नरक चतुर्दशी {छोटी दीपावली} और दीपावली पूजन कैसे करें, इस दिन ऐसे मिलते है भविष्य में होने वाली घटनाओं के संकेत

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नरक चतुर्दशी : इस दिन सूर्योदय के पूर्व उठकर तेल उबटन लगाकर स्नान करना चाहिए। इस दिन के स्नान का विशेष महात्म्य है, जो लोग इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान नहीं करते हैं, उनके वर्ष भर के शुभ कार्यों का नाश हो जाता है। वर्ष दुख में बीतता है। वे मलिन व दरिद्र रहते हैं। इस दिन स्नान से निपट कर यमराज का तर्पण करके तीन अंजलि जल अर्पित करने का विधान है। इस दिन सन्ध्या के समय दीपक भी जलाए जाते हैं। इसे छोटी दीपावली भी कहते हैं। दीपक जलाने की विधि त्रयोदशी से अमवस्या तक है।

त्रयोदशी के दिन यमराज के लिए एक दीपक जलाया जाता है। अमावस्या को बड़ी दीपावली का पूजन होता है। इन तीनों दिन में दीपक जलाने का कारण यह बताया जाता है कि इन दिनों भगवान वामन में राजा बलि की पृथ्वी को नापा था। भगवान वामन ने तीन पगों में सम्पूर्ण पृथ्वी और बलि शरीर को नाप लिया था, इसलिए त्रयोदशी, चतुर्दशी व अमावस्या को लेग यम के लिए दीपक जलाकर लक्ष्मी पूजन समेत दीपावली मनाते हैं। जिससे उन्हें यम यातनाएं न सहनी पड़े। माता लक्ष्मी सदा उनके साथ रहें।

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दीपावली पूजा कैसे करें ?

इस दिन लक्ष्मी पूजन का विशेष विधान है। ब्रह्मपुराण के अनुसार इस दिन अर्धरात्रि के समय लक्ष्मी महारानी सद् गृहस्थों के मकानों में यत्र – तत्र विचरण करती हैं, इसलिए इस दिन घर – बाहर को खूब साफ सुथरा करके सजाया – संवारा जाता है। दीपावली मनाने से श्री लक्ष्मी जी प्रसन्न होकर स्थाई रूप से निवास करती हैं। कहते हैं कार्तिक अमावस्या को भगवान श्री रामचन्द्र चौदह वर्ष का वनवास भोगकर और आसुरी वृत्तियों के प्रतीक रावणा का संहार करके अयोध्या पधारे थे। अयोध्यावासियों ने राम के राज्यारोहण पर दीपमालाएँ जलाकर महोत्सव मनाया था, इसीलिए हिन्दुओं के प्रमुख त्यौहारों में से दीपावली भी प्रमुख है। इसदिन उज्जैन सम्राट विक्रमादित्य का राजतिलक भी हुआ था । विक्रमी सम्वत् का आरम्भ भी तभी से माना जाता है, इसलिए यह नए वर्ष का प्रथम दिन भी है, इस दिन वैश्य व व्यापारी लोग अपने बही – खाते बदलते हैं और अपने वर्ष के लाभ – हानि का ब्यौरा तैयार करते हैं। दीपावली के दिन आकाश दीप जलाने की प्रथा के पीछे अनुमान है कि दीपावली अमावस्या से पितरों की रात शुरू होती है। कहीं वे पथ – भ्रष्ट न हों जाएं, इसलिए उनके लिए प्रकाश का विधान किया जाता है। घर की सफाई करके , लीप – पोत कर लक्ष्मी के स्वागत की तैयारी में दीवार को चूने या गेरू से पोत कर लक्ष्मी जी का चित्र बनाओ। लक्ष्मी जी का फोटो लगाओ। सन्ध्या के समय पकने वाला स्वादिष्ट व्यंजनों में दाल, चावल, हलवा – पूरी, बड़ा, कदली – फल, पापड़ और अनेक प्रकार की मिठाइयां होनी चाहिए। लक्ष्मी जी के चित्र के सामने एक चौकी रखो । इसे मौली बाँधो। इस पर मिट्टी के गणेश जी स्थापित करो। उसे रोली लगाओ। छह चौमुखे दीपक बनाओ । छब्बीस छोटे दीपक रखो। इनमें तेल और बत्ती डालकर जलाओ । फिर जल, मौली, चावल, फल, गुड़, अबीर गुलाल, धूप आदि सहित पूजा करो । पूजा पहले पुरुष करें और बाद में स्त्रियाँ पूजा करें। पूजा करने के बाद एक-एक दीपक घर के कोनों पर जला कर रखो । एक छोटा और एक चौमुखा दीपक रखकर लक्ष्मी जी के व्रत का पूजन करो। पूजा के पश्चात तिजौरी में भगवान गणेश जी और जगतमाता लक्ष्मी जी की मूर्ति रखकर विधि से पूजा करो । अपनी इच्छानुसार घर की बहुओं को रुपए दो । लक्ष्मी पूजन रात के समय बारह बजे करना चाहिए । इस समय एक पाट पर लाल कपड़ा बिछा कर उस पर एक जोड़ी लक्ष्मी और गणेश जी की जोड़ी रखो । समीप ही एक सौ एक रुपए, सवासेर चावल, गुड़, चार केले, मूली, हरी गुवार फली और पांच लड्डू रखकर सारी सामग्री सहित लक्ष्मी गणेश का पूजन करके लड्डुओं से जिमाओ।

