काठमांडू से करीब 200 किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ियों के बीच पश्चिम में स्थित पोखरा शहर है प्रसिद्ध तीर्थ मुक्तिनाथ। यहां पहुंचने के लिए सड़क मार्ग के बाद पहाड़ी रास्ते से जंगल के बीच में होकर जाना पड़ता है। मुक्तिनाथ को शालग्राम क्षेत्र भी कहा जाता है। सरिता गंडकी के किनारे विभिन्न आकार – प्रकार के शालिग्राम उपलब्ध होते हैं। इसीलिए गंडकी नदी को नारायणी या शालिग्रामी भी कहते हैं। मुक्तिनाथ शिवमंदिर और देवीशक्ति मंदिर के लिए विख्यात है।
इसे शक्तिपीठ की मान्यता मिली है। यहां सती का दाहिना कपोल भाग गिरा था। इस छोटे से प्राचीन नगर में कई मंदिर और धर्मशालाएं हैं। मुक्तिनाथ वैष्णव संप्रदाय के प्रमुख मंदिरों में से एक है। यह तीर्थस्थान शालिग्राम भगवान के लिए प्रसिद्ध है। शालिग्राम दरअसल एक पवित्र पत्थर होता है जिसको हिंदू धर्म में पूजनीय माना जाता है। यह मुख्य रूप से नेपाल की ओर प्रवाहित होने वाली काली गण्डकी नदी में पाया जाता है। जिस क्षेत्र में मुक्तिनाथ स्थित हैं उसको मुक्तिक्षेत्र’ के नाम से जाना जाता हैं। हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह वह क्षेत्र है, जहां लोगों को मुक्ति या मोक्ष प्राप्त होता है। यह हिंदू धर्म के दूरस्थ तीर्थस्थानों में से एक है।
कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शालिग्राम शिला में विष्णु का निवास होता है। इस संबंध में अनेक पौराणिक कथाएं भी प्रचलित हैं।
इन्हीं कथाओं में से एक के अनुसार जब भगवान शिव जालंधर नामक असुर से युद्ध नहीं जीत पा रहे थे तो भगवान विष्णु ने उनकी मदद की थी। कथाओं में कहा गया है कि जब तक असुर जालंधर की पत्नी वृंदा अपने सतीत्व को बचाए रखती तब तक जालंधर को कोई पराजीत नहीं कर सकता था।
ऐसे में भगवान विष्णु ने जालंधर का रूप धारण करके वृंदा के सतीत्व को नष्ट करने में सफल हो गए। जब वृंदा को इस बात का अहसास हुआ तबतक काफी देर हो चुकी थी। इससे दुखी वृंदा ने भगवान विष्णु को कीड़े-मकोड़े बनकर जीवन व्यतीत करने का शाप दे डाला। फलस्वरूप कालांतर में शालिग्राम पत्थर का निर्माण हुआ, जो हिंदू धर्म में आराध्य हैं। पुरानी दंतकथाओं के अनुसार मुक्तिक्षेत्र वह स्थान है जहां पर मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहीं पर भगवान विष्णु शालिग्राम पत्थर में निवास करते हैं।