प्राचीनकाल से ज्योतिष शास्त्री मानते रहे हैं कि मूंगा एक तरह का वनस्पति पदार्थ है। देखने में यह यह लता की शाखा जैसा प्रतीत होता है। इसलिए इसे लता मणि के नाम से भी जाना जाता है। चूंकि मंगल देव परम शक्तिशाली देव हैं, मूंगा मंगल का रत्न होता है, यानी इसका स्वामी मंगल ग्रह हैं। यह समूद्र में पाया जाता है।
मूंगे के विभिन्न भाषाओं में अगल-अलग नाम हैं। संस्कृत में इसे प्रवाल, विद्रुम, लतामणि, कंगारक मणि, अम्मोधि पल्लव, भौम रत्नक और रक्ताव इत्यादि नाम हैं। हिंदी में मूंगा के नाम से जानते हैं।
उर्दू फारसी में मरजां और अंग्रेजी में इसे कोरल कहते हैं। यह चार रंगों का प्रमुख रूप से होता है। लाल, सिंदूरी हिंगुले-सा और गेरुवा।
जानिये, मूंगा का इतिहास
आचार्य वाराह मिहिर के वृहत्संहिता के अनुसार मूंगे का जन्म असुरराज बलि की अंतड़ियों से हुआ है। अच्छे किस्म के मूंगे भूमध्य सागर के तटवर्ती क्षेत्र अल्जीरिया, ईरान की खाड़ी और हिंद महासागर में मिलते हैं।
जानिये, मूंगे के गुण क्या हैं?
1- मूंगा चमकदार होता है।
2- मूंगा कोणदार होता है।
3- मूंगा औसत से अधिक वजन का होता है।
4- चिकना होने के कारण यह हाथ में फिसलने लगता है।
आइये जानते हैं, कैसे की जाए मूंगे की शुद्धता की जांच
1- दूध में मूंगा डालने पर उसमें लाल रंग की झांई सी दिखाई पड़ती है।
2- खून में मूंगा रखने पर रत्न के चारों तरफ गाढ़ा खून जम जाता है।
3- अगर धूप में कागज या रूई पर मूंगे को रख दिया जाए तो उसमें आग लग जाती है।
ऐसा मूंगा कदापि न लें, सावधानी बरतनी जरूरी है
दोषपूर्ण मूंगा जातक को हानि पहुंचाता है, इसलिए दोषपूर्ण मूंगा कभी धारण नहीं करना चाहिए। इसके धारण करने पर जातक पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
1- जातक को कटा-छंटा या टूटा मूंगा नहीं पहनना चाहिए, इससे संतान नष्ट होती है।
2- दो रंग का मूंगा सुख- सम्पत्ति नष्ट करता है।
3- जिस मूंगे में गड्ढा हो, वह पत्नी के लिए प्राणघातक सिद्ध होता है। यदि इसे स्त्री पहन लें तो पति के लिए प्राणघातक सिद्ध होता है।
4- जिसमें काले रंग के धब्बे हो, ऐसा मूंगा धारण करने से स्वास्थ्य नष्ट हो जाता है।
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5- जिस मूंगे में सफेद रंग के छीटें हो, यह धन का नाश करता है।
6- जो मूंगा लाख के रंग का हो, इसको धारण करने से शस्त्र भय व चोरी का भय रहता है।
7- जो मूंगा छेदयुक्त हो, वह शरीरको नुकसान पहुंचाता है, ऐसा मूंगा कभी नहीं धारण करना चाहिए। इससे जातक के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
जानिये, क्या हैं मूंगे के उपरत्न
मूंगे के उपरत्न होता है मूंगे की मणि यानी विद्रुम मणि या संग मूंगी धारण करना चाहिए। यह चिकना, छेदयुक्त और वजन में हल्का होता है। यह लाल, गुलाबी या मूंगिया रंग में मिलता है।
जानिये, उपरत्नों के गुण
मूंगे के उपरत्नों के गुण जानने भी बेहद जरूरी होते हैं। इससे उनकी पहचान में सुविधा भी होती है और सहजता से भेद किए जा सकते हैं।