दीपावली की कथा,जानिए

एक बार सनत्कुमार जी ने सब महर्षि मुनियों से कहा कि महानुभाव ! कार्तिक की अमावस्या को प्रात:काल ही स्नान करके भक्तिपूर्वक पितर और देव पूजन करना चाहिए । रोगी तथा बालक के अतिरिक्त और किसी व्यक्ति को भोजन नहीं करना चाहिए। सायंकाल में विधिपूर्वक लक्ष्मी जी का मण्डप बनाकर फूल , पत्ते , तोरण , ध्वजा और पताका आदि से सुसज्जित करना चाहिए। अन्य देवी – देवताओं सहित लक्ष्मी जी का पोडशोपचार पूजा करना चाहिए । पूजनोपरान्त परिक्रमा करनी चाहिए । ’’ मुनीश्वरों ने पूछा कि लक्ष्मी – पूजन के साथ अन्य देवी – देवताओं के पूजन का क्या कारण है? सनत्कुमार जी बोले कि राजा बलि के यहाँ समस्त देवी – देवताओं सहित लक्ष्मी जी बन्धन में थीं । आज के दिन भगवान विष्णु ने उन सबको कैद से छुड़वाया था । बन्धन मुक्त होते ही सब देवता लक्ष्मी जी के साथ जाकर क्षीर – सागर में सो गए थे, इसलिए अब हमें अपने अपने घरों में उनके शयन का ऐसा प्रबन्ध करना चाहिए कि वे क्षीर – सागर की ओर न जाकर स्वच्छ स्थान और कोमल शय्या पाकर यहीं सोए रहें, जो लोग लक्ष्मी जी के स्वागत की उत्साह पूर्वक तैयारियाँ करते हैं, उनको छोड़ कर फिर वे कहीं भी नहीं जाती हैं। ’’ रात्रि के समय लक्ष्मी जी का आह्वान करके उनका विधि पूर्वक पूजन करके नाना प्रकार के मिष्ठान का नैवेद्य अर्पण करना चाहिए। दीपक जलाने चाहिए । दीपकों को सर्वानिष्ट – निवृत्ति हेतु अपने मस्तक पर घुमा कर चौराहे या श्मशान में रखना चाहिए ।

भविष्य में होने वाली घटनाओं के संकेत ऐसे प्राप्त करते थे राजा-महाराजा 

दूसरे दिन राजा का कर्तव्य है कि नगर में ढिंढोरा पिटवा कर सब बालकों को अनेक प्रकार के खेल खेलने की आज्ञा देनी चाहिए। बालक क्या – क्या खेल सकते हैं, इसका पता करना चाहिए । यदि वे आग जलाकर खेलें और उसमें ज्वाला प्रकट न हो तो समझना चाहिए कि इस वर्ष भयंकर अकाल पड़ेगा । यदि बालक दु:ख प्रकट करे तो राजा को दु:ख और सुख प्रकट करने पर सुख होगा । यदि वे आपस में लड़ें तो राज – युद्ध होने की आशंका होगी । बालकों के रोने से अनावृष्टि की सम्भावना करनी चाहिए। यदि वे घोड़ा बनकर खेलें तो मानना चाहिए कि किसी दूसरे राज्य पर विजय होगी । यदि बालक लिग पकड़ कर क्रीड़ा करें तो व्याभिचार फैलेगा और उनके अन्न या जल चुराने का अभिप्राय होगा अकाल। यह संकेत हमे बताते हैं कि राज्य या देश में आने वाला वर्ष कैसा होगा। पूर्व काल में राजा इस प्रकार से भी भविष्य का संकेत प्राप्त करते थे। जो कि भविष्य में होने वाली घटनाओं का सूचक माने जाते थे।

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