (2) सालोक्य (3) सान्निध्य (4) सायुज्य । यह सारा जगत जिसके द्वारा पालित होता है और अन्त मे जिसमे लीन हो जाता है वही ‘ शिव का स्वरूप ‘ कहा जाता है – वही सकल और निष्कल दो रूपो मे वेदों मे वर्णित है । विष्णु , ब्रह्मा , सनत्कुमार , शुकदेव एवं पहले के सभी मुनीश्वर , सभी देवता उस रूप को न जान पाये ।
सत्यं ज्ञानमनन्तं च सच्चिदानन्दसंज्ञितम् । निर्गुणो निरुपाधिश्चाव्यय: शुद्धो निरंजन: ।।
न रक्तो नैव पीतश्च न श्वेतो नील एव च । न ह्रस्वो न दीर्धश्च न स्थूल: सूक्ष्म एव च् ।।
यतो वाचो निवर्तन्ते अप्राप्य मनसा सह । तदेव परमं प्रोक्तं ब्रह्मैव शिवसंज्ञकम् ।।
आकाशं व्यापकं यद्वत्तथैव व्यापकं त्विदम् । मायातीतं परात्मानं द्वन्द्वातीतं विमत्सरम् ।।
तत्प्राप्तिश्च भवेदत्र शिवज्ञानोदयाद् ध्रुवम् । भजनाद्वा शिवस्यैव सूक्ष्मत्मया सतां द्विजा: ।।
– वह सत्य , ज्ञानरूप , अनन्त , सत्-चित्-आनन्दस्वरूप , निर्गुण , उपाधिरहित , अव्यय , शुद्ध एवं निरंजन है। वह न रक्त है , न पीत है , और न ही श्वेत और न ही नील है , न छोटा न बड़ा – न स्थूल और न ही सूक्ष्म है। मन सहित वाणी आदि इन्द्रियां, जिसे बिना प्राप्त किये ही लौट आती हैं वही परब्रह्म ‘ शिव ‘ नाम से कहा गया है । जिस प्रकार आकाश व्यापक है उसी प्रकार यह ( शिवतत्त्व ) भी व्यापक है । यह माया से परे परात्मा द्वन्द्वरहित तथा मत्सरशून्य है – जिसकी प्राप्ति शिव विषयक ज्ञान के उदय से , शिव के भजन से अथवा सज्जनों के सूक्ष्म विचार से होती है ।
मुक्ति ( मोक्ष ) प्रदायक महादेव – भजन के अधीन हैं , इस लोक मे ज्ञान का उदय तो अत्यन्त दुष्कर है, लेकिन भजन सरल कहा गया है , इसलिये मुक्ति के लिये भजन श्रेयस्कर है । प्रेम की उत्पत्ति के लक्षण वाली भक्ति , कृपा प्रसाद से अवश्य ही सुलभ होती है ।
शिव के प्रिय विष्णु और विष्णु के शिव
यही महादेव काशी क्षेत्र में मृत्यु होने पर सहजता से मोक्ष प्रदान करते हैं। चूंकि महादेव को काशी और भगवान विष्णु अत्यन्त प्रिय हैं, इसलिए वह एक ओर काशी में मरने वाले को मुक्ति प्रदान करते हैं, वह भी मरते हुए जीव को तारक मंत्र सुनाकर। तारक मंत्र यानी राम नाम। राम यानी विष्णु के स्वरूप, जो कि शंकर के परम भक्त है और शिव उनके। वास्तव में भगवान शिव व विष्णु में भेद नहीं है, जो भेद दृष्टि से देखते हैं, वे नर्कगामी होते हैं। तारक मंत्र क्या है आइये, जानते हैं विस्तार से आगे लेख में-
भगवान शंकर का देवों के देव हैं, तभी महादेव कहलाते हैं, काशी नगरी उन्हें विशेषकर प्रिय है। शंकर का अर्थ होता है- सबका कल्याण करने वाला। जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि भगवान शंकर का काम केवल दूसरों का कल्याण करना ही है। भगवान शंकर ने जगत कल्याण के लिए काशी में मुक्ति क्षेत्र खोल रखा है।