1- यह आम तौर पर चमकदार होता है।
2- यह वजन में हल्का होता है।
3- यह हल्का होता है।
4- इसमें कई रंग के छींटे पाए जाते हैं।
5- गर्भिणी के पेट पर इसके भस्म का लेप करने से गर्भ नहीं गिरता है।
आइये जानते हैं, मूंगे का धारक कौन हो सकता है
अगर जन्मकुंडली में मंगल क्रूर दृष्टिगोचर हो तो मूंगा धारण करना बेहद लाभकारी माना जाता है। अच्छे घाट का मूंगा पहननेसे मन में प्रसन्नता रहती है। हृदय रोग के लिए मूंगा बेहद लाभकारी माना जाता है।
बालकों को गले या बाजू में पहनाने से उन्हें पेट दर्द व सूखा रोग नहीं होता है।
जब सूर्य मेष राशि में हो, यानी 15 अप्रैल से 14 मई तक या फिर जिसका जन्म 15 नवम्बर से 14 दिसम्बर के मध्य हुआ हो तो मंूगा आवश्य पहनना चाहिए।
1- अगर जन्म कुंडली में मंगल राहु या शनि के साथ कहीं भी स्थित हो तो मूंगा पहनता बेहद लाभदायक रहता है।
2- अगर मंगल प्रथम भाव में स्थित हो तो मूंगा धारण करना लाभकारी होता है।
3- यदि मंगल तीसरे स्थान पर हो तो भाई-बहनों में मतभ्ोंद होता है। इसे दूर करने के लिए मूंगा पहनना चाहिए।
4- अगर जन्मकुंडली में मंगल चतुर्थ भाव में स्थित है तो जीवन साथी के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ऐसे में मूंगा पहनना श्रेयस्कर होता है।
5- जन्म कुंडली में सप्तम या द्बादश भाव में मंगल शुभ नहीं होता है। इसेसे जीवन साथी को कष्ट होता है। इसलिए ऐसे व्यक्तियों को भी मूंगा पहनना चाहिए।
6- अगर जन्म कुंडली में धनेश मंगल नवम भाव में,चतुर्थेश मंगल एकादश भाव में या पंचम भाव का स्वामी द्बादश भाव में स्थित हो तो मूंगा पहनना अत्यन्त लाभकारी सिद्ध होता है।
7- अगर कुंडली में नवमेश मंगल चतुर्थ स्थान में और दशमेश मंगल पंचम या एकादश भाव में हो तो ऐसे जातक को मूंगा पहनना लाभकारी होता है।
8- यदि जन्म कुंडली में मंगल कहीं भी स्थित हो और उसकी दृष्टि सप्तम, दशम य एकादश भाव पर हो तो मूंगा धारण करना अत्यन्त लाभकारी हो सकता है।
9- यदि मेष या वृश्चिक लग्न में मंगल छठें भाव में हो, धनेश मंगल सप्तम भाव मे, चतुर्थ्ोश मंगल नवम भाव में, पंचमेश मंगल दशम भाव में,सप्तमेश मंगल द्बादश भाव में, नवमेश मंगल धन स्थान में, दशमेश मंगल तीसरे भाव में या एकादशेश मंगल चौथे भाव में हो तो मूंगा धारण करना बेहद लाभकारी होता है।
1०- अगर मंगल जन्म कुंडली के छठे, आठवें या बारहें भाव में स्थित हो तो मूंगा धारण करना अत्यन्त लाभकारी होता है।
11- यदि जन्म कुंडली में मंगल की दृष्टि सूर्य पर पड़ रही हो तो मूंगा पहनना अत्यन्त लाभकारी होता है।
12- यदि मंगल चंद्रमा के साथ हो तो मूंगा पहनने से आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।
13- अगर जन्म कुंडली में मंगल षष्ठेश या अष्टमेश के साथ हो या इन ग्रहों की दृष्टि मंगल पर पड़ रही हो तो मूंगा धारण करने से लाभ होता है।
14- यदि कुंडली में मंगल वक्री, अस्त या प्रथम स्थान में हो तो मूंगा पहनकर लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
15- अगर कुंडली में मंगल शुभ भावों का स्वामी होकर शत्रु ग्रहों के साथ हो तो उसे शक्तिशाली बनाने के लिए मूंगा धारण करना अति श्रेयस्कर होता है।
जानिए, राशि के मुताबिक मूंगे का व्यवहार
बारह राशियां होती है। इनका व्यवहार भी मूंगा धारक के लिए अलग-अलग रहता है। आइये जानते हैं कि कैसा होता इन राशियों के लिए मूंगे का व्यवहार-
1- मेष लग्न में मंगल लग्न का स्वामी होता है। इसलिए मेष लग्न के जातक को आजीवन मूंगा धारण करना चाहिए। इससे आयु वृद्धि, स्वास्थ्य लाभ और मान-सम्मान बढ़ता है। मूंगे का धारक हर तरह से सुखी, सम्पन्न और समृद्ध होता है।
2- वृष लग्न में मंगल सप्तम व द्बादश भाव का स्वामी होता है। इसलिए इस लग्न के व्यक्तियों को मूंगा नहीं पहनना चाहिए।
3- मिथुन लग्न में मंगल षष्ठम एवं एकादश भाव का स्वामी होता है। ऐसी स्थिति में इस लग्न के जातक को मंगल की महादशा में मूंगा नहीं धारण करना चाहिए, क्योंकि मिथुन लग्न के स्वामी बुध और मंगल के बीच परम शत्रुता है।
4- कर्क लग्न में मंगल नवम व दशम भाव का स्वामी है। यह श्रेष्ठ योग है। ऐसी स्थिति में मंगल लग्न के जातकों का कारक ग्रह बनकर अत्यध्कि लाभ पहुंचाता है। यदि मूंगे को को लग्नेश चंद्र के रत्न मोती के साथ पहन लिया जाए तो अत्यन्त शुभकारक रहता है।
5- सिंह लग्न में मंगल चतुर्थ व नवम भाव का स्वामी होता है। इस तरह से सिंह लग्न में मंगल योग कारक ग्रह माना जाता है। यदि ऐसे जातक मूंगा धारण कर लें तो उन्हें मानसिक शांति, गृह, भूमि, धन, मातृ सुख, मान-सम्मान, और यश कीर्ति प्राप्त होती है। यदि मूंगे को माणिक्य के साथ धारण किया जाए तो अत्यधिक लाभकारी होता है।
6- कन्या लग्न में मंगल तृतीय व अष्टम भाव का स्वामी है। यह दोनों भाव अशुभ हैं। इसलिए कन्या लग्न वाले जातकों को मूंगा कभी नहीं धारण करना चाहिए।
7- तुला लग्न में मंगल द्बितीय व सप्तम भाव का स्वामी है। दोनों अशुभ भाव मारक माने गए हैं। इसलिए इस लग्न के जातक मूंगा धारण न करें।
8- वृश्चिक लग्न में मंगल लग्नेश होेते है। इसलिए वृश्चितक लग्न वाले जातकों के लिए मूंगा पहनना उत्तम रहता है।
9- धनु लग्न में मंगल पंचम त्रिकोण और द्बादश भाव का स्वामी है। कुंडली में पंचम व नवम भाव त्रिकोण कहलता है। इस तरह से धनु लग्न में मंगल शुभ माना गया है। इसलिए इसके जातकों को मूंगा धारण करना संतान सुख, यश-कीर्ति, मान-सम्मान, बुद्धि-वृद्धि और भाग्योदय कराने वाला होता है। मंगल की महादशा में मूंगा पहनना विश्ोष फलदायक होता है।
1०- मकर लग्न में मंगल चतुर्थ भाव का स्वामी होता है। अगर इस लग्न का स्वामी चतुर्थ स्थान में स्थित हो तो जातक को मूंगा पहनना शुभ रहता है। यदि अष्टम का अधिपति द्बादश भाव में स्थित हो तो मूंगा धारण करना श्रेयस्कर होगा।
11- कुम्भ लग्न में मंगल तृतीय और दशम भाव का स्वामी होता है। अगर मंगल दशम स्थान पर यानी वृश्चिक राशि पर स्थिर हो जाए तो मंगल की महादशा में मूंगा धारण करना चाहिए। सामान्यत: कुम्भ लग्न के जातकों के लिए मूंगा धारण करना लाभकारी होता है।