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शास्त्रों में कहा गया है कि काशीमरणान्मुक्ति:। काशी को वाराणसी भी अब कहते हैं। वरुणा और असी दोनों नदियां गंगाजी में आकर मिलती हैं उनके बीच का क्षेत्र वाराणसी कहलाता है। इस क्षेत्र में मरने वाले की मुक्ति होती है। यहां शंका होती है कि काशी में मरने वाले के पापों का क्या होता है? इसका सामाधान है कि काशी में मरने वाले पापी को पहले भैरवी यातना भुगतनी पड़ती है, फिर उसकी मुक्ति हो जाती है। शास्त्रों में उल्लेखित है कि भैरवी यातना बहुत ही कठोर है, जो थोड़े समय में पापों का नाश कर देती है।
काशी के केदारखंड में मरने वाले को तो भैरवी यातना भी नहीं भोगनी पड़ती है। काशी में मरने वाले के दायें कान में भगवान शंकर तारक मंत्र राम नाम सुनाते हैं, जिसको सुनने से उसकी मुक्ति हो जाती है। अध्यात्म रामायण में कहा गया है कि भगवान शंकर कहते है कि
अहं भवन्नाम गृणन्तकृतार्थों
वसामि काश्यामनिशं भवान्या।
मुमूष्र्ज्ञमाणस्य विमुक्तयेअहं
दिशामि मन्त्रं तव राम नाम।।
भावार्थ- हे प्रभु, आपके नामोच्चारण से कृतार्थ होकर मैं दिन रात पार्वती के साथ काशी में रहता हूं और वहां मरणासन्न मनुष्यों को उनके मोक्ष के लिए आपके तारक मंत्र राम नाम का उपदेश करता हूं। आनंद रामायण में ही आगे कहा गया है कि
रामेण सदृशो देवो न भूतो न भविष्यति…
अतएव राम नाम काश्यां विश्वेश्वर: सदा। स्वयं जप्त्वोपदिशति जन्तूनां मुक्तिहेतवे।।
संसारार्णवसंमग्नं नरं यस्तारयेन्मनु:। स एव तारकस्त्वत्र राममन्त्र: प्रकथ्यते।।
………………अन्तकाले नृणां रामस्मरणं च मुहुर्मुर्हु:।।
इति कुर्वन्त्युपदेशं मानवा मुक्तिहेतवे। अन्यच्चापि शववाहै: सदा लोकैर्मुहुर्मुहु:।।
रामनामैव मुक्त्यर्थं शवस्य पथि कीत्र्यते। रामनाम्न: परो मन्त्रो न भूतो न भविष्यति।।
भावार्थ- श्री राम चंद्र के समान न कोई देवता हुआ है न होगा।…….इसलिए काशी में विश्वनाथ भगवान शंकर निरन्तर राम नाम का स्वयं जप करते हैं और प्राणियों की मुक्ति के लिए उन्हें राममन्त्र का उपदेश दिया करते हैं। संसाररूपी समुद्र में डूबे हुए मनुष्य को जो मंत्र तार देते हैं, वही तारक मंत्रराम मंत्र कहलाता है। ……. मनुष्यों की मुक्ति के लिए लोगों द्बारा अंतिम समय में उनको बार-बार यही कहा जाता है कि राम का स्मरण करो, राम का स्मरण करो। इसी प्रकार शव वहन करने वाले लोगों के द्बारा मृत प्राणी की मुक्ति के लिए शवयात्रा में बार-बार राम नाम का ही उच्चारण किया जाता है। राम नाम से श्रेष्ठ कोई मंत्र न आजतक हुआ है और न होगा ही।
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