12- मीन लग्न में मंगल द्बितीय व नवम भाव का स्वामी होता है। इसलिए इस लग्न के लिए मंगल शुभ ग्रह माना गया है। ऐसे जातकों द्बारा मूंगा पहनना अत्यन्त लाभप्रद रहता है।
जानिए, मूंगे को धारण करने की विधि-विधान
मूंगा यथा संभव सोने की अंगूठी में जड़वाना चाहिए। लेकिन अगर धारक के लिए सोना खरीदना संभव नहीं है तो चांदी में सोना मिलवाकर या ताम्बे की अंगूठी पहननी चाहिए। मूंगे का वजन छह रत्ती से कम नहीं होना चाहिए। यदि मंगलवार को मूंगा खरीदकर उसी नि अंगूठी में जड़वाया जाए तो उत्तम रहता है। अंगूठी का पूजन कर दस हजार बार ऊॅँ अं अंगारकाय नम:……….मंत्र का जप करके किसी शुक्ल पक्ष के मंगलवार को सूर्योदय के एक घंटे बाद दायें हाथ की अनामिका अंगुली में धारण करना चाहिए।
जानिए, अब मूंगा का विकल्प
यदि मूंगा नहीं खरीद पा रहे हैं तो इसके बदले संग मूंगी, लाल तामड़ा, लाल जेस्पर, कहरुवा यानी अम्बर या विद्रुम मणि धारण किया जा सकता है। ये रत्न मूंगा से सस्ते जरूर है, लेकिन कम लाभकारी नहीं हैं।
जानिए,किन रोगों में उपयोग होता है मूंगे का
मूंगे को आयुर्वेद में प्रवाल कहते हैं। बताया जाता है कि मूंगा गुण में लघु व रुक्ष है। रस की दृष्टि से यह मधुर और कुछ अम्लीय होता है। इसक विपाक मधुर और वीर्य शीत होता है। वैज्ञानिक मानते है कि इसमें 83 प्रतिशत कैल्शियम कार्बोनेट, 35 प्रतिशत मैगनीशियम कार्बोनेट, 45 प्रतिशत लोहा और अल्प मात्रा में सीसा होता है। इसके अलावा इसमें आठ प्रतिशत अन्य पदार्थ होते हैं। वात, पित्त और कफ दोषों के निवारण के लिए इसका प्रयोग चिकित्सीय क्ष्ोत्र में होता है। लेकिन यह कफ और वायु के विकृत होने से उत्पन्न होने वाले रोगों में गुणकारी है। नेत्र रोगों में इसक चूर्ण अंजन के रूप में लगाने पर काफी फायदा करता है। यह मस्तिष्क व नाड़ी की दुर्बलता दूर करता है। इसे विश्ोषकर अम्ल, पित्त, पेटदर्द, खूनी पेचिश और बवासीर में इस्तेमाल किया जाता है। यह इन रोगों के लिए रामबाण औषधि है। रक्त विकार, रक्त पित्त और हूदय की दुर्बलता के अलावा पुराने-बिगड़े जुकाम, खांसी, दमा, यक्ष्मा आदि रोगों में भी इसका प्रयोग किया जाता है। मंूगे को गुलाब जल के साथ पीसकर छाया में सुखाकर मधु के साथ सेवन करने से शरीर पुष्ट और स्वस्थ होता है। इसक भस्म पान के साथ खाने पर कफ व खांसी की शिकायत दूर होती है। जबकि मलाई के साथ लेने पर हृदय रोग में लाभ पहुंचता है।
1- पेट दर्द या प्लीहा की शिकायत होने पर मूंगे की भस्म मलाई के साथ लेने पर लाभ होता है।
2- ब्लड प्रेशन में मूंगे की भस्म शहद के साथ खाने से तत्काल फायदा होता है।
3- मिरगी, हृदय रोग या वायु कम्प में इसका भस्म दूध के साथ लेने पर रोग जड़ से समाप्त हो जाता है।
4- मंदाग्नि में मूंगे का भस्म गुलाब जल के साथ देने पर लाभ होता है।
5- शारीरिक कमजोरी में भी इसका भस्म लाभकारी होता है।